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ये दुनिया

एक लड़की जिसने रेल को अपना मकान बना लिया है!

Vishnu Nagar :  दुनिया में कुछेक लोग जैसे होते हैं, वैसे तो हम हो नहीं सकते मगर उनके बारे में पढ़ना किसी कविता से ज्यादा हमारी कल्पना को जागृत करता है। जर्मनी के किसी कॉलेज में पढ़नेवाली एक लड़की है लिओनी म्यूलर। अभी वह ग्रेजुएट भी हुई नहीं है।एक दिन उसका अपने मकान मालिक से किसी बात पर झगड़ा हो गया तो उसने तय किया कि अब वह इस मकान में नहीं रहेगी बल्कि किसी भी मकान में नहीं रहेगी।उसने 380 डॉलर का मासिक रेल पास बनवाया और अब वह लगातार ट्रेन में ही दिन-रात रहती है, सफर ही करती रहती है।

<p>Vishnu Nagar :  दुनिया में कुछेक लोग जैसे होते हैं, वैसे तो हम हो नहीं सकते मगर उनके बारे में पढ़ना किसी कविता से ज्यादा हमारी कल्पना को जागृत करता है। जर्मनी के किसी कॉलेज में पढ़नेवाली एक लड़की है लिओनी म्यूलर। अभी वह ग्रेजुएट भी हुई नहीं है।एक दिन उसका अपने मकान मालिक से किसी बात पर झगड़ा हो गया तो उसने तय किया कि अब वह इस मकान में नहीं रहेगी बल्कि किसी भी मकान में नहीं रहेगी।उसने 380 डॉलर का मासिक रेल पास बनवाया और अब वह लगातार ट्रेन में ही दिन-रात रहती है, सफर ही करती रहती है।</p>

Vishnu Nagar :  दुनिया में कुछेक लोग जैसे होते हैं, वैसे तो हम हो नहीं सकते मगर उनके बारे में पढ़ना किसी कविता से ज्यादा हमारी कल्पना को जागृत करता है। जर्मनी के किसी कॉलेज में पढ़नेवाली एक लड़की है लिओनी म्यूलर। अभी वह ग्रेजुएट भी हुई नहीं है।एक दिन उसका अपने मकान मालिक से किसी बात पर झगड़ा हो गया तो उसने तय किया कि अब वह इस मकान में नहीं रहेगी बल्कि किसी भी मकान में नहीं रहेगी।उसने 380 डॉलर का मासिक रेल पास बनवाया और अब वह लगातार ट्रेन में ही दिन-रात रहती है, सफर ही करती रहती है।

हाँ जहाँ चाहे उतर भी जाती है,किसी से मिलना हो, कहीँ घूमना होतो घूम आती है, फिर ट्रेन में लौट आती है। ट्रेन में ही अपने सारे दैनिक कामकाज निबटाती है, पढ़ती है, कॉलेज का कामकाज पूरा करती है, उसी में रोज के अपने अनुभवों की डायरी लिखती है, और उसे ग्रेजुएट बनने के लिए जो पेपर लिखकर देना है, वह भी इसी अनुभव पर आधारित होगा, इसकी उसे इजाजात मिल गई है।

ट्रेन में रहना उसे सस्ता भी पड़ता है, उसे 70 डॉालर हर महीने कम खर्च करने पड़ते हैं,उसे कई शहरों में अपने दोस्तों-परिचितों से मिलने का मौका मिल जाता है, कई शहरों में घूमने का अवसर मिल जाता है, उसे लगता है कि वह हमेशा छुट्टी पर है। उसका उद्देश्य लोगों को यह बताना भी है कि हम जिन बातों को जीवन में सामान्य मानकर चलते हैं, उन पर सवालिया निशान लगाना जरूरी है। अलग तरह से जीना भी संभव है।

मैं तो सफर में 12 घंटे के बाद ऊबने लगता हूँ जिसमें रातभर की नींद लेना भी शामिल होती है। बहुतों के साथ शायद ऐसा ही होगा। फिर जीवन को इस तरह जीने की हमें आदत कहाँ डाली जाती है? खातेपीते घरों के बच्चों पर सिर्फ करियर और करियर का भूत इतना सवार रहता है कि उसके आगे बाकी सब भूल जाते हैं,जीनव जीनी भूल जाते हैं। फिर वे हालात यहाँ नहीं हैंं कि एक लड़की ट्रेन में लगातार सफर करती रहे, काम करती रह सके और सुरक्षित भी रह सके।लेकिन इन्हीं असंंभवों के बीच हमारे बीच भी तमाम लोग हैं, होंगे ही, जो हमारे नियमकायदों पर नहीं चलते और खुश रहते हैं, हम सब से ज्यादा खुश रहते हैं।

नियमकायदों से बंधे लोग खुश कब रह पाते हैं? अपने आपको अपनी कैद से स्वतंत्र न करनेवाले लोग जानते ही नहीं कि जीवन जीना क्या होता है। मेरे एक दोस्त का एक बेटा भी कुछ ऐसा ही अलग सा जीवन जीता है, थोड़ी कमाई भी कर लेता है और उसके पिता-माता ने शायद इसे स्वीकार भी कर लिया लिया है।यह बड़ी बात है। लिओनी जबतक जी सको, इस तरह जीओ। भारत में किसी लड़की के लिए तो असंभव सा है हमारे यहाँ मगर असंभव को भी संभव करनेवाले,संभव करने की कोशिश करके बार-बार हार कर भी जीतने का हौसला रखनेवाले लोग होते हैं. मरकर भी जीने की कोशिश करनेवाले लोग होते हैं। वे खतरे उठाते हैं, झेलते हैं, अपमान सहते हैं मगर अपनी जिद पर अड़े रहते हैं।उनको याद करना उनकी कल्पना करना ही शक्ति देता है।

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार विष्णु नागर के फेसबुक वॉल से.

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