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दुख-सुख

अक्षय की मौत : टीवी पत्रकारों का संगठन बहुत ज़रूरी है पर ज्यादातर में हिम्मत ही नहीं

Mayank Saxena : आपको क्या लगता है कि अक्षय सिंह मामले में आज तक, टीवी टुडे ग्रुप, लाइव मीडिया लि. और अरुण पुरी अंकल जी की अब क्या-क्या ज़िम्मेदारियां बनती हैं…और उनमें से किस-किस के लिए उनको क़ानूनी रूप से बाध्य क्या जा सकता है? कई लोगों का मानना है कि टीवी पत्रकारों का एक संगठन बहुत ज़रूरी है…सच ये है कि टीवी पत्रकारों में ज़्यादातर की हिम्मत ही नहीं है कि वो संगठन खड़ा करें, या उसका हिस्सा बनें…उनको पता है कि मैनेजमेंट की प्रतिक्रिया क्या होगी….क्या अक्षय के बाद भी आप कुछ नहीं करेंगे? अब तो वक़्त आ गया है…क्या दिल में भी नहीं सोचते आप….???? आपातकाल लगने के पहले ही कर लीजिए…बाद में पछताएंगे या सरकार के पिट्ठू हो जाएंगे… अब बात अक्षय के व्यक्तित्व के बारे में.

<p>Mayank Saxena : आपको क्या लगता है कि अक्षय सिंह मामले में आज तक, टीवी टुडे ग्रुप, लाइव मीडिया लि. और अरुण पुरी अंकल जी की अब क्या-क्या ज़िम्मेदारियां बनती हैं...और उनमें से किस-किस के लिए उनको क़ानूनी रूप से बाध्य क्या जा सकता है? कई लोगों का मानना है कि टीवी पत्रकारों का एक संगठन बहुत ज़रूरी है...सच ये है कि टीवी पत्रकारों में ज़्यादातर की हिम्मत ही नहीं है कि वो संगठन खड़ा करें, या उसका हिस्सा बनें...उनको पता है कि मैनेजमेंट की प्रतिक्रिया क्या होगी....क्या अक्षय के बाद भी आप कुछ नहीं करेंगे? अब तो वक़्त आ गया है...क्या दिल में भी नहीं सोचते आप....???? आपातकाल लगने के पहले ही कर लीजिए...बाद में पछताएंगे या सरकार के पिट्ठू हो जाएंगे... अब बात अक्षय के व्यक्तित्व के बारे में.</p>

Mayank Saxena : आपको क्या लगता है कि अक्षय सिंह मामले में आज तक, टीवी टुडे ग्रुप, लाइव मीडिया लि. और अरुण पुरी अंकल जी की अब क्या-क्या ज़िम्मेदारियां बनती हैं…और उनमें से किस-किस के लिए उनको क़ानूनी रूप से बाध्य क्या जा सकता है? कई लोगों का मानना है कि टीवी पत्रकारों का एक संगठन बहुत ज़रूरी है…सच ये है कि टीवी पत्रकारों में ज़्यादातर की हिम्मत ही नहीं है कि वो संगठन खड़ा करें, या उसका हिस्सा बनें…उनको पता है कि मैनेजमेंट की प्रतिक्रिया क्या होगी….क्या अक्षय के बाद भी आप कुछ नहीं करेंगे? अब तो वक़्त आ गया है…क्या दिल में भी नहीं सोचते आप….???? आपातकाल लगने के पहले ही कर लीजिए…बाद में पछताएंगे या सरकार के पिट्ठू हो जाएंगे… अब बात अक्षय के व्यक्तित्व के बारे में.

