तिरुवनंतपुरम। केरल सरकार ने एक अनोखा फैसला किया है। अब कोई भी रचनात्मक कार्य करने से पहले राज्य सरकार की अनुमित लेनी होगी। केरल सरकार के फैसले पर विवाद शुरू हो गया है। राज्य सरकार के कर्मचारियों का मानना है कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मक स्वतंत्रता पर हमला है। केरल सरकार के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग की ओर से जारी इस आदेश के मुताबिक राज्य सरकार के जो कर्मचारी किताब छपवाना चाहते हैं, उन्हें पहले लिखित में प्रकाशक और भूमिका लिखने वाले की जानकारी देनी होगी और किताब का मूल्य भी बताना होगा।
यह नियम निबंध और लिखित रिसर्च पेपर के प्रकाशन, टीवी चैनलों पर प्रकाशित होने वाले कार्यक्रमों और खबरों का हिस्सा बनने, प्राइवेट रेडियो के कार्यक्रम का हिस्सा बनने, टीवी पर खेल प्रतियोगिताओं और शौकिया नाटक में भाग लेने पर भी लागू होगा।
यह सब करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। साथ ही, दूरदर्शन या आकाशवाणी के अलावा किसी भी टीवी चैनल पर होने वाली बहसों में शामिल होने अथवा चैनल पर न्यूज पढऩे से पहले भी अनुमति लेनी होगी। इस आदेश के मुताबिक कर्मचारियों को एक हलफनामा भी देना होगा, जिसमें उन्हें घोषणा करनी होगी कि वे अपनी किताब में कोई भी ऐंटी-नैशनल सामग्री या सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाली कोई बात नहीं लिखेंगे।
विधानसभा में विपक्ष के नेता और अनुभवी मार्क्सवादी नेता वीएस अच्युतानंद ने सरकार के इस आदेश को सांस्कृतिक फासीवाद करार दिया। अच्युतानंद ने कहा कि यह आदेश आपातकाल की याद दिलाता है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। सीएम ओमन चांडी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि यह आदेश दिखाता है कि वह संघ परिवार के समर्थक रहे हैं जो सांस्कृतिक फासीवाद के अवतार का समर्थन करता है।
इसी बीच राज्य सेवा संगठनों की संयुक्त परिषद ने उस आदेश को याद करने की मांग की, जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारियों की रचनात्मक स्वतंत्रता को नियंत्रित करने की बात की गई थी। काउंसल चेयरमैन जी. मोतीलाला और जनरल सेक्रटरी एस. विजय कुमार ने कहा कि संविधान ने देश के सभी नागरकिों को यह आजादी दी है, जिसे राज्य सरकार का यह आदेश बाधित कर रहा है।