अमिताभ जी, आपने एक तोहमत मीडिया पर ठोंक दी. आपने तर्क भी सही गढ़े, मगर एक बात बताइए कि आप ने (मेरा मतलब व्यक्तिगत नहीं सिस्टम से है और आप उस सिस्टम के हिस्सा हैं) कभी ये सोचा 64 साल से आप लोग संविधान की शपथ लेकर भी आपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पा रहे हैं? और मीडिया तो बिना कोई शपथ लिए बिना किसी विशेषाधिकार के अपना कर्तव्य निभाने की कोशिश तो कर रहा है. भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशो में मीडिया के लिए उनके लोकतान्त्रिक देश में कोई अलग से व्यवस्था नहीं है. केवल अभिव्यक्ति की आजादी के तहत जो कि हर भारतीय को मिला है हम मीडिया के लोग भी चीखते चिल्लाते है. हम आम जनता से अलग कहाँ है?
आप (केवल अमिताभ जी आप नहीं पूरे सिस्टम के अधिकांश लोग जो भी है) आईपीएस हैं, संविधान ने आपको भी कुछ विशेष शक्तियां प्रदान की हैं, अपने कर्तव्यो का पालन करने के लिए, जिन्हें आप निजी हित में इस्तेमाल करते हैं. एक आईएएस जब जिलाधिकारी बनता है तो असीमित शक्तिओं से उपकृत शहंशाह जैसी हरकतें करने लगता है. उसका बेटा सरकारी पेट्रोल से चलने वाली गाड़ी से स्कूल जाता है. क्यूँ? उसके रिश्तेदार और परिवार सरकारी गाड़ी से हाट बाजार का मजा लूटते हैं? खैर, ये बहस का मुद्दा नहीं रह गया अब? क्यूंकि मेरी नजर में ये अब खबर नहीं है.
बात अन्ना के आन्दोलन पर मीडिया की एकतरफा खबर की थी. मेरे अनुभव के अनुसार खबर केवल वही है जो छुपी हुई है. और भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी अब कोई खबर नहीं रह गयी है क्यूंकि ये सर्व व्याप्त है. अब तो खबर वो है, जो इसे रोक लगाने पर व्यवस्था की बात करे. क्यूंकि ऐसा अभी भी चंद लोग ही कर पा रहे थे, लिहाजा ये जरूरी था कि मीडिया जिसे 64 वर्षो के बाद कोई ऐसी खबर मिली जिससे सहारे भ्रष्टाचार में गोता लगा रहे लोगों को नंगा करने का मौका मिला बल्कि उसे सुधारने के लिए लगे लोगों के साथ एक बड़े समुदाय को भी जोड़ना था. ये मीडिया बखूबी कर रहा था.
अमिताभ जी आज भी भारत में मीडिया की पहुंच केवल 27 प्रतिशत है, बाकी के बेचारे 73 प्रतिशत लोग नहीं जानते नेता और सरकारी लोग कैसे उनका हक खा रहे हैं. उन्हें ये बात तो मालूम है कि कुछ गड़बड़ है मगर गड़बड़ वही आदमी कर रहा है, जो 5 साल में एक बार आकर मीठी बात करके और कुछ शराब, साडी आदि का लालच देकर वोट लेता है, ये बात ठीक से नहीं मालूम. अमिताभ जी कड़वा सच है कि देश के दूदराज इलाकों में 70 प्रतिशत जनता ये तक नहीं जानती कि उनका जिलाधिकारी और एसपी कौन है, वो बेचारा दो जून की रोटी की तलाश में चक्की के पाट की तरह चल रहा है.
आप केवल मेरे बारे में मेरी साइट पर आकर देख लें और नीचे दिए गए लिंक को देख लें तो कुछ संतोष तो जरूर मिलेगा कि मीडिया सही कर रही थी, हम हमेशा न ऐसे थे और न ऐसे होंगे. बस मौका मिला तो और लोहा गरम हुआ तो हथोड़ा मारने से नहीं चूकेंगे, मगर दिल में जज्बात बिना किसी सवैंधानिक शपथ के यही रहेंगे- वन्दे मातरम, भारत माता की जय, सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा.
लेखक पंकज दीक्षित पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.