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दुख-सुख

पत्रकार ने बताई अपनी आपबीती, इस घटना से आप ले सकते हैं यह सबक

कल एक भाई को गुजरात से इलाहाबाद जाना था तो वह वाया दिल्ली होते हुए जा रहा था. ट्रेन पोरबंदर से दिल्ली सराय रोहिल्ला के लिए थी और उसे अगली ट्रेन आनंद विहार टर्मिनल से पकड़ना था. उन्हें रास्ते का बिल्कुल आईडिया नहीं था और ट्रेन की टाइमिंग को देखते हुए मैने यह तो अंदाजा लगा ही लिया था कि अगर यह अकेले आया तो ट्रेन छूट जाएगी.

मैं सराय रोहिल्ला स्टेशन मेट्रो से गया और उन्हें लेकर आनंद विहार स्टेशन आ गया. ट्रेन भी समय से थी और छूटने से पांच मिनट पहले मैने उन्हें बैठा भी दिया. वहां एकदम आश्वस्त होने के बाद मैं उन्हें छोड़कर स्टेशन से बाहर आ गया.

अब असली कहानी यहां से शुरू होती है. हुआ यूं कि स्टेशन से बाहर आकर सीधे मुझे मेट्रो पकड़कर नोएडा चले आना था. पर सोचा आज मेट्रो से नहीं बल्कि बस से जाता हूं. रात का समय है, शायद कुछ तुफानी या कोई जोरदार वाकया हो और न भी हो तो कोई बात नहीं.  क्योंकि रात में दिल्ली की खाली सड़कों पर बस से सफर करने मजा ही अलग है. तब तक रात के 10 बज चुके थे.

मै आनंद विहार के मेट्रो गेट से बाहर आकर सीधे निर्धारित बस स्टैंड के सामने खड़ा हो गया. यहां से 33 नम्बर की बस सीधे नोएडा सेक्टर 43 को जाती है. थोड़ी देर बाद बस आ गई और कई लोगों की भीड़ एक-साथ जैसे टूट पड़ती है, वैसे ही बस में प्रवेश करने के लिए टूट पड़ी.

मैं भी लाइन में था और मेरे पीछे एक दुबला-पतला सा 15 साल का लड़का था. मैने सोचा यह भी चढ़ेगा, पर ऐसा नहीं था. दरअसल वह एक पाकेटमार था. जो स्टैंड पर भीड़ का फायदा उठाकर अपने शिकार की तलाश में था. उसने पहले मेरे मोबाइल वाले जेब में हाथ डाला तो मुझे शक हुआ मैंने वहां अपना हाथ लगा दिया तो उसने जेब से अपना हाथ हटा लिया.

अब उसका दूसरा हाथ सीधे मेरे पाकेट वाली जेब में चला गया. यहां भी उसकी एक न चली. यह सब सिर्फ सेकेंड भर के अंदर हुआ. यहां उसने  इतनी शार्पनेस दिखाई कि दूसरा कोई होता तो गच्चा खा जाता, वह अपने दोनों से हाथ से यह कार्य कर रहा था. हालांकि उसके टच ने मुझे सावधान जरूर कर दिया था. अब तक वह भी समझ चुका था कि अब ज्यादा कुछ करने का मतलब खतरा मोल लेना ही है, तो उसने खुद ही खीस निपोरते हुए पूछा- क्या हुआ बड़े भाई?

तो मैने कहा— बीप बीप बीप… लेकिन मेरे कहने और भीड़ में उसे पकड़ने के लिए बस से फिर से उतरने के पहले ही वह तेजी से भाग चुका था. एक दो लोगों ने तो यहां तक कहा कि क्या मार दिया तो मैने कहा- नहीं. मार तो नहीं पाया पर अगर मैने उसके इरादे भांप न लिए होते तो मार जरूर देता.

खैर अब मैं शांति से आकर बस मै बैठ चुका था और सोच रहा था, बहुत कुछ सोच रहा था. अगर पकड़ा जाता तो कितना लतियाया जाता. पर पकड़ा नहीं गया है तो अभी कितनों को शिकार बनाएगा? अभी इसकी उम्र ही कितनी है? आगे चलकर यह क्या करेगा, किसी बेचारे गरीब का पाकेट मार लिया तो क्या होगा? आदि-आदि.

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खैर.. अगर मैं जरा भी उसे पकड़ने में इंट्रेस्टेड होता तो उसे पकड़ जरूर लेता. हालांकि अचानक से इस तरह की कोशिश से मैं सन्न अवश्य था, पर अच्छी बात यह थी कि मै ऐसे मौकों पर सावधान जरूर रहता हूं.

आपको बता दूं कि ये जो भीड़ में मैने उसकी उंगली महसूस कर ली, यह मेरी पूर्व सूचना पर आधारित थी.  मुझे पहले ही बताया जा चुका है और अखबारों में पढ़ा भी था कि भीड़ में चढ़ते या उतरते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें वर्ना कभी भी धोखा हो सकता है और मै इसका ध्यान भी रखता हूं.

कल की बात का प्लस पोइंट यह रहा कि मैने अब तक इस तरह की बातें केवल सुन रखी थी. लेकिन कल इस बात से मुखातिब भी हो गया कि यह सब कैसे और कितनी जल्दी कर लिया जाता है?

इसलिए इस तरह की भीड़भाड़ में सावधान अवश्य रहिए. पैसा पर्स आदि मायने नहीं रखता है लेकिन अगर पर्स में कांटैक्ट और क्रेडिट-डेबिट कार्ड आदि रखा हैं तो फिर हफ्ते भर के लिए पैदल हो सकते हैं.

इस बात को हमेशा के लिए गांठ कर रख लीजिए. सब कुछ एक सेकेंड के अंदर होता है जरा भी चूके तो फिर हाथ मलते रह जाएंगे.

लेखक दीपक पांडेय युवा पत्रकार हैं.

उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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