बिलासपुर: राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध गुरुदेव खासकर महिला का जो सम्मान नहीं कर सका वह महापाप का भागी बनता है, और यह पाप पत्रिका के बिलासपुर के सिर पर पड़ा है। सिर्फ इसलिए क्योंकि पत्रिका ने बिलासपुर में अनाड़ी संपादक और मैनेजर को अपने एडिशन में बिठाया हुआ है। संस्कृत की विदुषी, राष्ट्रपति कलाम से सम्मानित श्रीमति पुष्पा दीक्षित ने सीवी रमन युनिवर्सिटी और पत्रिका को तमाम अफसर, नेता और जनता के बीच धोकर रख दिया। 80 वर्ष की उम्र में अपनी जमापूंजी से संस्कृत महाविद्यालय में गरीब छात्रों को पढ़ाने वाली यह विदुषी पत्रिका के कार्यक्रम से काफी आहत हुईं।
दरअसल सीवी रमन युनिवर्सिटी और पत्रिका के गुरु देवो नमः कार्यक्रम में उन्हें बुलाया गया था, जहां वे उपेक्षित हुईं। गुरुओँ का सम्मान करने के नाम पर आयोजित इस कार्यक्रम में अपने बड़े विज्ञापनदाता सीवी रमन युनिवर्सिटी का प्रचार कराने की गरज से सिर्फ विज्ञापनदाता स्कूलों में वोटिंग करायी गयी और वहीं के शिक्षकों को सम्मान दिया गया। आखिर में बचा खुचा सम्मान वरिष्ठ अध्यापिका पुष्पा दीक्षित को दे दिया गया। आखिर में मिले इस सम्मान के लिए मंच के नीचे बिठाकर उन्हें इंतजार कराया गया जबकि वे अपने पति के लकवाग्रस्त होने की वजह से कार्यक्रम में आना नहीं चाहती थीं। कार्यक्रम के आखिर में जब उन्हें दो शब्द बोलने के लिए बुलाया गया तो उन्होंने पत्रिका को संस्कृत का पाठ पढ़ा दिया।
कार्यक्रम के शीर्षक (गुरु देवो नमः) पर उंगली उठाते हुए उन्होंने कहा कि जिनको गुरु लिखना नहीं आता उनसे सम्मान की क्या उम्मीद की जा सकती है। संस्कृत का वाक्य लिखने से पहले किसी अध्यापक से पूछ लिया जाना था। असल में यह गुरु देवाय नमः होना चाहिए था गुरु देवो नमः नहीं। वहां मौजूद एसपी औऱ कलेक्टर समेत तमाम अफसरों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आज तो आप यहां सम्मान कर रहे हैं औऱ कल हम जब मिलने जाएंगे तो आपके पास समय नहीं होगा। उनके तीखे कटाक्ष से आयोजनकर्ता पत्रिका समूह तमतमा गया। संपादक और मैनेजर आग बबूला हो गए। वे भूल गए कि प्राचीन भाषा संस्कृत में अपना सब कुछ दान करने वाली इस विदुषी के पास अमेरिका और चीन से छात्र पढ़ने आते हैं। उनकी इस टिप्पणी से मैनेजमेंट औऱ मार्केटिंग की आड़ में दलाली करने वाले संपादक राजेश लाहोटी और नौसीखिए यूनिट हेड शैलेन्द्र सिंह इतना तमतमा गए कि अखबार के कवरेज में इनका नाम औऱ फोटो का कहीं जिक्र नहीं किया। गुरु से सीख लेने की बजाए पत्रिका ने उन्हीं शिक्षकों व शिक्षा जगत में खुद की जगहंसाई कर ली।