दुर्दांत कवि जुगाड़ूराम जी सदैव जयते

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हमारे शहर के जुगाडू़ रामजी जन्मजात जुगाड़ू हैं। इस कदर पैदाइशी जुगाड़ू कि मां-बाप के परिवार नियोजन के तमाम संयुक्त प्रयासों को सिंगट्टा दिखाते हुए जुगाड़ू रामजी ने अपने पैदा होने का जुगाड़ लगा ही डाला। जुगाड़ू रामजी की इस दुर्दांत हाहाकारी प्रतिभा से प्रभावित होकर ही पराजित मां-बाप ने इनका नाम जुगाड़ू राम रखा। जैसा नाम वैसा काम। अपनी छोटी-सी जिंदगी में अपनी हैसियत और काबिलियत से ज्यादा बड़ी-बड़ी कामयाबियां जुगाड़ू रामजी ने जुगाड़ के बूते पर ही हथियाकर सभी योग्य सुपात्रों को चकरघन्नी बना दिया है।

जुगाड़ के बल पर कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते एक दिन कविता करने का इन पर अटैक पड़ गया। किस पाप घड़ी में कविता करने का यह क्रूर विचार इनके कलेजे में उगा इसकी पुख्ता जानकारी तो खुद जुगाड़ू रामजी के पास भी नहीं है, मगर आज जुगाड़ू रामजी एक लंबे समय से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोकल कवि होने की हैसियत बनाए हुए हैं। उनकी अखंड साहित्यिक हरकतों से तंग आकर और उनके साहित्यिक आतंक से भयभीत होकर आखिर एक दिन भारी मन से नगरवासियों ने उनके अभिनंदन करने का लोमहर्षक फैसला कर ही डाला। अभिनंदन पर आमादा पब्लिक के जुझारू तेवर को भांपते हुए जुगाड़ू रामजी ने भी इस भावुक प्रस्ताव को मंजूर करने में ही भलाई समझी। अभिनंदन के मनोरंजक आयटम को और ज्यादा दिलचस्प बनाने के लिए संयोजकों ने समारोह को नाना प्रकार के टोटकों से लैस करने की ठान ली। और इसी कड़ी में उन्होंने जुगाड़ू रामजी के जीवन के अनेक अप्रकाशित गुप्तरंग पहलुओं को प्रकाशित करने के लिए धर्मपत्नी के बजाय उनकी धर्म साली को आर्त स्वर में मंच पर पुकार लिया। हास्य के पाउड़र और व्यंग्य की क्रीम से लिपे-पुते चेहरे को लेकर धर्मसालीजी डायरेक्ट ऐसी की तैसी ब्रांड ब्यूटी पार्लर से निकल कर मंच पर ऐसी धमकीं जैसे कि ऐबटाबाद में बिन लादेन की कोठी की छत पर कोई अमेरिकन सील कमांडो टपका हो।

धर्मसालीजी ने जुगाड़ू रामजी का ऐसा महीन स्वागत किया कि कूल-कूल कड़कड़ाती ठंड में भी उन्हें पसीने आ गए। और प्रसन्नतावश उनके हाथ-पांव फूल गए। कोलवर्णी धर्मसालीजी ने जुगाड़ू रामजी की तारीफ में ऐसे-ऐसे बयान दिए, जिसे सुनकर वे मर्मांतक प्रसन्नता से मंच पर गर्म तवे पर रखी मछली की तरह छटपटा उठे। जुगाड़ू रामजी की धर्मसाली ने कहा कि मैं वैसे तो जुगाड़ू रामजी की फेमिली कैबिनेट की जायज मेंबर नहीं हूं, मगर हमेशा इनकी काली-पीली करतूतों को बाहर से ही अपना नैतिक समर्थन देती रहती हूं। मुझे आप इनके कालेधन की पासबुक मान सकते हैं। जब दो पैग लग जाते हैं तब जीजा जुगाड़ू रामजी रंग-रंगीले, छैल-छबीले कवि हो जाते हैं। मैं इनकी कविता की नग्‍नता से इतनी बुरी तरह प्रभावित हूं कि सम्मान से मैं इनको सार्वजनिकरूप से कविता का नागा बाबा, दुराचार का दाउद और और शरारत का शंकराचार्य कहते हुए गौरव का अनुभव करती हूं। बदमाशी की बहुमुखी प्रतिभा हैं जीजा जुगाड़ू रामजी। महाभारत के महानायक दुर्योधन की तरह विनम्र और दुःशासन की तरह सचरित्र। इनके सत्संग में आकर शहर के सभी चोर-उचक्के एक झटके में सम्मानित नागरिकों में शुमार होने लगते हैं। फिर इनमें खुद सम्मान का कितना चुंबकत्व होगा यह आप सब आसानी से समझ ही सकते हैं।

