क्या आधुनिक भारत के हीरो और भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व को मुग़ल शहंशाह औंरगज़ेब से जोड़ कर देखा जा सकता है। हांलाकि जिस अखंड भारत का सपना अक्सर कुछ लोग देखते हैं, उसको कुछ लोगों द्वारा औरंगज़ेब के काल मे भारत स्वरूप से जोड़ा जाता है।लेकिन ए.पी जे अब्दुल कलाम की तुलना किसी भी तौर पर औरंगज़ेब से नहीं की जा सकती। तो क्या ए.पी जे को सच्ची श्रद्धांजलि या उनका सम्मान करने के लिए दिल्ली में औरंगज़ेब रोड का नाम ए.पी.जे रोड कर देना काफी है। या इसकी आड़ में भी कुछ सियासी खेल किया जा सकता है। कुछ इसी तरह के सवाल कुछ देशवासियो के मन में हैं।
हाल ही में जिस औरंगज़ेब रोड का नाम गुरु तेग़ बहादुर के नाम पर बदलने की मांग दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कर रही थी। वैसे भी गुरु तेग़ बहादुर के साथ हुए अन्याय का फिलहाल ये एक बेहतर जवाब हो सकता था। लेकिन शायद हमारे सियासी रहनुमाओं को येमंज़वूर नहीं। हालांकि उसी औरंगज़ेब रोड पर कुछ केसरिया सोच के लोगों की भी नज़र थी। लेकिन ताज़ा ख़बर ये है कि जल्द ही औरंगजेब रोड को एपीजे अब्दुल कलाम रोड के नाम से जाना जाएगा। दरअसल नई दिल्ली नगरपालिका परिषद यानि एनडीएमसी ने शुक्रवारव को इस संबंध में अपनी मंजूरी दे दी है। एनडीएमसी के उपाध्यक्ष करण सिंह तंवर के मुताबिक़ समाज के कुछ वर्गों ने पूर्व राष्ट्रपति के प्रति श्रद्धांजलि के तौर पर इस रोड का नाम बदलने का अनुरोध किया था। इस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया कि बधाई एनडीएमसी ने औरंगजेब रोड का नाम बदलकर ए.पी.जे अब्दुल कलाम रोड रखने का अभी फैसला किया है। जबकि बीजेपी सांसद महेश गिरि ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इतिहास की गलतियों को सुधारने के लिए औरंगजेब रोड का नाम बदलने पर विचार करने का उनसे अनुरोध किया था।
लेकिन इस सबके बावजूद सवाल ये पैदा होता है कि क्या इंडिया गेट के पास से सफ़दरजंग तक लगभग 5-7 किलोमीटर लंबी सड़क का नाम ए.पी.जे के नाम पर कर देना ही मिसाइलमैन के बड़प्पन का प्रतीकभर है, या इसकी आड़ में कोई हिडन सियासी ऐजेंडा तो नहीं। अगर किसी सड़क का नाम ही उनको देना था, तो शेरशाह रोड यानि जीटी रोड भी दिया जा सकता था। क्योंकि उनका व्यक्तित्व भी विशाल था और शेरशाह भी औंरगज़ेब की तरह उसी दौर की यादों का शासक रहा है। या फिर अकेले दिल्ली में ही कई सड़कों के नाम उन लोगों के नाम पर हैं जिनको सुनकर ही गुलामी की बेड़ियों का इतिहास बरबस याद आ जाता है।
वैसे ए.पी.जे को इतना ही सही मगर इस सम्मान का हर देशवासी तहेदिल से सम्मान करता है। लेकिन राजस्व के रिकार्डों में औरंगज़ेब रोड इतनी जगह लिखा होगा कि उसको एपीजे करने में ही काफी वक़्त और रेवेन्यू भी खर्च होगा। लेकिन कुछ लोगों का ये भी मानना है कि औरंगज़ेब जैसा महान भारतीय शासक जिसकी पहचान फिलहाल महज़ कुछ किलोमीटर लंबी स़ड़क ही बन कर रह गई थी। इस नये नामकरण के बाद चाहे सियासी तौर पर हो या फिर ऐतिहासिक तौर पर दोबारा चर्चाओं में तो आ गया है। उधर कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि जनहित के कुछ मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए इस तरह के मुद्दे बेहद कारगर रहते हैं। साथ ही कुछ नेताओं को गला साफ करने का भी मौक़ा मिल सकता है।
लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं. सहारा, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ समेत कई न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। वर्तमान में www.oppositionnews.com में कार्यरत हैं.