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मुजफ्फर नगर कांड के पीडितों को न्याय नहीं दिला सकी सत्ता को धिक्कार

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री की जयंती, जिसे देश राष्ट्रीय पर्व के रुप में मनाता है, के दिन राष्ट्रपिता के सत्य अहिंसा के सिद्धान्तों जो भारत की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के साथ विशिष्ट पहचान के रुप में दुनिया में जाने जाते हैं को नमन।   सन् 1965 के उस विषम काल में जब अमेरिका की सैन्य सहायता से लैस पाकिस्तान पर धावा बोला और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में हमारी सेनाओं ने न केवल मुंहतोड जवाब दिया बल्कि लडाई भी जीती, अपने पैटन टैकों के ध्वस्तीकरण से तिलमिलाये अमेरीका ने भारत को गेहूं की आपूर्ति बन्द की, तो देश के प्रधान मंत्री ने देश की जनता का आह्वान किया कि वे सप्ताह में एक दिन उपवास रख लें और हम उतना राशन बचा लेंगे जितना अमेरीका से आयात होता है। लालबहादुर शास्त्री का आह्वान रंग लाया और देश की करोडों जनता ने सप्ताह में एक दिन का व्रत लिया और देश तत्कालिक खाद्यान्न समस्या से उबर गया। हम तक दूसरी कक्षा के छात्र थे और शास्त्री जी के संदेश को मानने का सौभाग्य हमें भी मिला। ऐसे कर्मवीर लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धासुमन।

<p>राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री की जयंती, जिसे देश राष्ट्रीय पर्व के रुप में मनाता है, के दिन राष्ट्रपिता के सत्य अहिंसा के सिद्धान्तों जो भारत की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के साथ विशिष्ट पहचान के रुप में दुनिया में जाने जाते हैं को नमन।   सन् 1965 के उस विषम काल में जब अमेरिका की सैन्य सहायता से लैस पाकिस्तान पर धावा बोला और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में हमारी सेनाओं ने न केवल मुंहतोड जवाब दिया बल्कि लडाई भी जीती, अपने पैटन टैकों के ध्वस्तीकरण से तिलमिलाये अमेरीका ने भारत को गेहूं की आपूर्ति बन्द की, तो देश के प्रधान मंत्री ने देश की जनता का आह्वान किया कि वे सप्ताह में एक दिन उपवास रख लें और हम उतना राशन बचा लेंगे जितना अमेरीका से आयात होता है। लालबहादुर शास्त्री का आह्वान रंग लाया और देश की करोडों जनता ने सप्ताह में एक दिन का व्रत लिया और देश तत्कालिक खाद्यान्न समस्या से उबर गया। हम तक दूसरी कक्षा के छात्र थे और शास्त्री जी के संदेश को मानने का सौभाग्य हमें भी मिला। ऐसे कर्मवीर लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धासुमन।</p>

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री की जयंती, जिसे देश राष्ट्रीय पर्व के रुप में मनाता है, के दिन राष्ट्रपिता के सत्य अहिंसा के सिद्धान्तों जो भारत की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के साथ विशिष्ट पहचान के रुप में दुनिया में जाने जाते हैं को नमन।   सन् 1965 के उस विषम काल में जब अमेरिका की सैन्य सहायता से लैस पाकिस्तान पर धावा बोला और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में हमारी सेनाओं ने न केवल मुंहतोड जवाब दिया बल्कि लडाई भी जीती, अपने पैटन टैकों के ध्वस्तीकरण से तिलमिलाये अमेरीका ने भारत को गेहूं की आपूर्ति बन्द की, तो देश के प्रधान मंत्री ने देश की जनता का आह्वान किया कि वे सप्ताह में एक दिन उपवास रख लें और हम उतना राशन बचा लेंगे जितना अमेरीका से आयात होता है। लालबहादुर शास्त्री का आह्वान रंग लाया और देश की करोडों जनता ने सप्ताह में एक दिन का व्रत लिया और देश तत्कालिक खाद्यान्न समस्या से उबर गया। हम तक दूसरी कक्षा के छात्र थे और शास्त्री जी के संदेश को मानने का सौभाग्य हमें भी मिला। ऐसे कर्मवीर लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धासुमन।

