यह दौर विश्व में करेंसी वार के जैसा है। कई देशों में करेंसी की गिरावट हो रही है, इससे भारतीय रुपया भी अछूता नहीं है, कारण दो वर्ष के सबसे निचले स्तर पर पहुंच कर हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले शुक्रवार को 65.77 पैसे पर खुला। यह भी ध्यान रखना होगा कि अभी पिछले हफ्ते ही चीन ने अपनी मुद्रा युआन का क्रमशः 3 किश्तों में अवमूल्यन किया था। 11 अगस्त के पहले जब एक डॉलर की कीमत 6.22298 युआन थी वही 11 अगस्त को 1.9 प्रतिशत नीचे 6.22298 युआन पर चली गई। 12 अगस्त को डॉलर की कीमत 6..33 हुई और फिर युआन और नीचे उतरकर डॉलर के मुकाबले 6.40410 चला गया। सबसे अहम बात यह है कि मुद्रा का अवमूल्यन बाजार से नहीं बल्कि सरकार से तय होता है और चीन की हमेशा से यही रणनीति रही है कि अपनी मुद्रा को कुछ इस तरह करे कि निर्यात को बढ़ावा मिलता रहे। इस अवमूल्यन के बाद चीन के शेयर बाजारों में पूरे 15 दिनों तक जबरदस्त उथल-पुथल भी देखी गई लेकिन जैसे ही स्थिरता का दौर आया युआन डॉलर के मुकाबले पस्त हुआ और पूरे विश्व बाजार में इसका असर साफ दिखने लगा।
चीन में निर्यात की घटती संभावना और विश्व बाजार में चीनी माल की कमजोर पड़ती मांग के चलते वहां का मैनुफैक्चिरिंग सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित है। छटनी का दौर जारी है और कई उद्योगों से 90 फीसदी लोगों को चलता करना पड़ा। इसकी एक वजह मंदी और बढ़ती लागत भी है लेकिन यह भी सच है कि चीन में उद्योग की लागत 3 से 4 गुना बढ़ गई है। जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं। यही कारण है कि बेरोजगारी का डर भी वहां बढ़ गया है। जून के दूसरे पखवाड़े और जुलाई के पहले सप्ताह में भी चीन का शेयर बाजार धड़ाम हुआ था नतीजन निवेशकों में बेचैनी और घबराहट का तेज दौर चला, चीनी अर्थव्यवस्था पूरे वैश्विक समुदाय में चर्चा और विश्लेषण की वजह भी बना। चीन के द्वारा युआन के अवमूल्यन का जो खेल खेला गया है उसस क्या सच में उसके प्रतिद्वन्दी फंस जाएंगे या अभिमन्यु से चक्रव्यूह में चीन खुद ही न कहीं घिर जाए ? कुल मिलाकर एक तरह से ऐसा लग रहा है, चीनी मुद्रा के अवमूल्यन का असर दूसरे कई देशों को प्रभावित करेगा और उन्हें भी अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना ही पड़ेगा। वियतनाम ने तो इसी 19 अगस्त को 1 फीसदी अवमूल्यन कर दिया है। लेकिन अमेरिका ऊहापोह में दिख रहा है हो सकता है इससे आपसी व्यापारिक रिश्तों में खटास भी आए। लेकिन लगता है कि कम से कम भारत को तो एक सुनहरा मौका बैठे बिठाए मिल गया है क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बनने की संभावना इस उथल-पुथल से दिख रही हैं। चीन की कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते दुनिया की कई बड़ी मैनुफैक्चरिंग कंपनियां भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही हैं। चीन में जितना भी बाजार टूटेगा जाहिर है कि भारत के लिए उतना ही सुनहरा मौका होगा। लेकिन कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि बदलाव छोटा और इसका दुष्प्रचार बड़ा है।
लेकिन बाजार के जानकारों का मानना है कि चीन के संकट से भारत भी बच नहीं सकता। चीन कई धातुओं का दुनिया का अकेला आधा निर्यातक है। स्टील सेक्टर में गिरावट का असर यही बताता है। स्टील सेक्टर को लेकर चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। टाटा स्टील के चेयरमैन सायरस मिस्त्री ने कंपनी की एजीएम में स्टील सेक्टर के खराब पूरे एक साल पर चिन्ता जता चुके हैं। लगता है युआन के अवमूल्यन से सेक्टर की मुश्किलें और बढ़ने वाली है। स्टील की आय घटती जा रही है और मांग को लेकर चिंता बनी हुई है जिससे हमारा घरेलू बाजार भी सुस्त है। लेकिन बाजार के कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि चीनी युआन के अवमूल्यन से भारत की निर्यात संभावनाएं बलवती तो हो रही हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं इससे प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी और उन क्षेत्रों में तो जरूर जिसमें हमारा सीधा मुकाबला चीन से रहता है। यह भी गौर करने वाली बात है कि चीन-भारत का व्यापार घाटा दोगुना तक हो चुका है। कच्चे तेल के भाव, ब्याज की दरें विकसित होते देशों का कम होता पूंजी प्रवाह इन सबके बीच गिरता चीनी युआन संकट चीन का या संकट में चीन, प्रश्न बड़ा है लेकिन क्या होगा, थोड़ा इंतजार करना होगा। इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सफल यूएई दौरा भारत में निवेश की संभावनाओं को बढ़ाता है कि नहीं देखना होगा और चीन का संकट भारत के लिए अवसर बन पाएगा या नहीं।
लेखक ऋतुपर्ण दवे से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.