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विपक्ष का नहीं आम जनता से सरोकार, वो तो करता है महज विरोध का व्यापार

संदर्भ : प्रदेश में सूखे के हालात पर हो रही राजनीति

छत्तीसगढ़: प्रदेश में जिस तरह के सूखे के हालात हैं औैर इसको लेकर जिस तरह से विपक्ष ने महज हंगामा बरपा रखा है, उसने एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अपने देश की राजनीति में विपक्ष का धर्म सिर्फ और सिर्फ विरोध करना है। वैसे विरोध करना विपक्ष के लिए जरूरी भी है, लेकिन सिर्फ विरोध ही विरोध करना, यह सही नहीं है। हमें तो याद नहीं पड़ता है कि देश या किसी भी राज्य में किसी विपक्षी पार्टी ने सरकार के किसी काम की खुले दिल से तारीफ की हो। प्रदेश की रमन सरकार सूखे से निपटने के लिए अगर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती तो विरोध करना जायज होता, लेकिन सरकार लगातार किसानों के हित में फैसले ले रही है, ऐसे में विरोध करना कहां तक जायज है, वो भी ऐसा विरोध जिसका आम जनता से कोई सरोकार ही न हो।

<p><strong>संदर्भ : प्रदेश में सूखे के हालात पर हो रही राजनीति</strong></p> <p><strong>छत्तीसगढ़:</strong> प्रदेश में जिस तरह के सूखे के हालात हैं औैर इसको लेकर जिस तरह से विपक्ष ने महज हंगामा बरपा रखा है, उसने एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अपने देश की राजनीति में विपक्ष का धर्म सिर्फ और सिर्फ विरोध करना है। वैसे विरोध करना विपक्ष के लिए जरूरी भी है, लेकिन सिर्फ विरोध ही विरोध करना, यह सही नहीं है। हमें तो याद नहीं पड़ता है कि देश या किसी भी राज्य में किसी विपक्षी पार्टी ने सरकार के किसी काम की खुले दिल से तारीफ की हो। प्रदेश की रमन सरकार सूखे से निपटने के लिए अगर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती तो विरोध करना जायज होता, लेकिन सरकार लगातार किसानों के हित में फैसले ले रही है, ऐसे में विरोध करना कहां तक जायज है, वो भी ऐसा विरोध जिसका आम जनता से कोई सरोकार ही न हो।</p>

संदर्भ : प्रदेश में सूखे के हालात पर हो रही राजनीति

छत्तीसगढ़: प्रदेश में जिस तरह के सूखे के हालात हैं औैर इसको लेकर जिस तरह से विपक्ष ने महज हंगामा बरपा रखा है, उसने एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अपने देश की राजनीति में विपक्ष का धर्म सिर्फ और सिर्फ विरोध करना है। वैसे विरोध करना विपक्ष के लिए जरूरी भी है, लेकिन सिर्फ विरोध ही विरोध करना, यह सही नहीं है। हमें तो याद नहीं पड़ता है कि देश या किसी भी राज्य में किसी विपक्षी पार्टी ने सरकार के किसी काम की खुले दिल से तारीफ की हो। प्रदेश की रमन सरकार सूखे से निपटने के लिए अगर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती तो विरोध करना जायज होता, लेकिन सरकार लगातार किसानों के हित में फैसले ले रही है, ऐसे में विरोध करना कहां तक जायज है, वो भी ऐसा विरोध जिसका आम जनता से कोई सरोकार ही न हो।

 

