लखनऊ। यूपी में सत्ता के काले कारनामों को उजागर करने वाले पत्रकारों की हत्या का अंतःहीन सिलसिला थमने का नाम ले रहा है। राजधानी के सरोजनीनगर थाने में मंगलवार को स्वतंत्र पत्रकार राजीव चतुर्वेदी (55) की पुलिस ने हत्या कर दी। थाने के अंदर हुई मौत के बाद मामले की पोल ना खुले और सरकार की किरकिरी होने से बचाने के लिए पुलिस ने पीछले दरवाजे से उनके शव को सीएचसी पहुंचा दिया, जहां चिकित्सक ने मृत घोषित किया। जबकि राजीव का चालक थाना के बाहर उनके लौटने का इंतजार ही करता रहा। काफी देर बाद तक जब वह नहीं लौटे तो उनके मोबाइल पर काल किया, लेकिन मोबाइल स्वीच आफ था।
चालक के मुताबिक अंतिम बार राजीव को एसओ सरोजनीनगर के कमरे में जाते देखे था। पुलिस के इस कुकृत्य से पत्रकारों में जबरदस्त आक्रोश है। पत्रकारों ने पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि यूपी में बेबाक बेखौफ लेखनी के जरिए सरकार की बखिया उधेड़ने वाले व्यंगकार व सीनियर पत्रकार राजीव चतुर्वेदी सहित अब तक 15 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। जबकि 150 से अधिक पत्रकारों का घर-गृहस्थी लूटवाने के साथ ही सपाई गुंडे, माफियाओं, विधायकों व मंत्रियों की साजिश में पुलिस ने फर्जी मुकदमें दर्ज कर उनकी प्रताड़ना की है। राजीव एक पत्रकार के अलावा कवि, चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। कई पत्रिकाओं में उनके 50 हजार से अधिक लेख छप चुके हैं।
इटावा निवासी राजीव चतुर्वेदी स्वतंत्र व्यंग लिखने वाले पत्रकार और ब्लागर थे। सरोजनीनगर और आशियाना में उनके दो मकान हैं। नटकुर के मुल्लाहीखेड़ा में उनकी आधार ग्रुप इंडिया प्लास्टिक फैक्ट्री है। बागपत के व्यापारी बिहारी लाल गुप्ता ने 25 लाख रुपये हड़पने के आरोप में उनके खिलाफ सरोजनीनगर थाने में रपट दर्ज कराई थी। राजीव के कार ड्राइवर सल्लाह के मुताबिक मंगलवार को दोपहर उन्हें पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया था। उसे राजीव ने ही बताया था कि एसओ ने बुलाया है। गाड़ी थाने के बाहर छोड़कर राजीव एसओ के कमरे में चले गए। करीब एक घंटे बाद राजीव को फोन किया तो उनका फोन बंद था। फिर उसने राजभवन में कार्यरत राजीव की मित्र सरिता सिंह को फोन किया। सरिता और अन्य दोस्तों ने छानबीन की तो पता चला कि राजीव का शव अस्पताल में है। राजीव के शरीर से जूते और बेल्ट गायब थी। पैरों में मिट्टी भी लगी थी।
सवाल यह है कि अगर पूछताछ के लिए बुलाया गया था तो जूते और बेल्ट कहां गए। उनके पैरों में मिट्टी कैसे लग गई। अमूमन पुलिस लाफकप में डालते वक्त बेल्ट व जूता उतरवा लेती है। मतलब साफ है पुलिस ने पहले उनका टार्चर किया बाद में हवालात में डाला और जब उनकी मौत हो गयी तो दामन बचाने के लिए सीएचसी अस्पताल पहुंचा दिया। वैसे भी शिकायतकर्ता बिहारी और एसओ दोनों बागपत के ही हैं। पुलिस सूत्रों की मानें तो इसके लिए एसओं ने गुप्ता से फिफटी-फिफटी का सौदा किया था। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों एवं पुलिसकर्मियों की मानें तो राजीव को काफी बुरी तरह टार्चर किया गया है। हालांकि अपने को फंसता देख एसओ सरोजनीनगर सुधीर सिंह का कहना है कि राजीव उन्हें थाने के बाहर बेहोश मिले थे। इसके बाद मैंने उन्हें सीएचसी पहुंचाया था।
हो जो भी लेकिन इतना तो तय है कि समाजवादी सरकार में सत्यता की राह पर चलनें वालों को कुचलकर उसके एवज में पीड़ित परिवार को कुछ लाख रुपये देनें में ही अपनी वाहवाही समझती है। इसके पहले भी जिस तरह सपा सरकार पर आरोप है की किस कदर सपा नेताओं ने बड़ी बेरहमी से शाहजंहा के पत्रकार जोगेन्द्र सिंह की हत्या करवाकर एन मौके पर सीबीआई की जाँच से बचनें के लिए जोगेन्द्र के लडके को रातो रात मुख्यमंत्री आवास बुलाकर दबाव बनाने के बाद चंद नोटों की गड्डियां थमाकर आवाज को दबा दिया इसकी जानकारी जग जाहिर है।
लेखक सुरेश गांधी युवा और बेबाक पत्रकार हैं.