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उच्च न्यायालय ने रेड एफम की याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेड एफएम का परिचालन करने वाली डिजिटल रेडियो ब्राडकास्टिंग लिमिटेड की याचिका पर आज केंद्र से जवाब तलब किया। सरकार ने कंपनी को एफएम लाइसेंस की तीसरे चरण की नीलामी में भाग लेने से रोक दिया है जिसे उसने चुनौती दी है। न्यायाधीश अहमद और सचदेव की पीठ ने को आज के लिए तय छद्म नीलामी में भाग लेने की मंजूरी दी। रेड एफएम जो कलानिधि मारन प्रवर्तित सन टीवी समूह का उद्यम है। अदालत ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस मामले में नोटिस जारी कर 24 जुलाई तक उसका इसका जवाब दाखिल करने को कहा है।

<p>नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेड एफएम का परिचालन करने वाली डिजिटल रेडियो ब्राडकास्टिंग लिमिटेड की याचिका पर आज केंद्र से जवाब तलब किया। सरकार ने कंपनी को एफएम लाइसेंस की तीसरे चरण की नीलामी में भाग लेने से रोक दिया है जिसे उसने चुनौती दी है। न्यायाधीश अहमद और सचदेव की पीठ ने को आज के लिए तय छद्म नीलामी में भाग लेने की मंजूरी दी। रेड एफएम जो कलानिधि मारन प्रवर्तित सन टीवी समूह का उद्यम है। अदालत ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस मामले में नोटिस जारी कर 24 जुलाई तक उसका इसका जवाब दाखिल करने को कहा है।</p>

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेड एफएम का परिचालन करने वाली डिजिटल रेडियो ब्राडकास्टिंग लिमिटेड की याचिका पर आज केंद्र से जवाब तलब किया। सरकार ने कंपनी को एफएम लाइसेंस की तीसरे चरण की नीलामी में भाग लेने से रोक दिया है जिसे उसने चुनौती दी है। न्यायाधीश अहमद और सचदेव की पीठ ने को आज के लिए तय छद्म नीलामी में भाग लेने की मंजूरी दी। रेड एफएम जो कलानिधि मारन प्रवर्तित सन टीवी समूह का उद्यम है। अदालत ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस मामले में नोटिस जारी कर 24 जुलाई तक उसका इसका जवाब दाखिल करने को कहा है।

इस बीच आज केंद्र सरकार के वकील संजीव नरूला ने अदालत से कहा कि मंत्रालय नीलामी टालने के पक्ष में नहीं है। यह 27 जुलाई को होनी है। उनका कहना था कि पूरी प्रक्रिया में दो-तीन महीने का समय लगता है और सारी तैयारी हो चुकी है। वकील ने यह भी कहा कि सरकार ने दूसरे दौर के लाइसेंसों की मियाद सितंबर तक बढा दी है। एफएम चैनलों को इसके बाद ही तीसरे चरण की व्यवस्था में प्रवेश करना है। नरूला ने यह भी कहा कि सरकार सिर्फ इस पर विचार कर रही है कि कंपनी का नियंत्रण किसके पास है और उसे कहां से कोष मिल रहा है। इसके लिए उसकी हिस्सेदारी के स्वरूप पर विचार करना जरूरी है। पीठ का मानना है कि यदि सरकार हिस्सेदारी को देखना चाहती है तो उसे निविदा में ही स्पष्ट कर देना चाहिए था।

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