आजकल मैं मुंबई आया हुआ हूं। यहां मेरे व्यक्तिगत मित्रों और सिने जगत के कुछ सितारों से भेंट हो रही है। आज सुबह के अखबारों में बड़ी खबर यह है कि 9 अक्तूबर को होनेवाली गुलाम अली की महफिल रद्द हो गई है। गुलाम अली दक्षिण एशिया का बड़ा नाम है। वे पाकिस्तानी हैं लेकिन पड़ौसी देशों में भी वे उतने ही लोकप्रिय हैं। घर-घर में उनकी गज़लें सुनी जाती हैं। भारत में अकसर उनके कार्यक्रम होते रहते हैं।
मुंबई में उनका कार्यक्रम रद्द क्यों हुआ? इसलिए कि शिव सेना ने उसका विरोध किया। शिव सेना के मुखिया का कहना है कि वे गुलाम अली के विरोधी नहीं हैं। वे पाकिस्तान के विरोधी हैं। इसीलिए गुलाम अली का कार्यक्रम नहीं होने देंगे। उन्होंने पहले भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों को मुंबई में घुसने नहीं दिया था। शिवसेना का तर्क बिल्कुल असरदार होता, अगर इस समय भारत-पाक युद्ध चल रहा होता लेकिन अभी तो राजनीतिक वार्ता-भंग का दौर चल रहा है। ऐसे में कई दूसरे तार जुड़े रहें, यह ज्यादा जरुरी है। दोनों देशों में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो आतंकवाद और युद्ध के विरुद्ध हैं। आपने सिर्फ मुंबई में अपनी मनमानी कर ली तो क्या हुआ? सारे भारत के साथ पाकिस्तान का व्यापार चल रहा है या नहीं? ये ही गायक और कलाकार भारत के अन्य शहरों में अपने कार्यक्रम कर रहे हैं या नहीं? दोनों देशों के दूतावास एक-दूसरे की राजधानियों में खुले हैं या नहीं? दोनों देशों के बीच रेलें, बस और जहाज चल रहे हैं या नहीं? दोनों देशों के बीच फोन और इंटरनेट पर हजारों लोग एक-दूसरे से संपर्क में हैं या नहीं? इन सबको या तो बंद करवाइए, अगर आप में दम हो तो? या फिर बेचारे मुंबई के लोगों को आप अपने दिमागी कठघरे में क्यों बंद कर रहे हैं? यदि आप ठीक हैं और आप में कुछ दम है तो आप केंद्र सरकार को अपने रास्ते पर लाइए। वरना आप मजाक का विषय तो पहले ही बन चुके हैं। महाराष्ट्र सरकार में आप हैं। इसके बावजूद उसने कहा है कि यदि गुलाम अली का कार्यक्रम होता है तो उसे पूरा संरक्षण मिलेगा। यदि आप में ज़रा भी नैतिक बल होता तो ऐसी ‘देशद्रोही’ सरकार में आप एक क्षण भी नहीं रहते लेकिन आप मंडिमंडल में टिके हुए हैं। इस मोटी खाल की राजनीति करनेवालों के मस्तक पर जनता चंदन लगाएगी या कालिख पोतेगी?
शिवसेना का यह तर्क हम मान लें कि ये पाकिस्तानी कलाकार सिर्फ पैसा बनाने के लिए भारत आते हैं तो भी वह यह क्यों भूल जाती है कि ये इन कलाकारों का निहित स्वार्थ क्या इस बात में नहीं होगा कि भारत के साथ उनके देश पाकिस्तान के संबंध अच्छे बने रहें? कलाकारों से यह उम्मीद करना कि वे राजनीति में सीधी दखलंदाजी करें, ज़रा ज्यादती है। बेहतर हो कि हम कला को राजनीति के दलदल में न घसीटें। अपनी विदेश नीति का हम सांप्रदायिकीकरण न करें। विदेश नीति के राष्ट्रीय लक्ष्यों को हम प्रांतीय राजनीति की संकीर्ण चौखट में ठोक-पीट कर फिट क्यों करें?