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जनसंख्या के आंकड़ों का सांप्रदायीकरण : सच्चाई सामने लाने का काम ‘इंडियन एक्सप्रेस’ कर रहा है

Vishnu Nagar : इसे भाजपाई भी अच्छी तरह समझते हैं कि धर्म के आधार पर जनसंख्या में 2001 से 2011 के बीच हुए परिवर्तन के आंकड़े अभी जारी क्यों करवाए गए हैं। बिहार में अभी अक्टूबर में ही विधानसभा चुनाव हैं और उसमें मुसलिम आबादी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल और असम में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं, जहाँ भी मुसलिम आबादी का परतिशत अधिक है मगर हिंदुओं से बहुत कम। अभी फौरी तौर पर उद्देश्य बिहार के चुनाव को प्रभावित करना है ताकि भाजपा और उसके सहयोगी तमाम हिंदूवादी संगठन मुसलमानो की आबादी तेजी से बढ़ने का हल्ला मचाकर हिंदु वोटों का ध्रुवीकरण कर सकें जिसका लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिला था।

<p>Vishnu Nagar : इसे भाजपाई भी अच्छी तरह समझते हैं कि धर्म के आधार पर जनसंख्या में 2001 से 2011 के बीच हुए परिवर्तन के आंकड़े अभी जारी क्यों करवाए गए हैं। बिहार में अभी अक्टूबर में ही विधानसभा चुनाव हैं और उसमें मुसलिम आबादी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल और असम में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं, जहाँ भी मुसलिम आबादी का परतिशत अधिक है मगर हिंदुओं से बहुत कम। अभी फौरी तौर पर उद्देश्य बिहार के चुनाव को प्रभावित करना है ताकि भाजपा और उसके सहयोगी तमाम हिंदूवादी संगठन मुसलमानो की आबादी तेजी से बढ़ने का हल्ला मचाकर हिंदु वोटों का ध्रुवीकरण कर सकें जिसका लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिला था।</p>

Vishnu Nagar : इसे भाजपाई भी अच्छी तरह समझते हैं कि धर्म के आधार पर जनसंख्या में 2001 से 2011 के बीच हुए परिवर्तन के आंकड़े अभी जारी क्यों करवाए गए हैं। बिहार में अभी अक्टूबर में ही विधानसभा चुनाव हैं और उसमें मुसलिम आबादी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल और असम में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं, जहाँ भी मुसलिम आबादी का परतिशत अधिक है मगर हिंदुओं से बहुत कम। अभी फौरी तौर पर उद्देश्य बिहार के चुनाव को प्रभावित करना है ताकि भाजपा और उसके सहयोगी तमाम हिंदूवादी संगठन मुसलमानो की आबादी तेजी से बढ़ने का हल्ला मचाकर हिंदु वोटों का ध्रुवीकरण कर सकें जिसका लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिला था।

बहरहाल सच्चाई कुछ और है और इसे सामने लाने का काम पिछले दो दिनों से इंडियन एक्सप्रेस अखबार तथ्यों-आंकड़ों के आधार पर कर रहा है। पहली बात जो सामान्य ज्ञान से समझ लेनी चाहिए कि न तो मुसलमान, न सिख, न ईसाई वगैरह अपनी आबादी इस उददेश्य से बढ़ाते हैं, न घटाते हैं कि हमें आबादी में हिंदुओं के बराबर आना है। यही हिंदुओं के बारे में सच है कि वे इस तथाकथित डर के कारण अपनी आबादी नहीं बढ़ाना चाहते हैं कि मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ती रही तो आज से पचास –सौ साल बाद इस देश में हिदू अल्पसंख्यक हो जाएँगे।यह अज्ञान से भरा विचार हिदूवादियों को ही मुबारक हो। सबको धीरे-धीरे बढ़ती चुनौतियों के साथ कम संतान पैदा करने का महत्व समझ में आ रहा है जिनमें मुसलमान भी उसी शिद्दत से शामिल हैं।

आंकड़े बताते हैं कि 1991 से 1901 के बीच मुसलमनानों की आबादी 1. 73 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी , जो इस बार गटकर 0.8 प्रतिशत पर आ गई है यानी उनमें आबादी बढ़ने की दर पिछले दस सालों में आधी हुई है। एक उपेक्षित, हिदूवादियों की आक्रामकता से घिरे, गरीब-पिछड़े समुदाय की यह प्रगति इस मायने में और भी अधिक उल्लेखनीय है कि सच्चाई यह भी है कि पिछले तीन दशकों में मुसलमानों की आबादी की घटने की दर हिदुओं की अपेक्षा अधिक रही है। पिछले तीन दशकों में मुसलिम आबादी बढ़ने की दर सबसे कम होती गई है। हाँ इसका असर हिदुओं पर भी पड़ता है और मुसलमानों पर भी कि किस राज्य की सामाजिक प्रगति की दर क्या है। उत्तर प्रदेश में दोनों प्रमुख धार्मिक समूहों की आबादी बढ़ने की दर अधिक है मगर दक्षिण के राज्यों केरल, तमिलनाडु, (संयुक्त) आंध्र में दोनों समुदायों का आबादी बढ़ने की दर कम है जिनमें सामाजिक प्रगति की दर उत्तर बेहतर के राज्यों से कहीं बेहतर है।

पिछले तीन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े भी बताते हैं कि हिदुओं और मुसलमानों की प्रजनन क्षमता की दर का अंतर लगातार घटता जा रहा है। मुसलमानों के संदर्भ में एक बात और उनके पक्ष में नजर आ रही है कि पिछले एक दशक में पुरुष-स्त्री अनुपात हिदुओं की अपेक्षा मुसलमानों में बेहतर हुआ है। मुसलमनानों में अब 1000 पुरुषों के मुकाबले 951 स्त्रियाँ हैं जबकि हिदुओं में यह अनुपात कम 939 है। इसलिए यह मानना मूर्खतापूर्ण ही कहा जाएगा कि मुसलमान अपनी आबादी तेजी से बढ़ा रहे हैं। हाँ दूसरे धर्मों के मुकाबले मुसलमान ही एकमात्र ऐसा समुदाय है जिसकी कुल आबादी बढ़ी है, घटी नहीं मगर चमत्कार एक दिन में नहीं हो जाते,समय के साथ होते हैं और आंकड़े इसका प्रमाण हैं कि बदलाव बड़ा आया है और बहुत अच्छी तरह आया है। सब समुदायों की अलग-अलग समस्याएँ होती हैं। स्वास्थ्य सुविधाएँ बढ़ाइए, जीवन स्तर सुधारिये तो सब आबादी घटाने में आगे आते हैं और आए भी हैं। इसे सांप्रदायिक मामला बनाना अहमकाना है, जिससे भाजपा बाज नहीं आनेवाली है। उसका प्रथम चरण है जनसंख्या के आंकड़ों का इस समय प्रकाशन।

वरिष्ठ कवि और पत्रकार विष्णु नागर के फेसबुक वॉल से.

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