Connect with us

Hi, what are you looking for?

ये दुनिया

याकूब जैसे आतंकी को बचाने क्यों हुई इतनी हाय तौबा?

यह बात पूरी तरह से समझ से परे हैं कि सैकड़ों लोगों को मौैत के घाट उतारने वाले याकूब मेमन जैसे आतंकी के लिए अपने देश के कानून के रखवाले कल रात इतनी हाय तौबा क्यों कर मचाए हुए थे। क्या कभी अपने देश के इन्हीं कानून के रखवालों ने किसी गरीब को न्याय दिलाने के लिए ऐसी मशक्कत की है। भला कोई गरीब के लिए क्यों कर ऐसा करेगा, गरीब की अंटी से कुछ मिलने वाला नहीं है। एक तरह से देखा जाए तो सब कुछ पैसों की महिमा है। इसमें संदेह नहीं है कि जो लोग भी याकूब को बचाने की वकालत कर रहे थे वो कोई मुफ्त में तो यह नहीं कर रहे होंगे। ये कोई समाज या देश सेवा तो है नहीं कि चलो मुफ्त में कर दी जाए। तो इसका मतलब साफ है कि सारा खेल पैसों का। लेकिन यहां पर एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अपने देश के लोगों को बेरहमी से मारने वालों के साथ महज पैसों की खातिर उनका बचाव करने के लिए खड़ा होना उचित है? हमारी राय में तो ऐसे आतंकवादियों का बचाव तक करने के लिए किसी को खड़े होना नहीं चाहिए।

<p>यह बात पूरी तरह से समझ से परे हैं कि सैकड़ों लोगों को मौैत के घाट उतारने वाले याकूब मेमन जैसे आतंकी के लिए अपने देश के कानून के रखवाले कल रात इतनी हाय तौबा क्यों कर मचाए हुए थे। क्या कभी अपने देश के इन्हीं कानून के रखवालों ने किसी गरीब को न्याय दिलाने के लिए ऐसी मशक्कत की है। भला कोई गरीब के लिए क्यों कर ऐसा करेगा, गरीब की अंटी से कुछ मिलने वाला नहीं है। एक तरह से देखा जाए तो सब कुछ पैसों की महिमा है। इसमें संदेह नहीं है कि जो लोग भी याकूब को बचाने की वकालत कर रहे थे वो कोई मुफ्त में तो यह नहीं कर रहे होंगे। ये कोई समाज या देश सेवा तो है नहीं कि चलो मुफ्त में कर दी जाए। तो इसका मतलब साफ है कि सारा खेल पैसों का। लेकिन यहां पर एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अपने देश के लोगों को बेरहमी से मारने वालों के साथ महज पैसों की खातिर उनका बचाव करने के लिए खड़ा होना उचित है? हमारी राय में तो ऐसे आतंकवादियों का बचाव तक करने के लिए किसी को खड़े होना नहीं चाहिए।</p>

यह बात पूरी तरह से समझ से परे हैं कि सैकड़ों लोगों को मौैत के घाट उतारने वाले याकूब मेमन जैसे आतंकी के लिए अपने देश के कानून के रखवाले कल रात इतनी हाय तौबा क्यों कर मचाए हुए थे। क्या कभी अपने देश के इन्हीं कानून के रखवालों ने किसी गरीब को न्याय दिलाने के लिए ऐसी मशक्कत की है। भला कोई गरीब के लिए क्यों कर ऐसा करेगा, गरीब की अंटी से कुछ मिलने वाला नहीं है। एक तरह से देखा जाए तो सब कुछ पैसों की महिमा है। इसमें संदेह नहीं है कि जो लोग भी याकूब को बचाने की वकालत कर रहे थे वो कोई मुफ्त में तो यह नहीं कर रहे होंगे। ये कोई समाज या देश सेवा तो है नहीं कि चलो मुफ्त में कर दी जाए। तो इसका मतलब साफ है कि सारा खेल पैसों का। लेकिन यहां पर एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अपने देश के लोगों को बेरहमी से मारने वालों के साथ महज पैसों की खातिर उनका बचाव करने के लिए खड़ा होना उचित है? हमारी राय में तो ऐसे आतंकवादियों का बचाव तक करने के लिए किसी को खड़े होना नहीं चाहिए।

