उत्तराखण्ड की माध्यमिक शिक्षा को काफी हद तक पटरी पर लाने वाले अतिथि शिक्षकों को उनके कार्य का पुरस्कार देते हुए हटा दिया गया है। शिक्षा और शिक्षकों की इससे बड़ी दुर्दशा नहीं हो सकती। यह सरस्वती और गुरु दोनों का अपमान है। यहां अच्छे कार्यों में नियम आड़े आते हैं, यही बड़ा दुर्भाग्य है। किसी नेता के आदमी को ठेका दिलाना होता तो शायद जीओ एक घण्टे में भी बन जाए। राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में एलटी और प्रवक्ताओं की नियुक्ति में देरी के दृष्टिगत सरकार ने इस शिक्षण सत्र के लिए 6214 अतिथि शिक्षक 89 दिनों के लिए नियुक्त किया था।
इन दिनों में इतवार भी शामिल थे। इन्हें 150 रुपये प्रीति पीरियड मिलता था। ब्लाक स्तर पर हुई इनकी नियुक्ति में आरक्षण और शैक्षिक योग्यता के मानकों का पूरा ध्यान रखा गया, जबकि वर्षों पहले शिक्षा मित्र-शिक्षा बन्धु नियुक्ति मामले में इन मामलों में शिथिलता बरती गयी थी। इनको मिलने वाले पैसे के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि ये अपना गुजारा कैसे करते होंगे, फिर भी इन्होंने इसे चुपचाप सहन किया। बता दें कि ये लोग 3 महीने में जितना कमाते होंगे, उतनी एक चपरासी की तनख्वाह है। यह स्थिति उत्तराखण्ड में उच्च शिक्षा की बेकद्री का ज्वलन्त प्रमाण है।
अब इन गेस्ट टीचरों को हटाने का फरमान सुना दिया गया है। बताया गया कि हरीश रावत 31 मार्च इस सम्बन्ध में सकारात्मक घोषणा करने वाले थे, लेकिन तब तक सरकार ही पटरी से उतर गयी। ‘नौकरी’ की आस में बैठे इन शिक्षकों की दशा बहुत दयनीय है। इन्हें भी राज्य में सियासत की धींगामुश्ती का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। वैसे इनका मामला कोर्ट में चल रहा है। पता चला है कि सरकार ने इस सम्बन्ध में अपना पक्ष रख दिया है। उम्मीद की जनि चाहिए कि राष्ट्रपति शासन में इन लोगों की जल्द सुनी जाएगी।
डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल
(वरिष्ठ पत्रकार)
देहरादून
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