   इतिहास के बूरे दिनों में सन् 1994 में ठीक दो अक्टूबर का दिन आन्दोलनों के दमन का काला अध्याय बन गया। उत्तराखण्ड राज्य की मांग करते उत्तराखण्डियों पर मुजफ्फर नगर के रामपुर तिराहे पर जो अमानुषिक और बर्बर अत्याचार हुए। वह लोकतंत्र की गरिमा को कलंकित करने और सरकार व प्रशासन की गुण्डागर्दी के विभीत्स उदाहरण हैं। 1-2 अक्टूबर की अमावसी और लोकतांत्रिक भारत के इतिहास की काली रात जिसमें आन्दोलन को सबक सिखाने की खुली कार्यवाही में मां-बहिनों की अस्मत रौंदी गयी और आठ आन्दोलनकारियों की हत्या की गयी। यह सब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार और केन्द्र में बैठी नरसिम्हा राव सरकार के इशारे और मौन सहमति पर हुआ। मुजफ्फरनगर का तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत प्रताप सिंह व एस.पी. बुआसिंह इस कांड के खलनायक थे।
   उत्तराखण्ड के लिए ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में आन्दोलनों पर विश्वास करने वाले लोगों के लिए यह काला दिन बन गया। दमन के घृणित तरीके के बावजूद सरकारों अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी और तोहमत आन्दोलनकारियों पर मढ़ी जा रही थी। भला हो इलाहाबाद उच्च न्यायालय का जिसके आदेश से मुजफ्फरनगर कांड की सीबीआई जांच हुई और तथ्य देश-दुनिया के सामने आये।
   उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000 के परिणाम स्वरुप उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। लेकिन 15 सालों में भी मुजफ्फरनगर कांड के अपराधी सजा नहीं पाये हैं। हर वर्ष रामपुर तिराहे पर राज्य का मुख्यमंत्री झूठे आश्वासन के साथ कोरे आंसू बहाता है और एक साल के लिए 1-2 अक्टूबर की काली रात का सबसे घृणित और दर्दनाक हादसा सब भूल जाते हैं। दर असल उत्तराखण्ड के यह साल उन ताकतों को समर्पित हुए हैं, जिनको राज्य अवधारणा से तनिक भी लगाव नहीं था, जो 2 अक्टूबर की दिल्ली रैली को सफल नहीं देखना चाहते थे। लालकिला के बुराडी मैदान में उन्हानें भरसक प्रयास किया भी और उत्तराखण्ड के गांधी इन्द्रमणी बडोनी को चोटिल भी किया। अनंत प्रतापसिंह और बुआसिंह को प्रमोट करने वाली सरकारों का उत्तराखण्ड की अस्मिता, अपमान और वेदना से कोई लेना-देना नही है यह 15 सालों में सिद्ध हो गया है।
   15 सालों में यह भी सिद्ध हुआ कि सत्ता हासिल करने के तरीके केवल और केवल उनके बंधक हैं। कम से कम उत्तराखण्ड में विकल्प जैसी स्थितियों को वह नहीं पनपने देंगे। यह आन्दोलन की हार भी है कि हमने उत्तराखण्ड राज्य को शहीदों के सपनों और आन्दोलन की अपेक्षाओं का राज्य बनाने के बजाय उन स्वार्थों को स्वीकार कर लिया जो राज्य की आत्मा की हत्या के दोष दे रहे हैं। अपने अहं के शिकार लोग भी उतने ही दोषी होंगे जितने वे, जो मुजफ्फरनगर कांड के लिए जिम्मेदार हैं।
    राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री के साथ उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के शहीदों को श्रद्धासुमन और पीड़ितों के प्रति प्रतिकार की ज्वाला का ताप महसूस करते हुए हम उत्तराखण्ड के लोग आप सबके कृतज्ञ हैं जिनके बलिदान और त्याग से उत्तराखण्ड राज्य बना। हम सत्ता की घोर भर्तस्ना करते हैं जो उत्तराखण्ड शहीदों और मुजफ्फरनगर कांड के पीडितों को अब तक न्याय नहीं दिला पायी।

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