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दुख-सुख

अपने बच्चों को इस जंगल में ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी survival skills सीखने दीजिये

Ajit Singh : बहुत साल पहले मैंने National Geographic channel पे एक फ़िल्म देखी थी। एक जीव वैज्ञानिक दंपत्ति को जंगल में एक अनाथ मादा tiger मिल गयी। उसे जंगल में यूँ छोड़ देने से वो कुछ घंटों में ही मर जाती। लिहाजा वो दोनों उसे घर ले आये और एक सामान्य pet की तरह वो उनके घर में पलने लगी। नाम रखा Mia। कुछ बड़ी हुई तो वैज्ञानिक दंपत्ति को चिंता हुई। हम कितने दिन पालेंगे इसे? आखिर एक न एक दिन तो इसे जंगल या चिड़िया घर में छोड़ना ही पडेगा।

<p>Ajit Singh : बहुत साल पहले मैंने National Geographic channel पे एक फ़िल्म देखी थी। एक जीव वैज्ञानिक दंपत्ति को जंगल में एक अनाथ मादा tiger मिल गयी। उसे जंगल में यूँ छोड़ देने से वो कुछ घंटों में ही मर जाती। लिहाजा वो दोनों उसे घर ले आये और एक सामान्य pet की तरह वो उनके घर में पलने लगी। नाम रखा Mia। कुछ बड़ी हुई तो वैज्ञानिक दंपत्ति को चिंता हुई। हम कितने दिन पालेंगे इसे? आखिर एक न एक दिन तो इसे जंगल या चिड़िया घर में छोड़ना ही पडेगा।</p>

Ajit Singh : बहुत साल पहले मैंने National Geographic channel पे एक फ़िल्म देखी थी। एक जीव वैज्ञानिक दंपत्ति को जंगल में एक अनाथ मादा tiger मिल गयी। उसे जंगल में यूँ छोड़ देने से वो कुछ घंटों में ही मर जाती। लिहाजा वो दोनों उसे घर ले आये और एक सामान्य pet की तरह वो उनके घर में पलने लगी। नाम रखा Mia। कुछ बड़ी हुई तो वैज्ञानिक दंपत्ति को चिंता हुई। हम कितने दिन पालेंगे इसे? आखिर एक न एक दिन तो इसे जंगल या चिड़िया घर में छोड़ना ही पडेगा।

सो वो दोनों उसे जंगल में अकेले अपने दम पे ज़िंदा रहने के गुर सिखाने लगे। अपने घर के पीछे विशाल बगीचे में जो कि एक छोटे मोटे जंगल सा ही था उसे पालने लगे। survival skills और शिकार करना सिखाने लगे। धीरे धीरे 2 साल बीत गए। अब Mia जवान हो चली थी। वो उसे धीरे धीरे असली जंगल से परिचित कराने लगे। वहाँ ले जा के उसे असली जानवरों और प्रकृति की वास्तविक और निर्मम परिस्थितियों से परिचित कराने लगे। दूसरे tigers से भी उसकी मुलाक़ात करवाई। उनके साथ कैसे व्यवहार करना है, ये सिखाने लगे। training का ये सिलसिला एक साल और चला। अब उन्हें लगा कि उनकी Mia अब जंगल में छोड़ने लायक हो गयी है। उन्हें ये विश्वास था कि वो अकेले survive कर लेगी।

और एक दिन उन्होंने उसके गले में एक collar transmitter पहना के उसे जंगल में छोड़ दिया। हर दूसरे तीसरे दिन वो दोनों आ के उसका हालचाल ले लेते थे। फिर एक दिन वो उन्हें नहीं मिली। न उसके transmitter के signals मिल रहे थे। वो उसे सारा दिन ढूंढते रहे। शाम को उन्हें हलके से signals मिले। फिर वो टूटा हुआ collar। Mia का कहीं अता पता न चला। उसकी deadbody तक न मिले। बचे खुचे अवशेष तक न मिले।

मेरे एक मित्र हैं। उनकी बेटी इस साल BA में गयी है। जब वो 12th में पढ़ती थी तो उसे स्कूल पहुंचाने एक आदमी जाता था। शाम को एक लेने जाता। एक दिन मैं उनके साथ बैठा था। मैंने उनसे कहा, मोदी जी तक मेरी पहुँच है। कहिये तो बात करूं। क्या बात? आपकी बिटिया को SPG दिलवा दें? या NSG? अरे कम से कम Z plus तो बनती ही है। लगे सफाई देने।

एक दिन उनका 15 साल का बेटा अपनी coaching से रात 9 बजे चला। फोन उसका बंद था। घर आने में उसे कोई 15 min की देर हो गयी। श्रीमान जी लगे छपटियाने। मुझे यूँ लगा कि मैंने न सम्हाला तो इनका heart fail हो जाएगा। अरे काहे परेशान हो? आ जायेगा। वो कहाँ मानने वाले थे। मैंने पूछा कहीं सीरिया इराक गया है? अबे न तुम्हारा लड़का यज़ीदी है न यहाँ सड़कों पे IS घूम रही है। खैर इससे पहले कि वो हदस के मर जाते, लौंडा आ गया।

मैंने उन्हें समझाया। क्या बनाना चाहते हो अपने बच्चों को? कितने दिन उन्हें पालने में रखोगे। क्यों इन्हें छुइमुई बना रखा है। My friend, there is a jungle out there. Only the fittest will survive. बहुत भयानक जंगल है वहाँ. जहाँ वही ज़िंदा रहेगा जो दूसरों का निवाला बनने से बच जाएगा। अपने बच्चों को Mia मत बनाइये। उन्हें इस जंगल में ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी survival skills सीखने दीजिये। जंगल में ज़िंदा बचे रहने के लिए skills जंगल में ही सीखने को मिलेंगी। आपके बगीचे में नहीं। यदि आपका बच्चा जंगल के लायक नहीं बना है तो फिर उसे किसी चिड़ियाघर में छोड़िये। उसके लिए चिड़ियाघर बनाइये। वरना Mia बनते देर न लगेगी, क्योंकि जंगल बहुत निर्मम होता है।

जिला गाजीपुर निवासी सोशल एक्टिविस्ट अजित सिंह के फेसबुक वॉल से.

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