आज जुगाड़ू रामजी का सम्मान हो रहा है। यह सम्मान जुगाड़ की ललित कला का सम्मान है। जुगाड़ू रामजी का सम्मान इनके भाग्य का सौभाग्य और साहित्य का दुर्भाग्य है। इनका कवि बनना राष्ट्रीय शोक और कौमी शोध का विषय है। ये जुगाड़ू रामजी की ही प्रतिभा है कि जिन कविताओं की पंक्तियों को ट्रक ड्राइवरों और टेंपोवालों ने भी अपने वाहनों पर लिखने से मना कर दिया ये उन्हीं बहुमूल्य कविताओं की दम पर साहित्य के बड़े-बड़े पुरस्कार पा गए। और तमाम ज्ञानवान अकादमियों के एक साथ सलाहकार भी बन गए। जुगाड़ू रामजी ने मन से जिस भी काम को हाथ में लिया, पूरी कुशलता के साथ उस काम का काम तमाम कर दिया। जिस सलीके से आप पानीदार लोगों की इज्जत पर पानी फेर देते हैं, उस कला के लिए जुगाड़ू रामजी का नाम आज नहीं तो कल गिनीज बुक आफ रिकार्ड में जरूर शामिल किया जाएगा, ऐसा हम सभी का मानना है। जुगाड़ू रामजी मंच पर पूरे जोश के साथ हाथ से कविता पढ़ते हैं, टांग से कविता पढ़ते हैं कभी-कभी वे दिमाग से भी कविता पढ़ा करें, इस महीन सलाह के साथ मैं यह भी अखंड विश्वास रखती हूं कि दिमाग न होने के बावजूद दिमाग से कविता पढ़ने का जुगाड़ जुगाड़ू रामजी जरूर ही लगा लेंगे। जुगाड़ू रामजी का फ्यूचर बहुत ब्राइट है। क्योंकि आज के जमाने में प्रतिभा नहीं जुगाड़ ही परम सत्य है। इसीलिए आजकल लोग सत्यमेव जयते नहीं जुगाड़ मेव जयते को जीवन की सफलता का मूलमंत्र मानने लगे हैं। बिल्कुल जुगाड़ू रामजी की तरह।

इस हास्य-व्यंग्य के लेखक पंडित सुरेश नीरव हैं. पंडित जी काव्यमंच के लोकप्रिय कवि हैं. 16 पुस्तकें प्रकाशित. 7 धारावाहिकों का पटकथा लेखन. अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेंच में अनुवाद. 30 वर्ष तक कादम्बिनी के संपादन मंडल से संबद्ध. छब्बीस देशों की विदेश यात्राएं. भारत के राष्ट्रपति से सम्मानित. आजकल स्वतंत्र लेखन और यायावरी. उनसे संपर्क सुरेश नीरव, आई-204, गोविंद पुरम, गाजियाबाद या मोबाइल नंबर 09810243966 के जरिए किया जा सकता है.

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