Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रदेश

संतोष की निशर्त रिहाई की मांग को लेकर प्रदेश भर के पत्रकार जगदलपुर में देंगे गिरफ्तारी

आंचलिक पत्रकार संतोष यादव को पूरे तीन साल तक परेशान करने के बाद नक्सली होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार करने की घटना एक सामान्य घटना नहीं है। आपको पता होना चाहिए कि पूरे देश में 90% ख़बरें आंचलिक पत्रकार ही उपलब्ध कराते हैं। अनेक राष्ट्रीय स्तर की मीडिया बाकायदा इनके नाम से या उस स्थान का प्रिंट लाईन में उल्लेख कर इनकी खबरें प्रकाशित या प्रसारित करती है। आप रोज का अखबार देख लीजिये तहसील, ब्लाक या पंचायत मुख्यालय तक के नाम से आपको खबरें पढ़ने को मिल जाएगी। सभी जगह संतोष यादव जैसे पत्रकार मिलेंगे जिन्हें इनका अख़बार बस अपना एजेंट तो मानती है, इनकी खबरों से अपना अखबार भी चलाती है। इन पर विज्ञापन के लिए दबाव भी बनाती है।  होली,  दिवाली, 15 अगस्त,  26 जनवरी या किसी नेता के जन्म दिन पर अरबों रुपयों का बोझ इन अख़बारों के लिए यही आंचलिक पत्रकार उठाते हैं। अनेकों बार इनकी खबरें राष्ट्रीय स्तर कि बनती है, कई बार इनके नाम या इनके स्थान के प्रिंट लाइन से खबरें लगती है। राष्ट्रीय स्तर की खबरों के लिए भी यही पत्रकार बड़े पत्रकारों के पार्श्व में होते हैं। मुसीबत में काम आयेंगे करके यही संतोष यादव जैसे पत्रकार जिनके नाम जनसंपर्क की सूची में नहीं होता, पत्रकार संघों के नाम से धंधा कर रहे किसी ना किसी गिरोह के चक्कर में पड़ जाता है कि चलो कुछ ले-देकर अगर एक आईकार्ड मिल जाए। तो मुसीबत आने पर इन संघों के नेता चुप्पी साध लेते हैं।

<p>आंचलिक पत्रकार संतोष यादव को पूरे तीन साल तक परेशान करने के बाद नक्सली होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार करने की घटना एक सामान्य घटना नहीं है। आपको पता होना चाहिए कि पूरे देश में 90% ख़बरें आंचलिक पत्रकार ही उपलब्ध कराते हैं। अनेक राष्ट्रीय स्तर की मीडिया बाकायदा इनके नाम से या उस स्थान का प्रिंट लाईन में उल्लेख कर इनकी खबरें प्रकाशित या प्रसारित करती है। आप रोज का अखबार देख लीजिये तहसील, ब्लाक या पंचायत मुख्यालय तक के नाम से आपको खबरें पढ़ने को मिल जाएगी। सभी जगह संतोष यादव जैसे पत्रकार मिलेंगे जिन्हें इनका अख़बार बस अपना एजेंट तो मानती है, इनकी खबरों से अपना अखबार भी चलाती है। इन पर विज्ञापन के लिए दबाव भी बनाती है।  होली,  दिवाली, 15 अगस्त,  26 जनवरी या किसी नेता के जन्म दिन पर अरबों रुपयों का बोझ इन अख़बारों के लिए यही आंचलिक पत्रकार उठाते हैं। अनेकों बार इनकी खबरें राष्ट्रीय स्तर कि बनती है, कई बार इनके नाम या इनके स्थान के प्रिंट लाइन से खबरें लगती है। राष्ट्रीय स्तर की खबरों के लिए भी यही पत्रकार बड़े पत्रकारों के पार्श्व में होते हैं। मुसीबत में काम आयेंगे करके यही संतोष यादव जैसे पत्रकार जिनके नाम जनसंपर्क की सूची में नहीं होता, पत्रकार संघों के नाम से धंधा कर रहे किसी ना किसी गिरोह के चक्कर में पड़ जाता है कि चलो कुछ ले-देकर अगर एक आईकार्ड मिल जाए। तो मुसीबत आने पर इन संघों के नेता चुप्पी साध लेते हैं।</p>

