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दिल्ली में छह घंटे तक कट रही बिजली… केजरीवाल क्या शीला दीक्षित से मिल गए हैं?

Krishna Kant : शीला दीक्षित ने मेरी जानकारी में कभी बिजली के लिए आंदोलन नहीं किया था. मैं पांच साल से दिल्ली में हूं. यहां कभी लाइट जाती थी तो दस पांच मिनट के लिए. आंदोलन कुमार ने बिजली और पानी के लिए आंदोलन किया. सरकार में आए. अब बिजली पांच छह घंटे तक कट रही है. वह आंदोलन पहले से मिल रही बिजली भी गायब करने के लिए था? पता नहीं. वे जानें. कांग्रेस ने केंद्र में जमकर भ्रष्टाचार किया. उसका खामियाजा केंद्र के साथ शीला ने भी उठाया. मुख्यमंत्री के तौर पर शीला भ्रष्ट थीं तो आंदोलन कुमार ने उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा? क्या वे शीला से मिल गए हैं, जैसा भाजपा कांग्रेस के लिए कहते थे?

<p>Krishna Kant : शीला दीक्षित ने मेरी जानकारी में कभी बिजली के लिए आंदोलन नहीं किया था. मैं पांच साल से दिल्ली में हूं. यहां कभी लाइट जाती थी तो दस पांच मिनट के लिए. आंदोलन कुमार ने बिजली और पानी के लिए आंदोलन किया. सरकार में आए. अब बिजली पांच छह घंटे तक कट रही है. वह आंदोलन पहले से मिल रही बिजली भी गायब करने के लिए था? पता नहीं. वे जानें. कांग्रेस ने केंद्र में जमकर भ्रष्टाचार किया. उसका खामियाजा केंद्र के साथ शीला ने भी उठाया. मुख्यमंत्री के तौर पर शीला भ्रष्ट थीं तो आंदोलन कुमार ने उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा? क्या वे शीला से मिल गए हैं, जैसा भाजपा कांग्रेस के लिए कहते थे?</p>

Krishna Kant : शीला दीक्षित ने मेरी जानकारी में कभी बिजली के लिए आंदोलन नहीं किया था. मैं पांच साल से दिल्ली में हूं. यहां कभी लाइट जाती थी तो दस पांच मिनट के लिए. आंदोलन कुमार ने बिजली और पानी के लिए आंदोलन किया. सरकार में आए. अब बिजली पांच छह घंटे तक कट रही है. वह आंदोलन पहले से मिल रही बिजली भी गायब करने के लिए था? पता नहीं. वे जानें. कांग्रेस ने केंद्र में जमकर भ्रष्टाचार किया. उसका खामियाजा केंद्र के साथ शीला ने भी उठाया. मुख्यमंत्री के तौर पर शीला भ्रष्ट थीं तो आंदोलन कुमार ने उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा? क्या वे शीला से मिल गए हैं, जैसा भाजपा कांग्रेस के लिए कहते थे?

जो भी हो, यह तथ्य है कि शीला पर आरोप लगाने वाले सत्ता में हैं. शीला मौज में हैं. दिल्ली तब जैसी थी, उससे ज्यादा परेशानी में है. बिजली की समस्या बढ़ रही है. जिन इलाकों में पानी की समस्या थी, वह बरकरार है. वह आंदोलन सिर्फ सत्ता में आने के लिए था? केंद्र की भाजपा और दिल्ली की आप सरकार ने कांग्रेस के प्रति मेरी चिढ़ खत्म कर दी. तब मैं चाहता था कि कांग्रेस हट जाए. कांग्रेस से कोई लगाव—जुड़ाव न होने के बावजूद अब लगता है कि कांग्रेस इन जमूरों से भली थी. ये दोनों उसी की तैयार की गई जमीन पर अपने अपने शगूफे छोड़ रहे हैं. क्या परिवर्तन का मतलब सिर्फ कुर्सी पर बैठा चेहरा बदल जाना होता है? स्थितियां तो बदलने की जगह बदतर हो रही हैं. वैसे कांग्रेस कभी आएगी तो भी मैं विपक्ष में ही रहूंगा.

पत्रकार कृष्ण कांत के फेसबुक वॉल से.

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