मोहम्मद अख़लाक की भीड़ ने हत्या कर दी और अख़लाक़ का बेटा अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है। ग्रेटर नोएडा के दादरी इलाके के बिसहाड़ा गांव में लाउडस्पीकर से ऐलान करने के बाद भीड़ जमा होती है और फिर जिस तरह मोहम्मद अख़लाक़ की पीट-पीटकर हत्या कर दी जाती है उससे कई गंभीर संवाल खड़े होते हैं। सवाल ये खड़े हो रहे हैं कि यह महज एक दरिंदे भीड़ द्वारा की गई हत्या है या फिर इस घटना को योजनाबद्ध और साजिश के तहत अंजाम दिया गया है? कहीं ये सोची समझी राजनीतिक चाल तो नहीं? कहीं एक बार फिर यूपी में मुजफ्फरनगर जैसे हालात बनाने की साजिश तो नहीं रची जा रही? सवाल सरकार के रवैये को लेकर भी है। सरकार और प्रशासन का काम हत्यारों को पकड़ना है, गुनहगारों को सजा दिलाना और बेकसूरों को इंसाफ दिलाना है, लेकिन यूपी सरकार घटना के बाद यह पता करने में में जुट गई कि अख़लाक़ के घर में रखा हुआ मांस गाय का था, बकरे का था या किसी और जानवर का।
अखिलेश की पुलिस की सक्रियता तो देखिये, घटना के पांच दिन बाद भी पुलिस अब तक उन दो युवकों का पता नहीं लगा पाई है जिन्होंने गांव के पुजारी से लाउडस्पीकर से अफवाह फैलाने का दबाव दबाव बनाया था। गोमांस का ऐलान मंदिर के लाउडस्पीकर से किया गया था, जिसके बाद जमा हुई हिंदुओं की भीड़ ने अखलाक के घर पर हमला बोल दिया। दरिंदों की फौज दरवाज़ा तोड़कर लोग घर में घुस आई और अख़लाक़ और उनके बेटे को पीटनी शुरु कर दी। उन्मादी भीड़ ने अख़लाक़ की पीट-पीटकर हत्या करके ही दम लिया। हालांकि, कुछ हिंदुओं ने भीड़ को रोकने और समझाने की कोशिश की और बाकी लोगों को इन दरिंदों के चंगुल बे बचाया भी। मारने वाले दरिंदे हिंदू थे तो जो लोग बचाने के लिये आगे आये वो भी हिंदू ही थे।
सवाल आस्था का नहीं नफ़रत का है
किसी के घर में गौमांस होने या खाने की महज एक अफवाह बाद अख़लाक की निर्मम हत्या करना आस्था का मुद्दा नहीं है। अगर यह आस्था से जुड़ा होता तो लोग देश के उन बड़े बीफ एक्पोर्टर हिंदुओं के घरों और उनके प्लांट पर हमला करते जो बीफ का निर्यात करते हैं। आस्था का विषय होता तो किरन रिजिजू जैसे नेता मोदी कैबिनेट में नहीं होते जो यह बता चुके हैं कि वो गाय का मांस खाते हैं। आस्था का विषय होता तो फिल्म, साहित्य से जुड़े कई लोगों के घरों पर हमले हो चुके होते। यह नफरत की राजनीति का मुद्दा है और राजनीति करने वाले लोग इसे अपने-अपने फायदे के लिये सालों से इस्तेमाल करते आये हैं।
हत्या पर सेंकी जा रही ‘राजनीतिक रोटियां’
बीफ की अफवाह के बाद हुई हत्या पर सियासत भी लगातार जारी है। राजनीतिक पार्टियां इस विवाद पर रोटियां सेक रही हैं। अपने-अपने वोट बैंक की आड़ में राजनीतिक दल के धुरंधर नेता बयानबाजी कर ध्रुवीकरण की राजनीति में जुट गये हैं। बीजेपी नेता और केंद्रीय संस्कृति मंत्री केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा को यह महज एक दुर्घटना लगता है। मंत्री जी की मानें तो यह एक हादसा था जो गलतफहमी में हो गया। शर्मा जी, आपके लिये यह हादसा होगा क्योंकि आपको तो राजनीति करनी है, लेकिन हम शर्मसार हैं। मुसलमान के नाम पर राजनीति करने वाले नेता भी राजनीति करने में पीछे नहीं हैं। इन नेताओं ने अपने समाज को आज तक कुछ दिया नहीं है, लेकिन बात जब राजनीतिक रोटियां सेकने की होती है तो लोग हैदराबाद से बिसहाड़ा गांव तक पहुंच जाते हैं।
ये वही लोग हैं जो पंद्रह मिनट में एक पूरी कौम को मिटा देने का ऐलान कर समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं। लेकिन इन्हें शर्म नहीं आती। गरीब, मजलूम इंसान इनके लिये गोश्त की बोटी भर हैं जिसे खाकर ये अपनी राजनीति भूख मिटाते हैं। यूपी की समाजवादी सरकार का रवैया सबके सामने है। मुजफ्फरनगर के पीड़ितों के साथ इन लोगों ने जो सलूक किया वो पूरी दुनिया को मालूम हैं। समाजवाद के भेष में यह एक ऐसी नकारा सरकार है जो अपने नागरिकों की रक्षा करने में, उसके जान-माल की हिफाजत करने में पूरी तरह से फेल रही है।
ऐसे राजनीतिक भेड़ियों और गिद्धों से बचिये, ये लोग हर वक्त हमें बांटकर खाने की फिराक में रहते हैं। वोट बैंक की राजनीति, मौकापरस्ती और नफरत की राजनीति कितनों की जाने लेगी, ये नहीं पता। लेकिन अगर इसे रोका नहीं गया तो पता नहीं कब ये आपकी और हमारी जान ले लें। आज इस भीड़ ने अख़लाक़ की बलि ली है, कल उसकी जगह कोई अखिलेंद्र होगा…परसो कोई और। दिल्ली से दादरी ज्यादा दूर नहीं है। आइये हम सब यह कसम खाते हैं कि भारत का ‘तालिबानीकरण’ नहीं होने देंगे। कौमी एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बनाएं रखें, दुनिया में यही हमारी पहचान है।
रजनीश रंजन पाण्डेय का विश्लेषण.