अक्षय सिंह को देखने वाले पर पहली नजर में जो प्रभाव आता था, वह ये कि इतना लम्बा-तगड़ा और बलिष्ठ आदमी न तो पत्रकार हो सकता है और न ही इतना हंसमुख…और जब अक्षय से आप पहली बार ही मिलते थे तो शायद बहुत लाउड की छवि बनाते थे… लेकिन फिर अगली बार मिलने पर आपको लगने लगता था कि यार…ये आदमी हर समय इतना एक्साइटेड कैसे रहता है…इतनी ऊर्जा…इतना हंसने वाला…मुझे याद है कि ज़ी बिज़नेस के न्यूज़रूम में मेरी अक्षय सिंह से अक्सर Pandey Ambarish की डेस्क…असाइनमेंट पर शाम को मुलाक़ात हो जाती थी…रिपोर्टिंग से लौट कर अक्षय और Deepak Sahu सर, अमूमन साथ में बैठे बात कर रहे होते…और अक्षय सिंह, बेहद एक्साइटेड हो कर, दिन भर के किस्से सुना रहे होते…मुझे पता है कि दीपक सर, इस हालत में भी नहीं होंगे कि वो शायद इस बारे में बात कर सकें…लेकिन अम्बरीश को याद होगा… मैं ही नहीं, जो भी अक्षय से मिलने लगता था…उसको हर अहम मौके पर खुशी के पल में या हंसते हुए, कभी उसके उस वक्त न होने की कमी खली होगी…अब शायद हमेशा खलेगी… Ankur Vijaivargiya शायद मेरे बाद मिला…और वो भी इस वक्त यही सोच रहा होगा… अक्षय होते, तो पीठ पर एक धौल मार कर कहते…अबे, ठीक है यार…दुनिया है…चलो चाय पी कर आते हैं… बस आखिरी में एक सादी बात…इतना जरूर सोचिएगा कि अगर ये प्राकृतिक मृत्यु नहीं है…तो वो कौन लोग हैं…जो इतने दुस्साहसी और निर्भीक हैं…कि दिल्ली से गए सबसे बड़े समाचार चैनल के स्पेशल कॉरेस्पॉंडेंट की जान भी ले सकते हैं…क्या उनको रोका नहीं जाना चाहिए…और अगर रोका जाना चाहिए, तो ये किसकी ज़िम्मेदारी है…न न…सरकार की नहीं…अब हमको और आपको ही आगे आ कर कुछ करना होगा…

Nikhil Anand : युवा पत्रकार अक्षय सिंह के संदिग्ध दुखद मौत पर हार्दिक श्रद्धांजलि। मैं बहुत दुखी इसलिये भी हूँ की अक्षय को लगभग 12-13 सालों से सहारा टीवी के वक्त से जानता था। अब अक्षय आँखों में आँखें डालकर मुस्कुराते हुये मजबूती से हाथ नहीं मिलाया करेगा। सबको अपने साथ की बहुत सारी यादों के साथ छोड़कर नौजवान अक्षय अब इस जवान देश में अपने सपने साकार किये बिना चला गया। कॉरपोरेट मीडिया में प्रचलित सतही परम्परा से परे जाकर आजतक चैनल (टीवी टुडे ग्रुप) अक्षय के परिवार की सुधि लेगा और परिजनों/आश्रितों का ख्याल करेगा/रखेगा – ऐसी उम्मीद जरूर करता हूँ। अक्षय की आत्मा को शांति मिले और परिवार के लिये दुख से उबरने की ताकत मिले इसकी प्रार्थना करता हूँ।

मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला देश के सबसे बड़े रैकेट में से एक है जिसमें एक पूरा सरकारी सिंडिकेट शामिल है। जैसे उत्तर प्रदेश में NRHM घोटाला जिसमें भी करीब 12 से 15 राजदार अब इस दुनिया को संदेहास्पद परिस्थितियों में अलविदा कह चुके उसी प्रकार व्यापम घोटाले के राजदार लगभग 25 से 45 लोगों की मौत हो चुकी है। लगता है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी जाँच एजेन्सी के लिये भी इस घोटाले का रहस्योदघाटन एक चुनौती ही होगी। देश के पत्रकारों के लिये भी ये एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है। खैर व्यापम के बहाने मध्य प्रदेश की प्रशासनिक अराजकता और संस्थागत कुशासन की पोल उसी कदर खुल गयी है जैसे उत्तर प्रदेश की NRHM घोटाले में खुली थी। अक्षय की मौत व्यापम के सत्य की तहकीकात के रास्ते में हुई – यह भी अजीब इत्तिफाक है। अनगिनत राजदारों को खत्म कर अब लगता है कि इस घोटाले की सी0बी0आई0 जाँच हो भी तो क्या हाथ लगेगा। लेकिन लोकतंत्र में जनता को सत्य जानने का हक जरूर है जिसके सवालों के घेरे में सिर्फ और सिर्फ शिवराज सिंह चौहान है – जिनकी हँसी उड़ गई है, आँख सूज गई है, गला बझ गया है और बोली भी दब गई है।

पत्रकार द्वय मयंक सक्सेना और निखिल आनंद के फेसबुक वॉल से.

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