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रजत शर्मा से सुमित्रा महाजन कह रही थीं कि उन्‍हें अंत तक समझ ही में नहीं आया कि कांग्रेस क्‍या चाहती है

Abhishek Srivastava : एक बहुत प्राचीन लोक कथा है एक किसान, उसके बेटे और एक गदहे के बारे में। सब ने सुनी होगी। मैंने बचपन में इसे ईसप की कथाओं में पढ़ा था, लेकिन कहीं अंदलूसिया के इब्‍न सईद को तो कहीं ज्‍यां दे ला फॉन्‍टेन को इसका जनक बताया जाता है। किस्‍सा-कोताह कुछ यूं है कि एक किसान अपने बेटे और गदहे के साथ कहीं जा रहा होता है। रास्‍ते में अलग-अलग जगहों पर मिलने वाले लोग उसे अलग-अलग सलाह देते हैं। कोई लड़के को गदहे पर बैठने को लेकर लताड़ता है तो कोई बाप को। जब दोनों उस पर बैठ जाते हैं तो लोग गदहे से सहानुभूति जताने लग जाते हैं। अंत में बाप-बेटे गदहे को टांग कर ले जाते हैं तो गदहवा लटपटा कर एक पुल से कूद पड़ता है और पानी में डूब जाता है।

<p>Abhishek Srivastava : एक बहुत प्राचीन लोक कथा है एक किसान, उसके बेटे और एक गदहे के बारे में। सब ने सुनी होगी। मैंने बचपन में इसे ईसप की कथाओं में पढ़ा था, लेकिन कहीं अंदलूसिया के इब्‍न सईद को तो कहीं ज्‍यां दे ला फॉन्‍टेन को इसका जनक बताया जाता है। किस्‍सा-कोताह कुछ यूं है कि एक किसान अपने बेटे और गदहे के साथ कहीं जा रहा होता है। रास्‍ते में अलग-अलग जगहों पर मिलने वाले लोग उसे अलग-अलग सलाह देते हैं। कोई लड़के को गदहे पर बैठने को लेकर लताड़ता है तो कोई बाप को। जब दोनों उस पर बैठ जाते हैं तो लोग गदहे से सहानुभूति जताने लग जाते हैं। अंत में बाप-बेटे गदहे को टांग कर ले जाते हैं तो गदहवा लटपटा कर एक पुल से कूद पड़ता है और पानी में डूब जाता है।</p>

Abhishek Srivastava : एक बहुत प्राचीन लोक कथा है एक किसान, उसके बेटे और एक गदहे के बारे में। सब ने सुनी होगी। मैंने बचपन में इसे ईसप की कथाओं में पढ़ा था, लेकिन कहीं अंदलूसिया के इब्‍न सईद को तो कहीं ज्‍यां दे ला फॉन्‍टेन को इसका जनक बताया जाता है। किस्‍सा-कोताह कुछ यूं है कि एक किसान अपने बेटे और गदहे के साथ कहीं जा रहा होता है। रास्‍ते में अलग-अलग जगहों पर मिलने वाले लोग उसे अलग-अलग सलाह देते हैं। कोई लड़के को गदहे पर बैठने को लेकर लताड़ता है तो कोई बाप को। जब दोनों उस पर बैठ जाते हैं तो लोग गदहे से सहानुभूति जताने लग जाते हैं। अंत में बाप-बेटे गदहे को टांग कर ले जाते हैं तो गदहवा लटपटा कर एक पुल से कूद पड़ता है और पानी में डूब जाता है।

इस कथा के मूल स्रोत पर विवाद है, हालांकि इसका सबसे दिलचस्‍प उपदेशात्‍मक संस्‍करण मुल्‍ला नसरुद्दीन के यहां मिलता है। वे कहते हैं, ”गदहे की पूंछ कभी जनता के सामने मत छांटो। कोई कहेगा कम कटी, कोई कहेगा ज्‍यादा। अंत में होगा ये कि सबकी मानते-मानते पूंछ समूल गायब हो जाएगी।” कल रजत शर्मा से सुमित्रा महाजन कह रही थीं कि उन्‍हें अंत तक समझ ही में नहीं आया कि कांग्रेस क्‍या चाहती है। पहले कांग्रेस ने कहा कि बहस करनी है। सरकार जब बहस के लिए तैयार हुई तो कांग्रेस इस्‍तीफा मांगने लगी। फिर उसने संसद नहीं चलने दी। मतलब प्रधान पहले तो खुद संसद में बैठा, फिर उसने अपने गुर्गों को मोर्चे पर लगाया, फिर दोनों ने मिलकर संसद को संभालने की कोशिश की। प्रसारण लाइव हुआ। गदहे की पूंछ जनता के सामने छांटने की गलती करते हुए इन्‍होंने 25 सांसदों को निलंबित कर दिया और संसद को गदहे की तरह अपने कंधे पर टांग लिया। संसद छटपटाने लगी और बिना राष्‍ट्रगान सुने कल डूब गयी।

भाई, जो हुआ, कांग्रेस वही चाहती थी। इस देश की जनता का डीएनए टेस्‍ट करवा लें। सबका डीएनए कांग्रेसी है। कांग्रेस कोई पार्टी नहीं है, इस देश का डीएनए है। थोड़ा ईमानदार, थोड़ा भ्रष्‍ट, थोड़ा चतुर, थोड़ा मूर्ख, थोड़ी नैतिकता, थोड़ा अवसरवाद, थोड़ा खानदानी, थोड़ा संन्‍यासी, थोड़ा सच, थोड़ा झूठ, ये भी सही, वो भी सही। कुल मिलाकर एक ऐसा डीएनए जो हर स्थिति में सिर्फ मौज लेता है। पूरे सत्र के दौरान कांग्रेस ने इस देश की जनता की तरह मौज काटी है, और कुछ नहीं। एनडीए सरकार मुल्‍ला नसरुद्दीन के इस फॉर्मूले को समझ पाने में नाकाम रही और उसने अपनी सार्वजनिक हो चुकी मूर्खता में सत्र को डुबो दिया। अब प्रधान और उसका 344 का कुनबा कांग्रेस के 44 के लघु-कुनबे को ‘ए‍क्‍सपोज़’ करेगा। सोचिए, किसान अगर चिल्‍ला-चिल्‍ला कर ढिंढोरा पीटे कि जनता की सलाह ने उसका गदहा डुबा दिया, तो कौन यकीन करेगा? सब मौज ही लेंगे न?

पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.

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