आंचलिक पत्रकार संतोष यादव को पूरे तीन साल तक परेशान करने के बाद नक्सली होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार करने की घटना एक सामान्य घटना नहीं है। आपको पता होना चाहिए कि पूरे देश में 90% ख़बरें आंचलिक पत्रकार ही उपलब्ध कराते हैं। अनेक राष्ट्रीय स्तर की मीडिया बाकायदा इनके नाम से या उस स्थान का प्रिंट लाईन में उल्लेख कर इनकी खबरें प्रकाशित या प्रसारित करती है। आप रोज का अखबार देख लीजिये तहसील, ब्लाक या पंचायत मुख्यालय तक के नाम से आपको खबरें पढ़ने को मिल जाएगी। सभी जगह संतोष यादव जैसे पत्रकार मिलेंगे जिन्हें इनका अख़बार बस अपना एजेंट तो मानती है, इनकी खबरों से अपना अखबार भी चलाती है। इन पर विज्ञापन के लिए दबाव भी बनाती है।  होली,  दिवाली, 15 अगस्त,  26 जनवरी या किसी नेता के जन्म दिन पर अरबों रुपयों का बोझ इन अख़बारों के लिए यही आंचलिक पत्रकार उठाते हैं। अनेकों बार इनकी खबरें राष्ट्रीय स्तर कि बनती है, कई बार इनके नाम या इनके स्थान के प्रिंट लाइन से खबरें लगती है। राष्ट्रीय स्तर की खबरों के लिए भी यही पत्रकार बड़े पत्रकारों के पार्श्व में होते हैं। मुसीबत में काम आयेंगे करके यही संतोष यादव जैसे पत्रकार जिनके नाम जनसंपर्क की सूची में नहीं होता, पत्रकार संघों के नाम से धंधा कर रहे किसी ना किसी गिरोह के चक्कर में पड़ जाता है कि चलो कुछ ले-देकर अगर एक आईकार्ड मिल जाए। तो मुसीबत आने पर इन संघों के नेता चुप्पी साध लेते हैं।

