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गुजरात हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, आरक्षित वर्ग करें आरक्षित श्रेणी में ही आवेदन

गुजरात: गुजरात हाईकोर्ट के एक ताज़ा फैसले के बाद अब राज्य में सरकारी नौकरी चाहने वाले आरक्षित श्रेणी के आवेदकों को अब सामान्य श्रेणी का लाभ नहीं मिल सकेगा। उन्हें अब आरक्षित श्रेणी में ही आवेदन करना होगा, भले ही आवेदक की मेरिट कितनी ही ऊंची क्यों न हो। गुजरात हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा है कि अब सामान्य वर्ग श्रेणी में कोई भी अन्य वर्ग यानि एसटी,एससी और ओबीसी, नौकरी या कॉलेज में अप्लाई नहीं कर सकता। इस वर्ग के लोग केवल अपने ही आरक्षित सीटों पर अप्लाई कर सकते हैं। फिर चाहे उसका मेरिट मे कितना ही ऊँचा स्थान क्यों न हो।

<p><strong>गुजरात:</strong> गुजरात हाईकोर्ट के एक ताज़ा फैसले के बाद अब राज्य में सरकारी नौकरी चाहने वाले आरक्षित श्रेणी के आवेदकों को अब सामान्य श्रेणी का लाभ नहीं मिल सकेगा। उन्हें अब आरक्षित श्रेणी में ही आवेदन करना होगा, भले ही आवेदक की मेरिट कितनी ही ऊंची क्यों न हो। गुजरात हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा है कि अब सामान्य वर्ग श्रेणी में कोई भी अन्य वर्ग यानि एसटी,एससी और ओबीसी, नौकरी या कॉलेज में अप्लाई नहीं कर सकता। इस वर्ग के लोग केवल अपने ही आरक्षित सीटों पर अप्लाई कर सकते हैं। फिर चाहे उसका मेरिट मे कितना ही ऊँचा स्थान क्यों न हो।</p>

गुजरात: गुजरात हाईकोर्ट के एक ताज़ा फैसले के बाद अब राज्य में सरकारी नौकरी चाहने वाले आरक्षित श्रेणी के आवेदकों को अब सामान्य श्रेणी का लाभ नहीं मिल सकेगा। उन्हें अब आरक्षित श्रेणी में ही आवेदन करना होगा, भले ही आवेदक की मेरिट कितनी ही ऊंची क्यों न हो। गुजरात हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा है कि अब सामान्य वर्ग श्रेणी में कोई भी अन्य वर्ग यानि एसटी,एससी और ओबीसी, नौकरी या कॉलेज में अप्लाई नहीं कर सकता। इस वर्ग के लोग केवल अपने ही आरक्षित सीटों पर अप्लाई कर सकते हैं। फिर चाहे उसका मेरिट मे कितना ही ऊँचा स्थान क्यों न हो।

      गुजरात हाई कोर्ट का फैसला फैसला दिया है कि आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों को सिर्फ आरक्षण उनके वर्ग में ही मिलेगा चाहे उसका मेरिट मे कितना ही ऊँचा स्थान हो। अगर कोई जाति प्रमाण पत्र देता है तो उसे आरक्षित क्षेत्र में ही जगह मिलेगी और वह अनारक्षित कोटा में जगह नहीं बना सकता। दरअसल वर्ष 2013 में एकल न्यायाधीश ने गुजरात लोक सेवा आयोग,  जीपीएससी से आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों को सामान्य वर्ग में शामिल करने का आदेश दिया था। इस मामले में जीपीएससी ने एकल न्यायाधीश के फैसले को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी। जीपीएससी ने अपना पक्ष रखते हुए दलील दी कि उसने वर्ष 2011 में डिप्टी सेक्शन अधिकारी व उप तहसीलदार के 948 पदों के लिए आवेदन जारी किया गया था। प्राथमिक परीक्षा के बाद लिखित परीक्षा आयोजित की गई। मई 2011 में इस परीक्षा के परिणाम घोषित किए गए। उत्तीर्ण नहीं हुए अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवार नीलेश परमार व अन्य ने राज्य सरकार की इस मामले में आयु सीमा में छूट की नीति को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। परमार को 140 अंक मिले थे वहीं इस वर्ग में वरीयता सूची 144 अंक तक थी। इसमें दलील दी गई कि उसे सामान्य वर्ग की वरीयता सूची में शामिल करना चाहिए था,  क्योंकि उसके वर्ग के कुछ उम्मीदवारों को सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के समान या ज्यादा अंक मिले थे। जीएसपीसी ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य सरकार की नीति के तहत संबंधित आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को संबंधित वर्ग में ही आयु सीमा की छूट मिलती है। यदि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी की वरीयता सूची में शामिल किया गया तो इससे सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार चयन से वंचित रह जाएंगे। यह राज्य सरकार की नीति के खिलाफ है। जीपीएससी ने इस पक्ष और दलीलों के आधार पर न्यायाधीश एमआर शाह व न्यायाधीश जीआर उधवानी की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के फैसले को खारिज कर दिया।

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