क्या थे, क्या हुए हम और क्या होंगे अभी? …. एक प्रार्थना सभा के दौरान सामने पेड़ पर एक लंगूर उछल कूद मचाये हुए था। वह पेड़ जिसे महात्मा गान्धी ने 1936 में रोपा था, लंगूर इस इतिहास से अपरिचित है, वह नहीं जानता कि जिन टहनियों और पत्तियों को तोड़ कर वह पेड़ नश्ट कर रहा है उन्हें बचाया जाना चाहिए। हमारा यह पूर्वज अभी भी आत्म रक्षा, पेट, सेक्स और अपनों के बीच वर्चस्व से अधिक कुछ नहीं जानता और हम हैं कि जाने-अन्जाने अपने अपने हिसाब से बौद्धिक, कलात्मक, आध्यात्मिक, नैतिक, राजनैतिक, आर्थिक भूख पैदा कर लिया है जिसे हम सभ्यता कहते हैं।
इतिहास गवाह है कि विश्व में एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी और इस प्रकार अनेक सभ्यताओं का जन्म हुआ। ये सभ्यताएं फूली-फली और कालान्तर से समाप्त हो कर नई पीढ़ी के लिए (रिसर्च) शोध का विषय बनीं। सभ्य होने के लिए हमें बहुत कुछ जानना होगा। बहुत कुछ को बचाना होगा और बहुत कुछ से बचना भी होगा। दुख यह है कि हममें से अधिकांश अभी लंगूर चेतना से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। फलतः समय समय पर महावीर बुद्ध, सुकरात, जीसस, मुहम्मद और महात्मा गान्धी को कुर्बानी के लिए ही जीना पड़ता है।
क्या हम गान्धी जी के सेवाग्राम जैसे एक विचारषील कार्यषाला या षास्त्रों में वर्णित पाठषाला का निर्माण नहीं कर सकते? जिसमें नये मनुश्य का निर्माण किया जा सके। जो समाज और राश्ट्र के लिए समर्पित रह सके। आज मूल्यहीनता के इस दौर में जब अवमूल्यन ने सारी सीमाए पार कर ली हैं तब इस विषय पर और भी गहन चिन्तन जरूरी है। यदि हम अब भी नहीं चेते तो मेरी अपील है आपसे कि मित्रों आओ अपनी बची खुची इमानदारी, शराफत, नेकनीयती और मानवता को किसी म्यूजियम में रख आते हैं ताकि आने वाली पीढ़़ी कम से कम यह तो जान सके कि – ’’भेड़ियों का जिस्म और दिमाग लेकर ही नहीं आया था इन्सान, कभी वह भी औरों की पीड़ा देखकर रोता था किन्तु यह तब की बात है जब उसकी चेतना में धन का चकाचौध नहीं, बल्कि विश्वात्मा का प्रकाश झिलमिलाता था।’’
शिवेन्द्र पाठक
स्वतंत्र पत्रकार
सचिव प्रेस क्लब, गाजीपुर
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