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बिहार विधानसभा चुनाव में मीडिया दिग्गजों की टिप्पणियां भी हैं अहम, जनमत-निर्माण पर डाल सकती हैं खास असर

2 अक्टूबर से 5 नवंबर तक 5 चरणों में होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव का मंच पूरी तरह सच चुका है। बुधवार (09/09/2015)को  चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो चुकी है। चुनाव आयोग ने बिहार के 38 में से 29 जिले नक्सल प्रभावित बताए हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक तारीखों का ऐलान त्योहारों को ध्यान में रखकर किया गया है । चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे सभी उम्मीदवारो के भाग्य का फैसला 8 नवंबर के दिन हो जाएगा, मतलब चुनाव पर चली रही सभी अटकलों पर विराम लगने के साथ ही बिहार में नई सरकार बनने की तस्वीर भी साफ हो जाएगी।

<p>2 अक्टूबर से 5 नवंबर तक 5 चरणों में होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव का मंच पूरी तरह सच चुका है। बुधवार (09/09/2015)को  चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो चुकी है। चुनाव आयोग ने बिहार के 38 में से 29 जिले नक्सल प्रभावित बताए हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक तारीखों का ऐलान त्योहारों को ध्यान में रखकर किया गया है । चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे सभी उम्मीदवारो के भाग्य का फैसला 8 नवंबर के दिन हो जाएगा, मतलब चुनाव पर चली रही सभी अटकलों पर विराम लगने के साथ ही बिहार में नई सरकार बनने की तस्वीर भी साफ हो जाएगी।</p>

2 अक्टूबर से 5 नवंबर तक 5 चरणों में होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव का मंच पूरी तरह सच चुका है। बुधवार (09/09/2015)को  चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो चुकी है। चुनाव आयोग ने बिहार के 38 में से 29 जिले नक्सल प्रभावित बताए हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक तारीखों का ऐलान त्योहारों को ध्यान में रखकर किया गया है । चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे सभी उम्मीदवारो के भाग्य का फैसला 8 नवंबर के दिन हो जाएगा, मतलब चुनाव पर चली रही सभी अटकलों पर विराम लगने के साथ ही बिहार में नई सरकार बनने की तस्वीर भी साफ हो जाएगी।

बिहार की 243 सीटों पर होने जा रहे इस चुनाव पर जहां पूरे देश की मीडिया की खास नजर है, वहीं इस बार के चुुनाव में  ईवीएम मशीन पर कैंडिडेट की फोटो लगी होना भी चुनाव में खास बात होगी।  लेकिन फिलहाल बिहार के 6.68 करोड़ मतदाताओं के जनमत-निर्माण में मीडिया की अहम भूमिका होगी । मीडिया के कई दिग्गज न्यूज़ चैनल्स, न्यूज़ पेपर, न्यूज़ मैगजीन , न्यूज़ वेबसाइट के साथ ही  सोशल मीडिया ( फेसबुक, ट्विटर आदि) पर अपने कमेंट करते देखे जा सकते हैं।

हाल ही में जब ‘इंडिया टीवी’ के मैनेजिंग एडिटर ने ‘इंडिया टीवी और सी-वोटर’ के ओपिनियन पोल के मुताबिक बताया कि आज की तारीख (09/09/2015) में बीजेपी गठबंधन के लिए बिहार से अच्छे संकेत नहीं हैं तो तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं। इस बीच ‘शुक्रवार’ मैगजीन के वर्तमान एडिटर और ‘जनसत्ता’ अखबार के पूर्व ब्यूरो चीफ अंबरीश कुमार ने फेसबुक पर लिखा कि जो ओपीनियन पोल आज (09/09/2015) लालू-नीतीश को आगे दिखा रहे हैं, वो 10-15 दिन बाद पीछे भी दिखा सकते है, उन्होंने कहा कि उनका पूर्व अनुभव तो यही बताता है।

वहीं, ‘इंडिया न्यूज़’ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने फेसबुक पर चुनाव से संबंधित अपने एक लेख में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए लिखा कि कुल मिलाकर बिहार का चुनाव महागठबंधन के लिए पारंपरिक जातिगत वोट बैंक का खेल है और बीजेपी के लिये अपने वोट बैंक ( अगड़े और यादव बगैर ओबीसी ) को संभालने के साथ-साथ महागठबंधन के वोट बैंक को किसी और के जरिए तोड़ने का स्मार्टगेम। दोनों तरफ के लोगों को एक दूसरे की चालें समझ में अा रही हैं।  महागठबंधन के लिए मैदान तैयार है, जबकि एनडीए को अभी अपने साथी साधने हैं।

वहीं, इस बीच फेसबुक पर ‘समाचार प्लस (उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड और राजस्थान)’  से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ने फेसबुक पर बिहार चुनाव से संबंधित 2 महत्वपूर्ण सवाल उठाए। एक तो ये कि क्या बिहार में एनडीए को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना देना चाहिए और दूसरा ये कि क्या बिहार-उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ओवैसी अहम भूमिका निभाएंगे या फिर महज एक और बुखारी साबित होंगे।

