सुना है रवीश कुमार ने फेसबुक और ट्विटर छोड़ दिया है। उनका कहना है कि लोग उन्हें गरिया रहे थे और यह गरियाने वाले लोग प्रायोजित किस्म के लोग है। भाई रवीश जी, यह बात आपको शोभा नहीं देती। आप राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पहचान पा चुके हिन्दी पत्रकार हैं… कोई गरिया रहा था, जो डांट के जवाब देते, नहीं समझ आता अनफ्रैंड कर देते, छाँटने के बाद जो बचते उन्हीं मित्र लोगों के बीच ही पोस्ट शेयर करते। ये सारे विकल्प तो हैं फेसबुक पर। पर आपने ब्लॉग, पोस्ट और तमाम sharing methods के माध्यम से सिर्फ दोषारोपण की ही बातें शेयर की। यह गलत है.. किसने कहा था आपसे कि हज़ारों की संख्या में फ़्रेंड्स को जोड़िये और लोकप्रियता के अंधयुद्ध का हिस्सा बनिए? और, अगर जोड़ ही लिया तो इधर-उधर शिकायत की बजाय उन्हें नियंत्रित करते, अनफ्रैंड करते… पर मैदान ही छोड़ के भाग जाना तो कायराना हरकत है और वो आप जैसे पत्रकार को शोभा नही देता।
मैं भी कभी-कभी किसी बहस में उलझ के अशोभनीय टिप्पणियों का शिकार बनता हूँ, मन करता है कि फेसबुक ही छोड़ दूँ…. पर फिर कुछ समय के बाद नई ऊर्जा से ओतप्रोत हो फिर प्रतिरोध करता हूँ, ऐसे लोग नहीं मानते तो अनफ्रैंड कर देता हूँ। भाई, फेसबुक और ट्विटर सामाजिक प्लेटफॉर्म है, इस प्लेटफॉर्म पर आपको कैसे लोगों के साथ रहना है यह चुनाव तो आपके ही हाथ में है। हज़ारों की मित्रसंख्या जोड़ आप लोकप्रिय बनने की बजाय खुद को बेवक़ूफ़ बनाते है और अंजान दुनिया में ही भ्रमित होते रहते हैं, ऐसे में तो कोई भी कुछ भी कह देगा या गरिया देगा। उन्हें ही जोड़े जिन्हें आप जानते हों, जो आपकी रूचि के हों, आप के प्रोफेशन से जुड़े हो, घर परिवार या मित्रों के मित्र हों। व्यर्थ के दिखावे में न पड़े।
मैं जब फेसबुक पर नया था तब लोगों की ज्यादा से ज्यादा friend-list देख खूब प्रभावित होता था, पर एक समय जब मेरी फ्रेंडलिस्ट खुद 1600 के पार जाने लगी तो मुझे दिक्कत होने लगी, तब मैंने लोगो को unfriend करना शुरू किया, अब यह संख्या 500 से 600 के बीच ही रखता हूँ। फेसबुक पर आदर्श मित्र संख्या 500 के आसपास होती है और जब यह संख्या 1000 से ज्यादा होने लगेगी तो आपको या तो अपने ही लोगों की पोस्ट से दूर कर देगी या इसे मैनेज करने को दिनभर फेसबुक पर ही बैठे रहना पड़ेगा। दिन भर फेसबुक मतलब खुद तनावग्रस्त होइए। इन्हीं रविश को शुरुआत में जब मैंने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी तो वो रिक्वेस्ट उनकी बड़ी फ्रेंडलिस्ट के कारण नहीं गयी, फिर मैंने इन्हें follow करना शुरू किया, पर ऐसे में मैं उनके पोस्ट पर कमेंट नहीं लिख पाता था। ऐसे में मैंने इन्हें मैसेज किया कि मुझे फ्रेंडलिस्ट में खुद की पहल से जोड़ लीजिये, इन्होंने तब जवाब दिया कि मित्र अभी माफ़ करे, अभी इन्ही मित्रों के साथ “चकल्लस” करने का इरादा है। हालाँकि, बाद में कोई 6 माह बाद मैंने नोटिस किया कि तब इनके पोस्ट पर बिना दुबारा फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे कमेंट्स लिखने का ऑप्शन मुझे मिल गया। भाई रविश जी, तब तो आप हज़ारों की मित्रमंडली के बीच चकल्लस करने का आनंद ले रहे थे और जब यह चकल्लस व्यक्तिगत हो गया और कुछ अशिष्ट अपनी मर्यादाएं लांघने लगे तो आप अचानक असामाजिक हो गए..? ये मौका तो आपने ही उन्हें दिया था, सो इससे बचने का तरीका भी आपको ही ढूँढना चाहिए था। आखिर, ये जीवन आपका है, और इस जीवन की सामाजिकता का स्तर कैसा हो यह निर्णय भी आपका है।
रविश की फेसबुक पोस्ट्स गवई और सीधी सपाट भाषा में अच्छी पोस्टें होती थी। इन पोस्टों को पढ़ अपनापन और आनंद की अनुभूति होती थी। जिस समाज की रविश पत्रकारिता करते हैं, इन पोस्टों में उस समाज और उनके छोटे बड़े मुद्दों पर कभी हल्केपन तो कभी गम्भीरता से बातें कहीं जाती थी। ये पोस्ट आते रहने चाहिए। रही बात गाली-गलौज की तो इसके लिए फेसबुक पर ही तमाम विकल्प हैं, जिनकी मदद से आप इन अपमानजनक परिस्थितियों से बच सकते हैं।
सामान्य सी बातें हैं, कोई रविश को भी समझाये तो बेहतर….
अजीत कुमार राय की फेसबुक वाल से…