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IFWJ Constitution को लेकर उत्कर्ष सिन्हा का पत्र

प्रिय विशु

आवेश भरे उत्तर के लिए बहुत धन्यवाद. हालाकि आपने यह पत्र मुझे BCC भेजा था जिसके अनुसार यह सिर्फ मुझे मिला. इसके पहले कामरान भाई वाला पत्र भी BCC था मगर आपने कहा कि ये कुछ अन्य लोगों को भी भेजा है. BCC होने के कारण मुझे यह लगता है कि मुझे संबोधित करते हुए भी जो पत्र आपने लिखा है वह भी कुछ अन्य लोगों को अवश्य भेजा होगा. इस गोपनीयता की वजह क्या है, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ. हम सब लोग एक संगठन के हिस्सा हैं और यह चर्चा भी संगठन से ही जुडी हुयी है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें पत्रों में भी कोई गोपनीयता बरतने की जरूरत है. हाँ आपसे सहमत हूँ कि संगठन के सदस्यों के बीच ही इस बहस को चलाना चाहिए. इसलिए मैं अपने जवाब को सार्वजनिक रूप से भेज रहा हूँ.

<p>प्रिय विशु <br /><br />आवेश भरे उत्तर के लिए बहुत धन्यवाद. हालाकि आपने यह पत्र मुझे BCC भेजा था जिसके अनुसार यह सिर्फ मुझे मिला. इसके पहले कामरान भाई वाला पत्र भी BCC था मगर आपने कहा कि ये कुछ अन्य लोगों को भी भेजा है. BCC होने के कारण मुझे यह लगता है कि मुझे संबोधित करते हुए भी जो पत्र आपने लिखा है वह भी कुछ अन्य लोगों को अवश्य भेजा होगा. इस गोपनीयता की वजह क्या है, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ. हम सब लोग एक संगठन के हिस्सा हैं और यह चर्चा भी संगठन से ही जुडी हुयी है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें पत्रों में भी कोई गोपनीयता बरतने की जरूरत है. हाँ आपसे सहमत हूँ कि संगठन के सदस्यों के बीच ही इस बहस को चलाना चाहिए. इसलिए मैं अपने जवाब को सार्वजनिक रूप से भेज रहा हूँ.</p>

प्रिय विशु

आवेश भरे उत्तर के लिए बहुत धन्यवाद. हालाकि आपने यह पत्र मुझे BCC भेजा था जिसके अनुसार यह सिर्फ मुझे मिला. इसके पहले कामरान भाई वाला पत्र भी BCC था मगर आपने कहा कि ये कुछ अन्य लोगों को भी भेजा है. BCC होने के कारण मुझे यह लगता है कि मुझे संबोधित करते हुए भी जो पत्र आपने लिखा है वह भी कुछ अन्य लोगों को अवश्य भेजा होगा. इस गोपनीयता की वजह क्या है, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ. हम सब लोग एक संगठन के हिस्सा हैं और यह चर्चा भी संगठन से ही जुडी हुयी है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें पत्रों में भी कोई गोपनीयता बरतने की जरूरत है. हाँ आपसे सहमत हूँ कि संगठन के सदस्यों के बीच ही इस बहस को चलाना चाहिए. इसलिए मैं अपने जवाब को सार्वजनिक रूप से भेज रहा हूँ.

 

अपने पत्र में मैंने क्या कहा था, जरा फिर से देखिये. मैंने सिर्फ ये लिखा था की यह पत्र पुराना है इसलिए इसे फिर दुबारा क्यों भेजा गया और यदि कुछ अन्य लोगों को भी इसके बारे में जानना जरुरी लगा आपको तो तब तक आ चुके कामरान जी के जबाव को भी साथ में संलग्न कर देना चाहिए… इसमें किसी को क्या एतराज ? यदि कामरान जी पर लगे आरोपों को कुछ अन्य लोगों को जानना चाहिए तो उनके द्वारा दिए गए जवाब को भी पूरा जानना चाहिए. न्याय का तकाजा यही है और फिर दोनों बाते सामने आने के बाद सभी अपने विवेक से निर्णय लेंगे ही….

आपने कहा कि काश आपके साथ भी कामरान जैसे समर्थक होते? मुझे और श्री भास्कर दुबे जी को इसके उदहारण में संदर्भित किया… भाई क्यूँ लगता है कि आपका कभी समर्थक नहीं हो सकता हूँ मैं? इस बात को स्पष्ट करने के लिए दो दृष्टान्त है….

अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश जूनियर ने एक मौके पर कहा था ….” जो मेरे साथ नहीं वह दुश्मन के साथ है”

नेहरू ने कहा था …” हम किसी के साथ नहीं हैं …हर मामले का विश्लेषण करेंगे और फिर देखेंगे कौन सही है , और फिर जो हमें सही बिंदु लगेगा हम उसके साथ खुद को खड़ा करेंगे”

नेहरू तात्कालिक विषय और उसके इतिहास की बात कर रहे थे… हाँ जार्ज बुश आपकी पीढ़ी के नायक हो सकते हैं मगर हमारे आदरणीय श्री के. विक्रम राव साहब नेहरू की बात से सहमत होंगे.. हम भी हैं… इसलिए बात विषय पर होगी तो ठीक.. व्यक्तिगत रूप से आप भी मेरे प्रिय अनुज है और कामरान भी मेरे दोस्त .. मगर बात एक खास मामले पर है.. इसलिए पक्ष स्पष्ट है …        

आपने मुझे लिखे पत्र में कामरान जी के कई कोट्स डाले हैं .. इनकी जरूरत ही क्या थी यदि पूरा का पूरा जवाब ही सार्वजनिक कर दिया जाता … ऐसे तो आप पर सेलेक्टिव कोट्स का आरोप लग जाएगा. और फिर नए विवाद खड़े होंगे.

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सोशल मीडिया वाले जिन सवालों जबाबो का आपने सन्दर्भ दिया है मैं उसे भी पूरा नहीं समझ सका. अच्छा होता की पूरे मामले को एक साथ सामने लाया जाता , तो समझने में आसानी होती. मुझे भी और बाकी साथियों को भी. यदि आपको कोई स्पष्टीकरण देना है तो पुरे मामले को सामने ला कर दीजिये . और यदि लीगल प्रोसीजर में जाना है तो वहां जाइये , यहाँ फिर इसकी चर्चा ही क्यों हो?

अब रही बात संविधान मांगने की.. तो हाँ भाई मैं इस विषय का समर्थक हूँ . मैंने पहले भी लिखा था कि शायद गलती हुयी हम लोगो से की उस वक्त हमने नहीं पढ़ा .. तो क्या हमने उसे फिर से पढ़ने का अधिकार भी हमेशा के लिए खो दिया है ? यही हाँ तो पदाधिकारीगण  इसे जरूर बताएं कि इसकी सजा क्या है ? और क्यूँ है ? क्यूँ हम दोबारा नहीं मांग सकते ? यह गोपनीयता के आवरण में क्यूँ है ? रही बात वेबसाईट से लेने की तो हाँ, वो भी ठीक है मगर शायद अटैचमेंट खुल नहीं रहा है.. वह जो भी जिम्मेदार साथी हैं उन्हें बता दिया जाए ..बात ख़तम हो जाएगी. या फिर कामरान या मैं या फिर जो कोई भी हमारे पदाधिकारी से मिले वह ही दे दें .. इसमें क्या गंभीर मामला है यह मैं अभी भी नहीं समझ सका हूँ…

कामरान जी पर आपके द्वारा लगाये गए उन आरोपों का जिसमें उन्होंने श्री हसीब भाई, श्री जोखू तिवारी जी और श्री राव को अभद्र भाषा में संबोधित करने का तो निश्चिन्त रहिये, ऐसी किसी भाषा का समर्थन मैं नहीं करता हूँ और न करूँगा कभी .. अगर यह सच  है तो इस विषय पर मैं आपके साथ खड़ा मिलूँगा.

अब रहा सवाल कामरान जी के जवाबों को आपके द्वारा तर्कहीन, अक्षम इत्यादि बताने का तो ये आपका विवेक हो सकता है दूसरों का नहीं. संगठन की एक प्रक्रिया होगी उसके तहत आरोप और जवाबों को कार्यकारिणी सुनेगी और अपना मत देगी. बाकी यदि उसपर किसी भी आम सदस्य को कोई टिप्पणी करनी है तो करता रहे, कार्यकारिणी अपने विवेक से फैसला लेगी.

और आखिरी बात उस तस्वीर की जो आपने संलग्न की है और अपने मत व्यक्त किए हैं. तो भाई ये क्या साबित करना चाहते हैं आप? मेरी और आपकी भी कई तस्वीरें कई लोगों के साथ होंगी. मैं वर्तमान में जहाँ नौकरी कर रहा हूँ वहां भी हेमंत मेरे सलाहकार हैं तो इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या किसी भी संस्थान में काम करने वाला व्यक्ति वहां काम करने वाले दूसरे व्यक्ति का बंधुआ होता है? ऐसा सोचने का कोई कारण मुझे तो नहीं नजर आता … मैं खुद को सिर्फ सवालों और संगठन पर ही बात रखने तक सीमित रखूँगा …

सवाल संगठन की पारदर्शिता के संघर्ष का है.. अब आप इसके लिए मुझे अगर इस विषय पर अपना विरोधी मानते हैं तो यह आपका विचार है? मुझे लगता है संविधान, एकाउंट्स और बैठकों के बुलाने के पत्र और उसके मिनिट्स सार्वजनिक करने का है. इसमें गोपनीयता का कोई आधार मुझे भी नहीं समझ में आ रहा. इन सवालों पर किसी भी पदाधिकारी का जवाब नहीं आ रहा , बस साधारण सदस्य ही चर्चा कर रहे हैं … आखिर क्यूँ ? क्या वरिष्ठ जन और पदाधिकारी इस पर कुछ नहीं बोलना चाह रहे हैं.

उत्कर्ष सिन्हा
राष्ट्रीय पार्षद
IFWJ

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