बिहार का सहरसा जिला पिछले तीन-चार दिनों से छावनी में तब्दील हो गया है. बिजली के लिए चल रहा आंदोलन अब उग्र रूप ले लिया है. आंदोलनकारी अब हिंसा पर उतारू हो गए हैं. कई जगह सरकारी सामानों को क्षति पहुंचाई गई. आंदोलनकारियों ने कई चीजों को आग लगा दी. सहरसा में बिजली को लेकर लगातार तनाव बना हुआ है. आन्दोलनकारियों का कहना है कि पहले सहरसा में छह माह से 2 से 4 घंटा रहती थी, लेकिन कई दिनों से 1 से 2 घंटा ही रह पाती है, वो भी आधा-आधा घंटा. जिससे आम जनता और व्यापारियों को काफी परेशानी हो रही है. इनका कहना है कि इन लोगों कई दिनों तक यहां वहां तमाम लोगों से इस समस्या के बारे में बताया परन्तु न तो नेता और न ही अधिकारियों ने इस तरफ ध्यान दिया, जिसे लोगों में काफी आक्रोश था.
आम लोग कई दिनों से आन्दोलन कर रहे हैं. इस आन्दोलन की आड़ में नेतागण भी अब हिस्सा लेने लगे हैं. आन्दोलनकरियों ने बिजली कार्यालय, रेलवे सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया. जिसे यंहा की पुलिस केवल देखती रही. आपको बता दें कि बिजली कार्यालय थाना के सामने ही तक़रीबन 100 मीटर पर है. फिर भी पुलिस मूक दर्शक बनी रही. क्या ये भी इस आन्दोलन को हिंसक रूप में देखना चाहते थे. अगर नहीं तो फिर इन्होंने उग्र भीड़ को रोका क्यों नहीं? सवाल कई है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. कई आन्दोलनकारियों को पुलिस ने पकड़कर जेल भेज दिया. कई पुलिस लाठीचार्ज में घायल हो गए.
बिहार में लोकतंत्र का यही तकाज़ा हो गया है सरकार के खिलाफ अगर आवाज उठाई तो कुचल दी जायेगी. कई दिनों से सहरसावासियों का आम जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है. नितीश सरकार के ये तानाशाह पुलिस अधिकारी जब आंदोलनकारियों से बात कर रहे थो तो काफी आक्रोश में दिखे. लग रहा था कि जब से दबंग फ़िल्म रिलीज हुई है बिहार की पुलिस भी अपनी दबंगई दिखाने लगी है. सहरसा के एसपी साहब पर ये आरोप है कि जब वो मंदिर में धरना पर बैठे अन्दोलान्करियों से बात करने आये तो अपने पैर से जूता तक नहीं खोला. फिलहाल सहरसा का बाजार कई दिनों से बंद है. यहा का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है जिसे देखने वाला कोई नहीं है.
सहरसा से चंदन/मनोज की रिपोर्ट.