पहले सवाल पर खुद अमिताभ अग्निहोत्री जी के मुताबिक एनडीए को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए। जिस पर मेरी प्रतिक्रिया ये है कि वैसे तो किसी भी गठबंधन के लिए ये फायदे की बात हो सकती है। लोगों के मन-मस्तिष्क में भी अगर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए गए उस नेता की छवि अच्छी रही या उससे कोई खास उम्मीद रही तो फायदा मिलेगा। लेकिन, अगर नहीं रही तो नुकसान भी हो सकता है, जैसा कि दिल्ली के चुनाव में देखने को मिला।  किरण बेदी की छवि तो काफी लोगों के मन में अच्छी थी, लेकिन कई गुट उनको मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं देखना चाहते थे। लोगों को भी उनकी बजाय अरविंद केजरीवाल से ज्यादा उम्मीद थी।  हालांकि, वैसे देखा जाए तो ये बात कहीं ना कहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधायी शासन की बजाय अध्यक्षीय शासन को बढ़ावा देने वाली भी होती है।  ऐसे में राजनीतिक फायदा और नुकसान दोनों का खतरा पहले से ज्यादा बढ़ जाता है।  साथ ही राजनीतिक सिद्धांतों के तहत लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल नहीं हो सकती ये बात। अच्छा तो यही है कि चुनाव के बाद विधायक दल मुख्यमंत्री पद के लिए अपना नेता चुने।  इससे कोई भी पार्टी या गठबंधन मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के हारने पर होने वाली बड़ी फजीहत से भी बच सकती है और किसी भी तानाशाही चलने की संभावना भी कम या नहीं के बराबर ही रहेगी। भविष्य में एक ही व्यक्ति की तानाशाही चलने का खतरा भी बढ़ जाता है। केंद्र में मोदी सरकार और दिल्ली में केजरीवाल सरकार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

वहीं, औवेसी के बिहार और फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भूमिका पर मैं ये कहना चाहूंगा कि दोनों ही राज्यों में पहले से ही शातिर और दबंगई दिखाने वाले नेताओं की कोई कमी नहीं है, दोनों ही प्रदेशों में मामला हाउसफुल है, वेटिंग लिस्ट भी लंबी है। ऐसे में औवैसी जैसे नेताओं की दाल गलना मुश्किल है।  वहीं, ओवैसी पर ‘इंडिया न्यूज़’ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने फेसबुक पर चुनाव से संबंधित अपने एक लेख में कहा है कि ओवैसी की किशनगंज की रैली में जबरदस्त भीड़ थी, इसके बावजूद ये दीगर बात है कि ओवैसी अभी चुनाव लड़ने को लेकर वेट एंड वॉच वाले मूड में हैं। इसकी अपनी वजह है और अगर उनकी मुराद पूरी हो गई तो आप उन्हें सीमांचल में पूरे दमखम से चुनाव लड़ते देखेंगे।

बिहार चुनाव पर अपनी टिप्पणी में जहां ‘लाइव इंडिया’ चैनल से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार सतीष के. सिंह ने कहा कि असल तस्वीर को नतीजे आने के बाद ही साफ होगी, लेकिन एनडीए का पलड़ा भी कमजोर नहीं दिखता। वहीं,  चुनाव के तारीखों के ऐलान के बाद ‘न्यूज़ एक्सप्रेस’ और ‘मौर्या टीवी’ जैसे चैनल के जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार जी ने फेसबुक पर लिखा कि बिहार के चुनावी सर्कस में झूठी जुमलेबाज़ियों, जातिवाद, संप्रदायवाद और मतदाताओं को बहलाने-फुसलाने-भड़काने आदि के तिकड़म खूब होंगे और परिणाम आने के बाद कहा जाएगा कि लोकतंत्र की विजय हुई या नहीं। एक और धोखाधड़ी, एक और फर्ज़ीवाड़ा जनता-जनार्दन के साथ होगा और कुछ समय बाद फिर वो पाएगी कि उसे फिर से छला गया है। साथ ही उन्होंने आम आदमी पार्टी के नेता रह चुके योगेंद्र यादव की इस बात से भी सहमति जताई कि जीते भले ही कोई, लेकिन हारेगा बिहार।

बिहार चुनाव पर वरिष्ठ पत्रकार, व्यंग्यकार और आर्थिक मामलों के विशेष जानकार आलोक पुराणिक जी चुटकी लेते हुए कहते हैं कि आनेवाले कई महीनों तक बिहार से पत्रकारों, व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों को रोजगार मिलने वाला है। कौन कहता है कि बिहार में रोजगार के अवसर नहीं है?

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वहीं, ‘न्यूज़ 24’ और ‘एबीपी न्यूज़’ सहित कई नेशनल और रीज़नल न्यूज़ चैनल बिहार चुनाव पर कई खास प्रोग्राम लेकर दर्शकों के सामने हैं। देखते हैं इस चुनाव में अभी और कैसी रोचक और जरूरी जानकारी देखने-सुनने को मिलती है।

लेखक Sandeep Kumar Srivastava वर्तमान में राजस्थान पत्रिका के डिजिटल सेक्शन में Sr. Content Executive के रूप में कार्यरत हैं.

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