जिस किस्म का राष्ट्रवाद आया है भाजपा राज में, यही राष्ट्रवाद पाकिस्तान में दशकों से है
Shayak Alok : यह जिस किस्म का राष्ट्रवाद आया है भाजपा राज में, यही राष्ट्रवाद पाकिस्तान में दशकों से है. कोई कुछ नहीं पूछता और इंशाल्लाह माशाल्लाह करते रहते हैं. हसन निसार, नज्म सेठी, हुडबोय, रउफ क्लसरा, मोईद युसूफ टाइप लोग सेन्स बक देते हैं तो सोशल मीडिया पर गालियों के शिकार होते हैं. एक एक पाकिस्तानी इस पर यकीन रखता है कि भारत से सब युद्ध पाकिस्तान ने जीते. वे सेना को भारी पवित्र मानते हैं.
अभी ही इस सर्जिकल स्ट्राइक की बात एक पाकिस्तानी नहीं मानता क्योंकि उसकी सेना ने कह दिया कि ऐसा नहीं हुआ. वहां जैद हामिद जैसे लोग बड़े नायक हैं जो कहते हैं कि हम भारत को तीन ओर से क्रश कर देंगे. वहां मुबाशिर लुकमान जैसा रोहित सरदाना पाया जाता है जो हर आतंकी हमले में भारत का हाथ साबित कर देता है और तथ्य बकने वाले हर व्यक्ति को दलाल और रॉ एजेंट कह देता है. हम पाकिस्तान होने की राह पर हैं. क्या हम पाकिस्तानी मनोदशा के ही होना चाहते हैं ? नारा ए तकबीर अल्लाह हो अकबर !
हमारा रक्षा खर्च पाकिस्तान से बहुत ज्यादा है. भारत तो अभी विश्व का सबसे बड़ा रक्षा आयातक भी हो गया है. इन दोनों प्रकार के राष्ट्रवादियों की मनोदशा देखनी हो तो यूट्यूब विडियोज़ पर आने वाले कमेंट्स देखा कीजिए. ये पोर्किस्तानी पुकारते हैं और वे रंडीयन. ये उन्हें इस्लाम से जोड़कर गाली बकते हैं और वे इन्हें काऊ पिस ड्रिंकर पुकारते हैं. जिया उल हक पाकिस्तान में मोदी सा ही भारी लोकप्रिय था. एक सरकार और एक मनोदशा का आरोपण एक देश को हमेशा के लिए बदल देता है. जो चल रहा मोदीयुग में, उससे इसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि आगे चीजें और संवाद कैसे बदलेंगे. कैसे एक बौद्धिक राष्ट्र फैनेतिकों का शरणगाह बन जाएगा.
सवाल को घसीट कर इन लोगों ने सेना बनाम कर दिया है. सवाल सरकार बनाम है. अगर सर्जिकल स्ट्राइक इतना पवित्र धार्मिक मामला है कि इस पर शक नहीं करना, तो इसकी सार्वजनिक बात की ही क्यों सरकार ने ? और जब सरकार ने उमड़ कर दावा कर दिया कि उरी का बदला चुका दिया तो कहीं से प्रतिदावा आएगा ही कि फिर सर दिखाओ कि कितने मारे ? जब विश्व भर की मीडिया में इस स्ट्राइक की रिपोर्टिंग किसी घटना की तरह नहीं, भारत के दावे की तरह होगी, तो कोई व्यक्ति उठकर पूछेगा ही कि मामला स्पष्ट करो भाई. मुझे गाय से समस्या नहीं थी, सेना से भी नहीं. मुझे समस्या उनके इस धैल खतरनाक राजनीतिक इस्तेमाल से है जो फूहड़ प्रकार से यह सरकार कर रही.
मेरा स्पष्ट तर्क यह है कि यह सर्जिकल स्ट्राइक आपने किया उरी के जवाब में. आपने इसे बताया ईंट का जवाब पत्थर. हम आपके कहने भर से ही क्यों उछलने लगें? मुझे दिखे तो कुछ कि मैं एक आम नागरिक कह सकूँ कि ए चाब्बास, मुंहतोड़ जवाब दिया. सेना ने कह दिया तो मान लो? इससे वाहियात तर्क मैंने अपने पूरे जीवन में नहीं सुना. सेना ईश्वरीय वक्तव्य बकने वाला कोई पवित्र संस्थान है और उसका अनुयायी होना मेरी मज़बूरी ?
यह सियासत ही है. मैं भी यही कह रहा. अंतर यह है कि मैं इस सियासत को वहां से आरंभ होते देखता हूँ जहाँ सरकार ‘उरी हमले का बदला’ प्रचारित करती है. सहज सवाल है कि बताओ कैसे हुआ बदला पूरा. तुम हमें खून के बदले खून दिलाने वाली विचारधारा सरकार हो न (चुनाव प्रचार याद कीजिए) तो फिर खून के दाग दिखाओ. हमने तो फिर बारामुला का भी खून देखा, उधर का खून कब दिखेगा. कह दिया और अब कह रहे कि इसे किसी पवित्र वक्तव्य की तरह मान लो, और हम मान लें? वाह वाह जी. वाह मोदी जिंदाबाद?
सेना ने अपनी रणनीति और गोपनीयता के दायरे में जो किया सो किया. उसे खुले बाहर ला पटकने का क्या मतलब ? क्या उद्देश्य था? यही न कि लो यह रहा खून का बदला खून. तो मुझे खून दिलाने का वादा कर सरकार में आए और अभी खून दिला देने का दावा कर रहे लोगों से मामूली सवाल ही तो पूछ रहा हूँ कि कैसे मानूं ? कुछ दाग कुछ गंध से मिलाओ. मैं कहता हूँ कई बार कि सांप्रदायिक सरकार नहीं थी. बीज तो तुम्हारे अंदर पहले से है जिसे वह इस्तेमाल भर कर रही. गाय से नहीं संभला पिछला विधानसभा चुनाव तो अब घोड़ा (सेना) से दाँव खेल रहे. जनता हाजिर है सवारी के लिए.
लेखक शायक आलोक युवा कवि और पत्रकार हैं. उनका यह लिखा उनके एफबी वॉल से लिया गया है.