Connect with us

Hi, what are you looking for?

ये दुनिया

मैं गढ़वाल छोड़ कर प्रयाग न जाता, तो शायद ब्लॉक प्रमुख भी न बन पाता : हेमवती नंदन बहुगुणा

Rajiv Nayan Bahuguna : आज भारत के एक अतिशय महत्वाकांक्षी, चतुर, सुयोग्य एवं अवसरवादी राजनेता रह चुके हेमवती नन्दन बहुगुणा जीवित होते तो 97 वर्ष के होते। लेकिन 100 वर्ष तक जीवित रह पाना सिर्फ गुलजारी लाल नन्दा अथवा मोरारजी देसाई जैसे संयमी एवं संतोषी नेता के ही वश में होता है, बहुगुणा जैसों के नहीं। जब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी की 69 वर्ष की पक्व आयु में दिल का ऑपरेशन कराने की बजाय उन्हें दवाओं के भरोसे रहना अधिक सुरक्षित रहेगा, बशर्ते वह दौड़ भाग कम और आराम अधिक करें। इस पर हेमवती बाबू का जवाब था कि मैं ऐसे जीवन का क्या करूँगा। लिहाज़ा वह ऑपरेशन कराने अमेरिका गए, और मर गए।

<p>Rajiv Nayan Bahuguna : आज भारत के एक अतिशय महत्वाकांक्षी, चतुर, सुयोग्य एवं अवसरवादी राजनेता रह चुके हेमवती नन्दन बहुगुणा जीवित होते तो 97 वर्ष के होते। लेकिन 100 वर्ष तक जीवित रह पाना सिर्फ गुलजारी लाल नन्दा अथवा मोरारजी देसाई जैसे संयमी एवं संतोषी नेता के ही वश में होता है, बहुगुणा जैसों के नहीं। जब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी की 69 वर्ष की पक्व आयु में दिल का ऑपरेशन कराने की बजाय उन्हें दवाओं के भरोसे रहना अधिक सुरक्षित रहेगा, बशर्ते वह दौड़ भाग कम और आराम अधिक करें। इस पर हेमवती बाबू का जवाब था कि मैं ऐसे जीवन का क्या करूँगा। लिहाज़ा वह ऑपरेशन कराने अमेरिका गए, और मर गए।</p>

Rajiv Nayan Bahuguna : आज भारत के एक अतिशय महत्वाकांक्षी, चतुर, सुयोग्य एवं अवसरवादी राजनेता रह चुके हेमवती नन्दन बहुगुणा जीवित होते तो 97 वर्ष के होते। लेकिन 100 वर्ष तक जीवित रह पाना सिर्फ गुलजारी लाल नन्दा अथवा मोरारजी देसाई जैसे संयमी एवं संतोषी नेता के ही वश में होता है, बहुगुणा जैसों के नहीं। जब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी की 69 वर्ष की पक्व आयु में दिल का ऑपरेशन कराने की बजाय उन्हें दवाओं के भरोसे रहना अधिक सुरक्षित रहेगा, बशर्ते वह दौड़ भाग कम और आराम अधिक करें। इस पर हेमवती बाबू का जवाब था कि मैं ऐसे जीवन का क्या करूँगा। लिहाज़ा वह ऑपरेशन कराने अमेरिका गए, और मर गए।

सत्ता लोलुप होने की वजह से उन्होंने कई पार्टियां बदलीं, और कई समझौते किये। लेकिन जन संघ अथवा भाजपा से कभी हाथ नहीं मिलाया, क्योंकि वह मूलतः एक प्रगति शील राजनेता थे। आज उनके आत्मज उसी भाजपा के पाले में खड़े हैं। 1981-82 के ऐतिहासिक गढ़वाल उप चुनाव में सारा विपक्ष उनके साथ एकजुट था। सिर्फ जनसंघी ही उन्हें हराने के लिए प्रच्छन्न रूप से कांग्रेस का साथ दे रहे थे क्योंकि साम्प्रदायिकता के वह शाश्वत शत्रु थे।

उन्होंने अपनी राजनैतिक समिधा इलाहाबाद से जुटाई, लेकिन अपनी मातृ भूमि उत्तराखण्ड का क़र्ज़ भरपूर चुकाया। संचार मंत्री रहे, तो यहां गांव गांव डाक घर खुलवाये, और पेटोल मंत्री रहते हुए घर घर गैस पँहुचाई। मैं पटना में अखबार की नौकरी करता था, तो वह लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते बहुधा पटना आते थे, और अपने स्थानीय नेता लालू प्रसाद यादव से मेरा ध्यान रखने को कहते थे। स्नेह वश वह वर्षों तक मुझे पढ़ाई का खर्चा देते रहे, बल्कि मेरे कॉलेज छोड़ने के बाद भी उन्होंने मेरा गुज़ारा भत्ता बन्द नहीं किया।

बहुत कम लोगों को पता होगा की वह कांग्रेस में बहुत लेट, 1946 के आस पास आये। उससे पहले अरुणा आसफ अली इत्यादि के क्रांतिकारी गुट में थे। एक बार उन्होंने मुझसे कहा था- अगर मैं गढ़वाल छोड़ कर प्रयाग न जाता, तो शायद ब्लॉक प्रमुख भी न बन पाता। क्योंकि हमारे लोग अपने ही प्रतिभावान पुरुष की टांग खींचते हैं। खुशवंत सिंह ने उनके बारे में उचित ही लिखा था कि देवताओं ने उनका साथ नहीं दिया।

वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी राजीव नयन बहुगुणा के फेसबुक वॉल से.

You May Also Like

Uncategorized

मुंबई : लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले में मुंबई सेशन कोर्ट ने फिल्‍म अभिनेता जॉन अब्राहम को 15 दिनों की जेल की सजा...

ये दुनिया

रामकृष्ण परमहंस को मरने के पहले गले का कैंसर हो गया। तो बड़ा कष्ट था। और बड़ा कष्ट था भोजन करने में, पानी भी...

ये दुनिया

बुद्ध ने कहा है, कि न कोई परमात्मा है, न कोई आकाश में बैठा हुआ नियंता है। तो साधक क्या करें? तो बुद्ध ने...

दुख-सुख

: बस में अश्लीलता के लाइव टेलीकास्ट को एन्जॉय कर रहे यात्रियों को यूं नसीहत दी उस पीड़ित लड़की ने : Sanjna Gupta :...

Advertisement