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बाल दिवस की 21 साल पुरानी यादें… हम बच्चे भी मांग रहे हैं उत्तराखण्ड…

सन् 1994 उत्तराखण्ड आन्दोलन का वह ज्वार- हिटडा लग्या छन सडकों मां जग नी, मुजफ्फर नगर कांड के बाद जगह जगह  कर्फ्यू और पुलिसिया आतंक से आन्दोलन का ज्वार ठंडा पडने लगा, कर्मचारी-शिक्षकों ने हडताल वापस ले ली थी और गैरसैंण सहित कई स्थानों पर आन्दोलन की लौ जल रही थी। गांव-गांव से क्रमिक अनशन में बारी-बारी लोग आते। प्रातः जनगीतों के साथ प्रभातफेरी होती। हमारे परिवार के सभी 7 लोग, भाई जोधसिंह रावत के परिवार के सभी 5 लोग, सच्चिदानन्द बौडाई, बबिता बौडाई, उत्तराखण्ड आन्दोलन के लिए अहमदाबाद से अपनी पढाई छोड गैरसैंण आ गया युवक प्रकाश शर्मा, पुष्पा रतूडी, अनीता सेमवाल, गोकर्ण बमराडा, चन्दन नेगी सहित 25-30 लोगों की टोली होती थी। उत्तराखण्ड जन संस्कृति मंच के सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुभाष बहुखण्डी, अनुसूया गौड, जगदीश मनोडी, गीता प्रसाद, सुनीता आर्य आदि गांव-शहर सांस्कृतिक कार्यक्रम देकर अलख जगाते।

<p>सन् 1994 उत्तराखण्ड आन्दोलन का वह ज्वार- हिटडा लग्या छन सडकों मां जग नी, मुजफ्फर नगर कांड के बाद जगह जगह  कर्फ्यू और पुलिसिया आतंक से आन्दोलन का ज्वार ठंडा पडने लगा, कर्मचारी-शिक्षकों ने हडताल वापस ले ली थी और गैरसैंण सहित कई स्थानों पर आन्दोलन की लौ जल रही थी। गांव-गांव से क्रमिक अनशन में बारी-बारी लोग आते। प्रातः जनगीतों के साथ प्रभातफेरी होती। हमारे परिवार के सभी 7 लोग, भाई जोधसिंह रावत के परिवार के सभी 5 लोग, सच्चिदानन्द बौडाई, बबिता बौडाई, उत्तराखण्ड आन्दोलन के लिए अहमदाबाद से अपनी पढाई छोड गैरसैंण आ गया युवक प्रकाश शर्मा, पुष्पा रतूडी, अनीता सेमवाल, गोकर्ण बमराडा, चन्दन नेगी सहित 25-30 लोगों की टोली होती थी। उत्तराखण्ड जन संस्कृति मंच के सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुभाष बहुखण्डी, अनुसूया गौड, जगदीश मनोडी, गीता प्रसाद, सुनीता आर्य आदि गांव-शहर सांस्कृतिक कार्यक्रम देकर अलख जगाते।</p>

सन् 1994 उत्तराखण्ड आन्दोलन का वह ज्वार- हिटडा लग्या छन सडकों मां जग नी, मुजफ्फर नगर कांड के बाद जगह जगह  कर्फ्यू और पुलिसिया आतंक से आन्दोलन का ज्वार ठंडा पडने लगा, कर्मचारी-शिक्षकों ने हडताल वापस ले ली थी और गैरसैंण सहित कई स्थानों पर आन्दोलन की लौ जल रही थी। गांव-गांव से क्रमिक अनशन में बारी-बारी लोग आते। प्रातः जनगीतों के साथ प्रभातफेरी होती। हमारे परिवार के सभी 7 लोग, भाई जोधसिंह रावत के परिवार के सभी 5 लोग, सच्चिदानन्द बौडाई, बबिता बौडाई, उत्तराखण्ड आन्दोलन के लिए अहमदाबाद से अपनी पढाई छोड गैरसैंण आ गया युवक प्रकाश शर्मा, पुष्पा रतूडी, अनीता सेमवाल, गोकर्ण बमराडा, चन्दन नेगी सहित 25-30 लोगों की टोली होती थी। उत्तराखण्ड जन संस्कृति मंच के सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुभाष बहुखण्डी, अनुसूया गौड, जगदीश मनोडी, गीता प्रसाद, सुनीता आर्य आदि गांव-शहर सांस्कृतिक कार्यक्रम देकर अलख जगाते।

14 नवम्बर 1994 चाचा नेहरु का वह जन्म दिन हम भूले नहीं भूल सकते। बच्चों का एक मार्च आया। हाथ में बैनर लिए और गाते हुए। बैनर व तख्तियों में उत्तराखण्ड राज्य की मांग के नारे लिखे थे तो बच्चे गा रहे थे-‘मम्मी-डैडी मांग रहे है उत्तराखण्ड-उत्तराखण्ड‘, ‘हम बच्चे भी मांग रहे हैं उत्तराखण्ड-उत्तराखण्ड‘, ‘देश का राजा क्यों नहीं देता हमारा प्यारा उत्तराखण्ड‘, ‘चाचा नेहरु हमें चाहिए हमारा प्यारा उत्तराखण्ड‘।

उस घटना को आज 21 साल हो गये। उन बच्चों का कैसे शुक्रिया अदा करें कि उनकी आवाज सुन ली गयी और उत्तराखण्ड का गठन हुए 15 साल भी हो गये। तबके बच्चे आज युवा होंगे। चारों ओर राज्य आन्दोलनकारी होने की होड़ मची है। उनकी सुविधाओं की बात हो रही है। हमारी समझ में कभी नही आया कि वे बच्चे जो चाचा नेहरु से बाल दिवस के दिन उत्तराखण्ड राज्य मांग रहे थे, राज्य आन्दोलनकारी क्यों नही माने गये? अपनी पढाई छोड उत्तराखण्ड आन्दोलन में शिरकत करने वाला प्रकाश शर्मा आन्दोलनकारी कैसे नहीं हुआ? बाल सदन के वे शिक्षक जिन्होंने प्रभात फेरी से लेकर बच्चों के मार्च तक अग्रणीय भूमिका निभाई कैसे चिन्हित होने से छूट जाते हैं? लीला असनोडा, गंगोत्री रावत, पुष्पा रतूडी, अनीता सेमवाल, गीता प्रसाद सुनीता आर्य आदि-आदि को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारी क्यों नही माना गया?

हम कृतज्ञता के अलावा क्या ज्ञापित करें। राज्य आन्दोलन के चिन्हीकरण के जो 5 सूत्र हैं उनके सरकारी सूत्रों को पहले ही सरकारी अमले जला चुके हैं जिनके पास कुछ हो उसे सरकारी अमला मानने को तैयार नहीं। जो कसौटी मानी गयी और उसके आधार पर चिन्हिकरण हुआ उसमें किस किस की राज्य आन्दोलन में कितनी भूमिका थी उसे स्थानीय लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं। राज्य आन्दोलनकारी जैसा प्रभावी व्यक्तित्व हंसी का पात्र बन रहा है।

हे ईश्वर! उन बच्चों, उनके शिक्षकों, अभिभावकों और मार्ग दर्शकों को बल देना, उत्तराखण्ड की सरकारों से, नेता, नौकरशाहों से आश नही है। कोई नया आन्दोलन उठे और लुटेरों को उनकी जगह बता दे।

लेखक पुरुषोत्तम असनोड़ा उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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