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दुख-सुख

फांसीवाद के दौर की एक कविता : अदालतें और हत्यारे

 

अदालतें और हत्यारे
………………………..
दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू
हत्यारे आवेशित हो कर करते है हत्याएं
पर अदालतें बिलकुल भी नहीं करती ऐसा
वे आवेशित नहीं होती….
सम्पूर्ण शांति से
पूरी प्रक्रिया अपना कर
हर लेती है प्राण

<p> </p> <p style="text-align: center;"><span style="font-size: 18pt;"><strong>अदालतें और हत्यारे</strong></span><br /><span style="font-size: 18pt;">.............................</span><br /><span style="font-size: 18pt;">दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू</span><br /><span style="font-size: 18pt;">हत्यारे आवेशित हो कर करते है हत्याएं</span><br /><span style="font-size: 18pt;">पर अदालतें बिलकुल भी नहीं करती ऐसा</span><br /><span style="font-size: 18pt;">वे आवेशित नहीं होती....</span><br /><span style="font-size: 18pt;">सम्पूर्ण शांति से</span><br /><span style="font-size: 18pt;">पूरी प्रक्रिया अपना कर</span><br /><span style="font-size: 18pt;">हर लेती है प्राण</span></p>

 

अदालतें और हत्यारे
………………………..
दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू
हत्यारे आवेशित हो कर करते है हत्याएं
पर अदालतें बिलकुल भी नहीं करती ऐसा
वे आवेशित नहीं होती….
सम्पूर्ण शांति से
पूरी प्रक्रिया अपना कर
हर लेती है प्राण

……
दोनों ही करते है हत्याएं
हत्यारे -गैर कानूनी तरीके से
मारते है लोगों को
अदालतें -कानूनन मारती  है
सबकी सुनते दिखाई पड़ते हैं मी लार्ड
पर सुनते नहीं है..
फिर अचानक अपने पेन की
निभ तोड़ देते है
इससे पहले सिर्फ इतना भर कहते है
तमाम गवाहों और सबूतों के मद्देनज़र
ताजिराते हिन्द की दफा 302 के तहत
सो एंड सो को सजा-ए- मौत दी जाती है .
……..
मतलब यह कि नागरिकों को
मार डालने का हुक्म देती है अदालतें
राज्य छीन सकता है
नागरिकों के प्राण
वैसे भी निरीह नागरिकों के प्राण
काम ही क्या आते है
सिवा वोट देने के ?
अदालतें इंसाफ नहीं करती
अब सुनाती है सिर्फ फैसले
वह भी जनभावनाओं के मुताबिक
फिर अनसुनी रह जाती है दया याचिकायें

………….
हत्यारे ,दुर्दांत हत्यारे ,सीरियल किलर ,मर्डरर
सब फीके है ,
न्याय के नाम पर होने वाले
कत्लों के आगे
फिर इस तरह के हर कत्लेआम को
देशभक्ति का जामा पहना दिया जाता है !

….और अंध देशभक्त
नाचने लगते है
मरे हुये इंसानी जिस्मों पर
और जीत जाता है प्रचण्ड राष्ट्रवाद
इस तरह फासीवाद
फांसीवाद में तब्दील हो जाता है..
..और इसके बाद अदालतें तथा हत्यारे
फिर व्यस्त हो जाते है
क़ानूनी और गैर कानूनी कत्लों में ….-भंवर मेघवंशी

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