लेकिन वाह रे अपने देश के कानून के रखवाले, इन्होंने तो सारी सीमांए पार करते हुए रात को सुप्रीम कोर्ट को खुलवाने का ऐेतिहासिक कारनामा करवा दिया। अगर यह कारनामा किसी बेगुनाह को बचाने के लिए किया जाता तो आज सारा देश ऐसे कानून के रखवालों को सिर आंखों पर बिठाता और उनकी पूजा करता। लेकिन ऐसे कानून के रखवालों के बारे में देश की जनता क्या सोचती होगी, यह बताने की जरूरत नहीं। क्या ऐसे कानून के रखवालों को इस बात की चिंता रती भर भी नहीं होती है कि याकूब मेमन जैसे आतंकवादी ने जिन घरों का चिराग बुझाया है, उनके घर वालों के दिलों पर क्या बितती होगी। राह पर चलने वाला कोई भी देशवासी दोषी नहीं होता है, फिर क्यों कर उनको आतंकवादी अपना निशाना बनाकर मौत की नींद सुला देते हैं। ये आतंकवादी किसी के सगे नहीं होते हैं, फिर क्यों कर ऐसे लोगों पर रहम दिखाने की अपील अपने देश के कानून के रखवाले करते हैं। यह बहुत ही शर्मनाक है। इसमें संदेह नहीं है कि अपने देश के संविधान में बहुत ज्यादा संशोधन की जरूरत है। क्यों कर किसी आतंकवादी की फांसी की सजा पर रहम करने के लिए राष्ट्रपति तक दया याचिका जाती है। यह इसलिए क्योंकि अपने संविधान में ऐसा प्रावधान है। अब ऐसे प्रावधान में संशोधन की जरूरत है कि किसकी याचिका राष्ट्रपति तक जा सकती है।

अगर किसी ने अंजाने में गुनाह किया है तब तो बात समझ आती है, लेकिन पूरी साजिश के तहत कोई सैकड़ों लोगों की जान ले लेता है और ऐेसे आतंकवादी की याचिका राष्ट्रपति तक रहम के लिए जाती है, यह तो सही नहीं है। जब तक संविधान में संशोधन नहीं होगा, ऐसे आतंकवादियों को बचाने की गुहार लगाई जाती रहेगी, क्योंकि अपने देश में पैसों को ही ईमान मानने वाले लोगों की कमी नहीं है जो आतंकवादियों के रहनुमा बनकर सामने आ जाते हैं। अपने देश में पैसों की खातिर देश तक को बेचने वालों की कमी नहीं है। बहरहाल हम सलाम करते हैं सुप्रीम कोर्ट के उन न्यायाधीशों को जिन्होंने याकूब पर रहम करने से साफ मना कर दिया और अंतत: याकूब को अपने गुनाह की सजा के तौर पर खुदा की उस बड़ी अदालत के दरवाजे तक जाना पड़ा, जहां पर किसी गुनाह की कोई माफी नहीं होती है। इसमें संदेह नहीं है कि खुदा याकूब जैसे दरिंदों को कभी माफ नहीं करते हैं और ऐसे लोगों को कभी जन्नत नसीब नहीं होती है।

लेखक राजकुमार ग्वालानी रायपुर छत्तीसगढ़ में करीब ढाई दशक के पत्रकारिता कर रहे हैं, इनसे 09302557200, 9826711852 पर सपंर्क किया जा सकता है.

You May Also Like

Uncategorized

मुंबई : लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले में मुंबई सेशन कोर्ट ने फिल्‍म अभिनेता जॉन अब्राहम को 15 दिनों की जेल की सजा...

ये दुनिया

रामकृष्ण परमहंस को मरने के पहले गले का कैंसर हो गया। तो बड़ा कष्ट था। और बड़ा कष्ट था भोजन करने में, पानी भी...

ये दुनिया

बुद्ध ने कहा है, कि न कोई परमात्मा है, न कोई आकाश में बैठा हुआ नियंता है। तो साधक क्या करें? तो बुद्ध ने...

दुख-सुख

: बस में अश्लीलता के लाइव टेलीकास्ट को एन्जॉय कर रहे यात्रियों को यूं नसीहत दी उस पीड़ित लड़की ने : Sanjna Gupta :...

Advertisement