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भारतीयों में भगवान-अल्ला के भरोसे अधिकाधिक बच्चे पैदा करने की प्रवृत्ति कम हो रही है

: हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में ज्यादा गिरावट आई है : बीजेपी बिहार के चुनाव में मुस्लिम भय दिखाकर ध्रुवीकरण करना चाहती है :

Satyendra Ps : हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर में 3.16 % की गिरावट आई है जबकि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में 4.9% की गिरावट आई है। इस तरह से देखें तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर पिछले दशक में तेजी से गिरी है। लेकिन इन संघियों की नीचता देखिए कि उन्होंने किस तरह से आंकड़े जारी किए हैं! उसका भी इस्तेमाल हिन्दू मुसलमान के बीच जहर घोलने में कर लिया! कोई भी अखबार देख लें। सकारात्मक यह है कि हर धर्म वालों की जनसंख्या वृद्धि दर 2001-11 के बीच गिरी है। मुस्लिमों की वृद्धि दर ज्यादा गिरी है। लोगों में जागरूकता, समृद्धि और ज्यादा भगवान अल्ला के भरोसे अधिकाधिक बच्चे पैदा कर देने की प्रवृत्ति कम हो रही है। सरकार की ओर से जो खबर रिलीज हुई है वही अखबारों में छपी है। किसी अखबार में शायद ही आकड़ों का विश्लेषण हुआ है। (पत्रकार सत्येंद्र प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से.)

<h3>: हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में ज्यादा गिरावट आई है : बीजेपी बिहार के चुनाव में मुस्लिम भय दिखाकर ध्रुवीकरण करना चाहती है :</h3> <p>Satyendra Ps : हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर में 3.16 % की गिरावट आई है जबकि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में 4.9% की गिरावट आई है। इस तरह से देखें तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर पिछले दशक में तेजी से गिरी है। लेकिन इन संघियों की नीचता देखिए कि उन्होंने किस तरह से आंकड़े जारी किए हैं! उसका भी इस्तेमाल हिन्दू मुसलमान के बीच जहर घोलने में कर लिया! कोई भी अखबार देख लें। सकारात्मक यह है कि हर धर्म वालों की जनसंख्या वृद्धि दर 2001-11 के बीच गिरी है। मुस्लिमों की वृद्धि दर ज्यादा गिरी है। लोगों में जागरूकता, समृद्धि और ज्यादा भगवान अल्ला के भरोसे अधिकाधिक बच्चे पैदा कर देने की प्रवृत्ति कम हो रही है। सरकार की ओर से जो खबर रिलीज हुई है वही अखबारों में छपी है। किसी अखबार में शायद ही आकड़ों का विश्लेषण हुआ है। <strong>(पत्रकार सत्येंद्र प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से.)</strong></p>

: हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में ज्यादा गिरावट आई है : बीजेपी बिहार के चुनाव में मुस्लिम भय दिखाकर ध्रुवीकरण करना चाहती है :

Satyendra Ps : हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर में 3.16 % की गिरावट आई है जबकि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में 4.9% की गिरावट आई है। इस तरह से देखें तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर पिछले दशक में तेजी से गिरी है। लेकिन इन संघियों की नीचता देखिए कि उन्होंने किस तरह से आंकड़े जारी किए हैं! उसका भी इस्तेमाल हिन्दू मुसलमान के बीच जहर घोलने में कर लिया! कोई भी अखबार देख लें। सकारात्मक यह है कि हर धर्म वालों की जनसंख्या वृद्धि दर 2001-11 के बीच गिरी है। मुस्लिमों की वृद्धि दर ज्यादा गिरी है। लोगों में जागरूकता, समृद्धि और ज्यादा भगवान अल्ला के भरोसे अधिकाधिक बच्चे पैदा कर देने की प्रवृत्ति कम हो रही है। सरकार की ओर से जो खबर रिलीज हुई है वही अखबारों में छपी है। किसी अखबार में शायद ही आकड़ों का विश्लेषण हुआ है। (पत्रकार सत्येंद्र प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से.)

Nadim S. Akhter : बिहार चुनाव नजदीक है और नरेंद्र मोदी सरकार ने धार्मिक आधार पर जनसंख्या के आंकड़े जारी कर दिए हैं. क्या टाइमिंग है, मान गए साहेब को. और ज्यादातर टीवी-अखबार के –चम्पादक- चीख-चीख के ये बता रहे हैं कि देश में मुसलमानों की आबादी हिन्दुओं की अपेक्षा तेजी से बढ़ी है. सरकार ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक देश में हिन्दुओं की तादाद 96.63 करोड़ और मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़ है. लेकिन लेकिन वे ये नहीं बता रहे कि….. पिछले दशक के दौरान यानी 2001-2011 में देश की मुस्लिम आबादी की बढ़ोतरी दर स्वाधीन भारत के इतिहास में सबसे कम रही है. यानी पिछले दशक में मुसलमानों की आबादी बढ़ने की बजाय घटी है, यानी इससे पहले के दशकों में मुस्लिम आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही थी, अगर वही हालात रहते तो आज मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़ ना होकर इससे कहीं अधिक रहती. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1971-1981 के दशक में भारत में मुस्लिम आबादी की बढ़ोतरी दर 30.78 प्रतिशत थी, 1981-1991 के दशक में ये बढ़कर 32.88 फीसदी हो गई लेकिन 1991-2001 के दशक में इसमें तेजी से गिरावट आई और ये घटकर मात्र 29.52 फीसदी रह गई यानी इसमें 3.36 फीसदी की अभूतपूर्व गिरावट हुई है.

