Dilip Khan : फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलकर ठगी करने वालों का भी एक गिरोह है। ये लोग पहले ‘दो मिनट’ मांगते हैं, फिर रास्ता पूछते हैं। बिल्कुल अंत में बताते हैं कि उनके पास पचास या फिर सत्तर रुपए ‘कम’ हैं। तो हुआ ये कि आज एक बुजुर्गवार मिले और ‘excuse me, can you tell me that from where I can get a bus to gurgaon’ से शुरू हुए। मैंने रास्ता बता दिया। फिर उन्होंने बताना शुरू किया कि वो कोलकाता के रहने वाले हैं, सूरजकुंड से आ रहे हैं वगैरह, वगैरह। मैंने बीच में ही पूछा कि ‘कितने पैसे कम पड़ रहे हैं’? वो बोले अरे नहीं, पैसे का मामला नहीं है, बट मुझे गुड़गांव से मानेसर जाना है। पचास रुपए सच में कम पड़ रहे हैं।
मैंने हमेशा की तरह TDS काटकर 40 रुपए उनको दे दिए। जाते हुए पलटकर मैंने पूछा “अकेले काम करते हैं या ग्रुप है”? वो मुस्कुराकर चल दिए। ऐसे लोग फोन नंबर भी मांगते हैं, ये बताने के लिए कि वो फोन करके पैसे वापस कर देंगे। पक्की बात ये है कि फोन कभी नहीं आने वाला। मैं हर बार पैसे दे देता हूं कि क्या पता कोई सचमुच ज़रूरतमंद हो। एक बार मैंने अपनी पॉकेट कटने के बाद ऐसे ही दो-चार लोगों से सशर्त हेल्प मांगी थी, पर सबने ‘ठग’ समझकर मना कर दिया था। तबसे ठगे जाने पर भी ज़्यादा पछतावा नहीं होता। 40 ही तो लिया। वैसे अगली बार गिरोह का पता लगाने की कोशिश में 1000 भी दे दूंगा।
दिलीप खान के फेसबुक वॉल से.