दुबई से लौटते ही मैंने दो खबरें पढ़ीं। दोनों का एक-दूसरे से कोई सीधा संबंध नहीं है लेकिन दोनों का ही निष्कर्ष या सबक चौंकानेवाला है। एक खबर है-श्रीलंका की और दूसरी म.प्र. की। श्रीलंका में अभी-अभी संसद के चुनाव हुए थे। इस चुनाव में श्रीलंका के पूर्व-राष्ट्रपति महिंद राजपक्ष हार गए। राजपक्ष का हारना एक बड़ी घटना है। इसी तरह मध्यप्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव हुए। उनमें कांग्रेस बुरी तरह से हार गई। भाजपा का वर्चस्व कायम हो गया। व्यापम् घोटाले की गहमागहमी के बावजूद म.प्र. में भाजपा का जीतना एक अजूबा है।
श्रीलंका में राजपक्ष अभी जनवरी में राष्ट्रपति का चुनाव हार गए थे। उनके-जैसा लोकप्रिय राष्ट्रपति श्रीलंका में पहले कोई नहीं हुआ। तमिल आतंकवाद को खत्म करने का श्रेय उनको ही है। उनकी तुलना अभी साल भर पहले तक श्रीलंका के पौराणिक महानायक दत्तागामिनी के साथ की जाती थी। वे श्रीलंका के सिंहली राष्ट्रवाद के जीवंत प्रतीक बन गए थे लेकिन उनकी लोकप्रियता ने उनका माथा फिरा दिया था। वे लगभग तानाशाह बन गए थे। उन्होंने संविधान में संशोधन करवाकर खुद को शक्ति का केंद्र बना लिया था। अपने भाइयों को भी उच्च पदों पर बिठा दिया था। भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया था। उनकी अकड़ इतनी बढ़ गई थी कि वे भारत को भी आंखें दिखाने लगे थे। उन्हें राष्ट्रपति के चुनाव में उनके ही एक साथी मैत्रीपाल श्रीसेन ने हरा दिया। श्रीसेन राष्ट्रपति तो बन गए लेकिन राजपक्ष की पकड़ अपनी पार्टी पर इतनी तगड़ी थी कि वे उनको संसद का चुनाव लड़ने से रोक नहीं सके। सभी मानकर चल रहे थे कि राजपक्ष की पार्टी जीतेगी और वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे लेकिन वह हार गए। श्रीसेन और विक्रमसिंघ जीत गए।
लगभग ऐसा ही अजूबा म.प्र. में हुआ है। व्यापम् घोटाले से संबंधित मृतकों की संख्या50 के आस-पास हो गई है। लगभग 2000 लोग गिरफ्तार हैं। दो हजार लोगों के विरुद्ध जांच चल रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने उसका संज्ञान लिया है। मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की फजीहत करने में कांग्रेस ने कोई कमी नहीं उठा रखी है लेकिन स्थानीय चुनावों में उसका रत्ती भर असर भी दिखाई नहीं पड़ा। कांग्रेस ने अपने मुंह की खाई। इसका अर्थ क्या निकाला जाए? जैसे श्रीलंका में कहा जा रहा है कि श्रीसेन और रनिल विक्रमसिंघ की सरकार ने पिछले 7-8 माह में इतना अच्छा काम किया कि राजपक्ष धरे के धरे रह गए, वैसे ही व्यापम् घोटाले के बावजूद शिवराज चैहान की छवि इतनी अच्छी और गहरी है कि आम जनता पर विपक्षियों के आरोपों का कोई असर नहीं हो रहा है। इसमें शक नहीं है कि इन स्थानीय चुनावों की अपूर्व सफलता शिवराज के हाथ मजबूत करेगी लेकिन व्यापम् घोटाले की जड़ तक पहुंचना म.प्र. सरकार का सर्वोपरि कर्तव्य होना चाहिए।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.