फिर भी संघ, इसके अनुषांगिक संगठन और मीडिया में संघ की आइडियोलॉजी से सहमति रखने वाले पत्रकार इस झूठ को फैलाने और मेजोरिटी को डराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे कि मुसलमान देश में तेजी से बढ़ रहे हैं और अगर यही हालात रहे तो एक दिन वे बहुसंख्यक बन जाएंगे और हिन्दू अल्पसंख्यक !!! आंकड़ों का गलत और मनमाना इंटरप्रिटेशन कितना खतरनाक हो सकता है, वो इस मामले में देखा जा सकता है. बिहार चुनाव के ठीक पहले केंद्र सरकार ने जिस तरह से जनसंख्या के ये धार्मिक आंकड़े जारी किए हैं और इसकी व्याख्या की जा रही है, उससे ये अंदेशा होता है कि बीजेपी बिहार के चुनाव में मुस्लिम भय दिखाकर ध्रुवीकरण करना चाहती है. इससे नीतीश कुमार की कही इस बात को भी बल मिलता है कि बीजेपी, बिहार में साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ कर चुनाव में इसका फायदा उठाना चाहती है. एबीपी न्यूज के कार्यक्रम –प्रेस कॉन्फ्रेंस– में नीतीश ने कहा था कि ये ताकतें मेरे रहते कोई बड़ा दंगा तो नहीं करा सकतीं लेकिन गांवों में माहौल तनावपूर्ण करने की फिराक में हैं. इनकी सोच है कि अगर एक गांव में भी साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ा तो इसका असर आसपास के तीन-चार गांवों पर पड़ेगा. चूंकि चुनाव में अब 2-3 हजार वोट इधर से उधर हुए नहीं कि फैसला पलट जाता है. सो बीजेपी इसी रणनीति पर काम कर रही है और इस पर हमलोग काफी नजदीक नजर रखे हुए हैं. तो मतलब साफ है.

बिहार चुनाव और दूसरे अन्य चुनाव जीतने के लिए बीजेपी हर हथकंडा अपनाने को तैयार है. उसके लिए जनसंख्या के सरकारी आंकड़ों को अपने फायदे के हिसाब से टुकड़ों में रिलीज करने की रणनीति भी शामिल है. अगर केंद्र सरकार की नीयत इतनी ही साफ है तो ये आंकड़े काफी पहले आ गए थे, उन्हें अब तक सार्वजनकि क्यों नहीं किया था? एक बात और. इस बार जनसंख्या के आंकड़ों में पहली बार जातिगत आंकड़े भी शामिल किए गए हैं, जिसे केंद्र सरकार दबाए बैठी है. जारी नहीं कर रही. आखिर क्यों?  जब आपने धार्मिक आधार की गई गणना जारी कर दी है तो जातिगत आधार की गणना इस देश की जनता को समर्पित क्यों नहीं कर रहे साहेब? ये तो पता चले कि इस देश में सवर्णों और दलितों की आबादी का प्रतिशत क्या है? सवर्णों की आबादी बढ़ रही है या घट रही है और दलितों का उसमें क्या स्थान है. इस देश में सवर्ण कितने हैं और उन्होंने देश के कितने प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा जमाया हुआ है? दलित कितने हैं और इस बंदरबांट में उनके हिस्से कुछ आया भी है या नहीं! मोदी सरकार को इस जनगणना के सारे आंकड़े शीघ्रातिशीघ्र देश को समर्पित करना चाहिए. सिलेक्टिव होकर टुकड़ों में अपने मतलब के हिसाब से आंकड़े जारी करेंगे तो आपकी नीयत पर संदेह होगा ही. सरकार को ये समझ लेना चाहिए कि ये आंकड़े देश की सम्पत्ति हैं, किसी पार्टी विशेष की धरोहर नहीं कि जो जब चाहा, जैसे चाहा, जिस वक्त चाहा, अपने हिसाब से जारी कर दिया. बहरहाल, हिन्दुओं और मुस्लिमों के ताजा आंकड़ों का अपने हिसाब से अभिप्राय निकालने और इंटरप्रिटेशन करने का ये खेल अभी चलेगा. हिन्दुओं को मुसलमानों का भय दिखाने का पराक्रम अभी जारी रहेगा. हिन्दुओं से चार-;चार, दस-दस बच्चे पैदा करने की अपील चलती रहेगी ताकि वे इस देश में अल्पसंख्यक ना बन जाएं! अच्छा है. इस देश की जनता को अगर ऐसी ही राजनीति चाहिए तो फिर कोई क्या कर सकता है. ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि अगर जनता समझदार होती तो उन्हें बरगलाने और भड़काऊ-दकियानूसी बातें करने वाले ये नुमाइंदे चुनकर नहीं आते. इन्हें कब का काला पानी यानी राजनीतिक वनवास पर भेज दिया गया होता. (पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.)

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