    अक्सर इन संघों में सक्रिय पत्रकार जुड़ते ही नहीं है। जुड़ते भी हैं तो संघ की बैठक में ही उन्हें पत्रकारिता की समझदारी सिखाई जाती है। इन संघों ने पत्रकारों के बीच अपनी छवि खो दी है। पत्रकारों की लड़ाई लड़ने के बजाय यह आपस में ही लड़ाई लड़ रहें है। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की बहुत बुरी स्थिति है। एक नंबर की लड़ाई की प्रतिस्पर्धा में शामिल पत्रिका, भास्कर, हरिभूमि, नवभारत में ही पूरे प्रदेश में सम्पादकीय व फील्ड मिलाकर पांच हजार से ज्यादा पत्रकार बिना नियुक्ति पत्र के दिहाड़ी मजदूर से बुरी स्थिति में काम कर रहे हैं। हॉकर की स्थिति तो अब सुधर जाएगी, क्योंकि सरकार ने उन्हें भी असंगठित मजदूर मान कर स्मार्ट कार्ड देने का निर्णय कर लिया है, पर दुर्भाग्य तो उन पत्रकारों का है, जो जान जोखिम में डाल कर इन अख़बारों के लिए टीआरपी बढ़ाने का काम करते हैं। यही पत्रकार है जो शोषण, उत्पीड़न की खबर खोज कर सबको न्याय दिलाने का काम करते हैं। जबकि उनकी खुद की कोई सुनवाई नहीं है। सरकार ने तरह-तरह का वेतन मान घोषित कर रखा है, पर यह लॉलीपाप ही साबित हुआ। इन सबका फायदा लेने के लिए वह नाक रगड़ कर भी नियुक्ति पत्र हासिल नहीं कर सकता।
       एक अनुमान के अनुसार पूरे प्रदेश में 5 हजार से ज्यादा पत्रकार मालिकों के शोषण के शिकार होकर पूरे परिवार के भविष्य के लिए खतरा उठा कर केवल शौक या सेवा के नाम पर इस पेशा को अपनाये हुए हैं। इनमें वे  लोग शामिल नहीं है, जो इस पवित्र व्यवसाय को अपने काले-पीले धंधे की आड़ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।  पत्रकारिता में निर्भीकता व निरपेक्षता दिखाने-करने वाले पत्रकारों से यह संस्थान उस समय नाता ही तोड़ लेते हैं, जब इस जवाबदारी के निर्वहन की वजह से उन पर कोई मुसीबत आती है। हत्यारों के शिकार बनने के तुरंत बाद उमेश राजपूत से और फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के बाद हेमचन्द्र पाण्डेय से “नई दुनिया” का बेशर्मी से नाता तोड़ना आपको याद होगा। 
      देश में एक हजार से अधिक पत्रकार संघ हैं, छत्तीसगढ़ में 50 से ज्यादा संघ है।  एक सज्जन तो अकेले तीन-तीन पत्रकार संघ के अध्यक्ष है। इनका नाम कभी भी पत्रकारिता के लिए नहीं जाना गया। जब से पत्रकारिता जगत में पैदा हुए है नेता बनकर ही हुए है। रायपुर प्रेस क्लब तो केवल वीआइपी पत्रकारों का क्लब है, यहाँ तो वैसे भी सामान्य और किसी मुसीबत में पड़ सकने वाले पत्रकार की एंट्री होना भी मुश्किल है। यहाँ के सारे सदस्य सीधे मुख्यमंत्री या किसी अन्य मंत्री से सम्बंधित (सम्बन्ध बनाये हुए होते हैं) होते हैं। पूरे प्रदेश के सरकारी मान्यता प्राप्त पत्रकारों का ९५% रायपुर में ही बसते हैं। इन सबको किसी ग्रामीण पत्रकार की पीड़ा से वैसे भी क्या मतलब?
             संतोष यादव जो दरभा में नवभारत, पत्रिका और छत्तीसगढ़ अख़बार का प्रतिनिधि था और दो दिन पहले भी उसने अपनी सुरक्षा मांगने बडारी महू गाँव के लोगों को लेकर हुए नाटकीय पुलिसिया कार्यक्रम की रिपोर्टिंग की, पर उसे जब बिना किसी अपराध के पुलिस उठा ले गयी तो बाकी किसी अखबार या चैनल तो छोड़िये इन अख़बारों ने भी एक लाईन खबर नहीं छापी! कल्लूरी से इतना ज्यादा डरतें है यह बड़े- बड़े मीडिया वाले! ध्यान रहे कि कल से सोशल मीडिया में चलाये गए अभियान के बाद आज मजबूरी में कल्लूरी ने हत्या सहित दस से ज्यादा धारा लगाकर पूरे प्रदेश के आंचलिक पत्रकारों को ना केवल अपमानित किया बल्कि चेतावनी भी दे दी कि सबका यही हाल हो सकता है। अब बेचारा संतोष न्याय के लिए जेल और न्यायालय के बीच फंसा रहेगा। संतोष को पिछले दो साल से कई बार थाने बुलाकर धमकाया गया, मुखबिर बनाने के लिए वैसे ही दबाव डाला गया जैसे कि स्व.नेमीचंद जैन के साथ किया गया था। पिछले अगस्त माह में ही उसके ऊपर एक और फर्जी मामला बनाया गया था। उसे पांच लाख रुपयों का लालच भी दिया गया। उसकी पत्नी और दोस्तों के अनुसार पुलिस थाने में उसके बार-बार जाने को लेकर वह नक्सलियों की नजर में भी आ गया है। ठीक यही हाल नेमीचंद और साईं रेड्डी का हुआ था। अब जेल से बाहर आने पर उसकी जान को भी खतरा हो सकता है।
 “पत्रिका” ने मेरे साथ जो कुछ किया वह भी सभी साथी भूले नहीं होंगे। अब आगे की जिंदगी पत्रकारिता के साथ ही पत्रकार साथियों के हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए जिऊंगा। अब मुझे जीने के लिए एक बढ़िया कारण भी मिल गया है। इन कार्पोरेट घरानों के खिलाफ लड़ाई में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मदद करने वाले साथियों की जरुरत है। इस मुद्दे पर पूरे प्रदेश के पत्रकारों को आह्वान कर रहा हूँ कि आप इसे गंभीरता से लें, एक बड़ा आन्दोलन खड़ा करें। इस आन्दोलन में अगर कोई पत्रकार संघ साथ आना चाहता है तो आये, उनका स्वागत है। मगर इस आन्दोलन का बैनर किसी संघ के नाम से ना हो, समर्थन देने वाले संघ अपना बैनर साथ ला सकते हैं। मगर मुख्य बैनर केवल “समस्त आंचलिक पत्रकार संघ छत्तीसगढ़” का हो। मुद्दा ना केवल संतोष की अवैध तरीके से गिरफ्तारी के खिलाफ बल्कि मीडिया संस्थानों के रवैया सुधारने के लिए हो। सारे मुद्दे जगदलपुर में इकट्ठा होकर करते हैं। मेरी सलाह है कि दिन तिथि तय कर अधिक से अधिक संख्या में जगदलपुर पहुंचकर संतोष के समर्थन में गिरफ्तारी दें। अगर संतोष नक्सली है तो उसका समर्थन करने के कारण इकट्ठा होने वाले हजारों पत्रकार को जन सुरक्षा अधिनियम लगाकर गिरफ्तार करने के लिए मजबूर करें। इसी पोस्ट में इस सम्बन्ध में आप सभी साथी के विचार आमंत्रित है, सब मिलकर एक नेतृत्व मंडल चुने जिसमें प्रत्येक जिले से कम से कम दो साथी रहें। सब मिलकर नेता होंगे और सब मिलकर लड़ेंगे। हमारे इस आन्दोलन में जो भी संगठन साथ आना चाहे उनका भी स्वागत है। इस पोस्ट का भी अधिक से अधिक शेयर और प्रचार करें।
 इन्कलाब ज़िन्दाबाद!

You May Also Like

Uncategorized

मुंबई : लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले में मुंबई सेशन कोर्ट ने फिल्‍म अभिनेता जॉन अब्राहम को 15 दिनों की जेल की सजा...

ये दुनिया

रामकृष्ण परमहंस को मरने के पहले गले का कैंसर हो गया। तो बड़ा कष्ट था। और बड़ा कष्ट था भोजन करने में, पानी भी...

ये दुनिया

बुद्ध ने कहा है, कि न कोई परमात्मा है, न कोई आकाश में बैठा हुआ नियंता है। तो साधक क्या करें? तो बुद्ध ने...

दुख-सुख

: बस में अश्लीलता के लाइव टेलीकास्ट को एन्जॉय कर रहे यात्रियों को यूं नसीहत दी उस पीड़ित लड़की ने : Sanjna Gupta :...

Advertisement