लखनऊ: आतंकवाद के आरोप में जयपुर जेल में बंद युवकों से मिलने गए परिजनों पर जेल अधिकारियों द्वारा चालान किए जाने की घटना की निंदा करते हुए रिहाई मंच ने दोषी जेल अधिकारियों को तत्काल निलम्बित करने की मांग की है। मंच ने अपने बयान में इसे राजस्थान सरकार और अभियोजन पक्ष की सांप्रदायिक कार्रवाई बताते हुए कहा है कि ऐसा करके राजस्थान पुलिस बेगुनाहों के परिजनों को बदले की भावना के तहत प्रताड़ित कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष के पास आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सुबूत तक नहीं है।
रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि 20 सितम्बर की सुबह जयपुर जेल में बंद आजमगढ़ निवासी सलमान और मोहम्मद सैफ से बकरीद के मौके पर मिलने उनके भाई अरमान और अरसलान जयपुर गए थे। लेकिन जयपुर जेल प्रशासन ने दोनों को धारा 109 और 151 यानी संदिग्ध हालत में पकड़े जाने और शांति भंग की आशंका में गिरफ्तार कर लिया जिन्हें एपीसीआर के राशिद हुसैन के प्रयास से जमानत पर रिहा किया गया। उन्होंने कहा कि जयपुर जेल प्रशासन की यह कार्रवाई अपने बेगुनाह परिजनों की पैरवी कर रहे लोगों को डराने-धमकाने की कोशिश है। क्योंकि अभियोजन पक्ष और राजस्थान पुलिस को मालूम है कि आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है और उनके रिहा हो जाने के बाद सरकार की काफी बदनामी होनी है। रिहाई मंच नेता ने कहा कि इससे पहले भी जयपुर में पुलिस द्वारा कैदियों को ईद के दिन पीटने और उन्हें नमाज न पढ़ने देने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जो साबित करता है कि राजस्थान की जेलों में मुसलमानों कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है जिसका स्वतः संज्ञान मानवाधिकार आयोग को लेना चाहिए। रिहाई मंच नेता ने कहा कि जिस जयपुर विस्फोट मामले में बंद बेगुनाहों से मिलने पर परिजनों के खिलाफ मुकदमा किया जा रहा है उस पूरी घटना की ही दुबारा जांच होनी चाहिए। क्योंकि खुद मौजूदा केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने इस घटना के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए 31 जुलाई 2008 को आरोप लगाया था कि इसे केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार और वोट के बदले नोट प्रकरण से ध्यान हटाने के लिए करवाया था। रिहाई मंच नेता ने कहा कि आज जब भाजपा सत्ता में है और खुद सुषमा स्वराज कैबिनेट मंत्री हैं उन्हें अपने आरोपों की जांच करानी चाहिए और बेगुनाह मुस्लिम युवकों को रिहा किया जाना चाहिये।
आजमगढ़ रिहाइ मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि जिस सलमान के भाई को उससे मिलने पर उत्पीड़ित किया गया वह दिल्ली की अदालत से नाबालिग साबित हो चुका है और पुलिस तथा एटीएस की पहले ही बहुत बदनामी हो चुकी है और अब इस घटना ने फिर साफ कर दिया है कि उसके भाई को डराकर अभियोजन पक्ष पैरोकारों पर अपनी कुंठा निकाल रहा है। परिजनों पर संदिग्ध हालत में पाए जाने और उनके खिलाफ शांति भंग की आशंका में मुकदमा दर्ज करना जयपुर पुलिस की मुस्लिम विरोधी बीमार मानसिकता को दर्शाता है जिन्हें हर मुस्लिम नाम वाला शख्स संदिग्ध लगता है। मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि मुस्लिमों के प्रति पुलिस की यही बीमार मानसिकता उनसे मुसलमानों के फर्जी मुठभेड़ों में हत्या करवाती है। इसलिए ऐसे मुकदमे लिखने वाले जेल अधिकारियों को तत्काल निलम्बित कर मानसिक इलाज कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानीय सांसद व सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष होने के नाते मुलायम सिंह यादव जिन्होंने खुद विधानसभा चुनाव में आतंकवाद के आरोप में कैद बेगुनाहों को छोड़ने का वादा किया था और सत्ता में आने के बाद पूरी तरह मुकर गए हैं। उनको इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।