   आज अपने राज्य छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में अल्प वर्षा के चलते हालात काफी खराब हो गए हैं। इस हालात से निपटने के लिए जहां केंद्र सरकार अपने स्तर पर लगातार प्रयास कर रही है, वहीं राज्य भी अपने संसाधनों के दम पर किसानों को राहत देने से पीछे नहीं हट रहे हैं। जहां तक अपने राज्य का सवाल है तो इसमें संदेह नहीं है कि यहां की स्थिति को देखते हुए जितने अच्छे फैसले रमन सरकार ने किए हैं, वैसे फैसले और कहीं नहीं हुए हैं। जरा गौर फरमाए सूखे की स्थिति को देखते हुए ही जहां प्रदेश सरकार ने तत्काल किसानों को जलाशयों से पानी देने का फैसला किया, वहीं किसानों के लिए अपना खजाना भी खोलने का काम किया है। सरकार ने किसानों को 50 के स्थान पर 30 फीसदी फसल के नुकसान पर मदद का ऐलान किया है। कृषि पंपों के लिए लगातार पैसे दिए जा रहे हैं। एक दिन पहले ही अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण और ग्रामीण एवं अन्य पिछड़ा वर्ग क्षेत्र विकास प्राधिकरण की अलग-अलग बैठकों में दो हजार 573 किसानों के सिंचाई पंपों को बिजली का कनेक्शन देने के लिए 13 करोड़ 70 लाख रुपए की  मंजूरी दी गई है। इसके पहले इसी माह सरगुजा विकास प्राधिकरण और बस्तर विकास प्राधिकरण की बैठक में भी किसानों को राहत पहुंचने वाले फैसले हुए। जब पहली बार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह रेडियो पर अवतरित हुए तो अपने पहले ही पैगाम में उन्होंने किसानों के हित की बात की। ये सारी बातें इस बात का सबूत हैं कि सरकार किसानों के हित में फैसले कर रही है। आज कैबिनेट की बैठक में भी किसानों के हित में अहम फैसले हुए।
सोचने वाली बात है कि इतना सब होने के बाद भी विपक्ष क्यों कर महज विरोध ही कर रहा है। सबसे बड़ी बात विपक्ष के विरोध करने का तरीका भी जायज नहीं है। विरोध करने के लिए चक्का जाम करना, क्या उचित है? इस चक्का जाम से क्या किसानों को राहत मिल गई? ऐसे जाम से किसानों का हित तो नहीं हुआ लेकिन आम जनता का अहित जरूर हो गया। जाम से लोग परेशान रहे। इसी दिन राजधानी में व्यापम की परीक्षा थी, इसमें शामिल होने आने वाले कई बेरोजगारों को परेशानी का सामना करना पड़ा। क्या आम जनता की परेशानी से विपक्ष का कोई सरोकार नहीं है? आखिर विपक्ष का काम हंगामा बरपाना ही क्यों होता है, क्यों कर विपक्ष सत्ता में बैठी पार्टी के साथ तालमेल बिठा और बातचीत करके जनता के हित के लिए काम नहीं करता है। शायद ऐसा करने से वह विपक्ष क्यों कर रह जाएगा। इतना तय है कि जिस दिन विपक्ष की सोच में ऐसा क्रांतिकारी बदलाव आएगा, उसी दिन अपने देश में कोई भी बड़ी से बड़ी समस्या चुटकी बजाते समाप्त हो जाएगी। लेकिन विपक्ष ऐसा करने वाला नहीं है, क्योंकि हकीकत यह है कि विपक्ष का आम जनता की समस्या से सरोकार नहीं होता, बल्कि विपक्ष महज विरोध का व्यापार करता है और उस समस्या को एक मुद्दा बनाकर अपना उल्लू सीधा करने का काम करता है।
अपने राज्य का विपक्ष हमेशा प्रदेश सरकार को किसान विरोधी बताने का प्रयास करता है। अगर सरकार वास्तव में किसान विरोधी होती तो कभी अपने राज्य में कृषि के लिए अलग से बजट पेश नहीं किया जाता। देश में अपना राज्य ही ऐसा पहला राज्य है जहां पर सदन में कृषि का अलग से बजट होता है। इसमें संदेह नहीं है कि प्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यकाल में किसानों के हित में कई काम हुए हैं, मसलन आज की तारीख में प्रदेश में साढ़े तीन लाख कृषि पंप हैं। राज्य बनने के समय यह संख्या 72 हजार थी। इसी के साथ किसानों को कृषि के लिए मुफ्त बिजली भी मिल रही है। इतना सब होने के बाद अगर विपक्ष प्रदेश सरकार को किसान विरोधी मानता है तो इसका एक ही मतलब है कि विपक्ष सिर्फ विरोध करने का धर्म निभाने के साथ विरोध की राजनीति ही करता है।
विपक्ष से हमारा एक छोटा सा सवाल है की अगर उनकी पार्टी आज सत्ता में होती और प्रदेश में सूखे के ऐसे हालात होते तो क्या फैसला किया जाता? क्या पार्टी ने सरकार को बताया है कि उसे किसानों के हित में क्या करना चाहिए? क्या विपक्ष ने सरकार के फैसलों पर यह बताने की कोशिश की है कि उसमें कमी क्या है? किसानों को पानी दिया जाए यह कहना ही काफी नहीं है। अगर जलाशयों में पानी ही नहीं होगा तो कहां से पानी दिया जाएगा, यह बात विपक्ष भी जानता है, लेकिन चूंकि राजनीति करनी है इसलिए पानी देने के लिए दबाव बनाने का काम किया जा रहा है। अगर हमारे घर में इतना पानी हो जितने से हमारे परिवार का ही गुजारा चल सकता है तो क्या हम पड़ोसी के पानी मांगने पर उसे खुद प्यासे रहकर पानी दे सकते हैं? साफ बात है जलाशयों को प्यासा रखकर पानी देना संभव नहीं है। जहां पर पानी है वहां से लगातार पानी दिया ही जा रहा है, फिर क्यों कर पानी के नाम पर राजनीति की जा रही है। अगर आज विपक्ष भी सत्ता में होता तो संभवत: वह भी वहीं करता जो आज सत्ता में बैठी सरकार कर रही है। विपक्ष अगर वास्तव में किसानों और जनता का हितैषी है तो उसे विरोध छोड़कर सरकार के साथ मिलकर किसानों के हित में काम करने के अच्छे सुझाव देने चाहिए, वो भी ऐसे सुझाव जिसमें राजनीति न हो। इसमें संदेह नहीं है कि ऐसे सुझाव सरकार को मानने में परेशानी नहीं होगी।

(लेखक राजकुमार ग्वालानी, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित प्रतिष्ठित सांध्य दैनिक चैनल इंडिया के प्रबंध संपादक हैं, उनसे 9302557200 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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