यूपी विधानसभा चुनाव परिणाम ने दुनिया भर के राजनीति के पंडितों को चौका दिया है.ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भाजपा की सफलता अत्यंत अप्रत्याशित व अभूतपूर्व है.यहां मोदी के करिश्मे के बदौलत उसने तीन सौ से अधिक सीटें जीतकर विधानसभा के चुनावी इतिहास के सारे रिकार्ड तोड़ दिया है.ऐसी सफलता वह उस 1991 के राम लहर में भी हासिल नहीं कर पायी थी, जो 2017 में मोदी लहर में अर्जित किया है.राम लहर में उसे 430 में से 221 सीटों पर ही सफलता मिल पाई थी.किन्तु उसने मोदी लहर में 403 में से 325 सीटें जीता है जो तीन चौथाई बहुमत (302) से भी ज्यादा है.सीटों का तीहरा शतक लगाने के क्रम में उसने सपा-कांग्रेस गठबंधन (54 सीटें) से छः गुना और और बसपा (19 सीटें) से 17 गुना अधिक सीटों पर सफलता पाया है.स्वाधीनता के बाद शायद यह पहला अवसर है जब किसी पार्टी को इतनी प्रचंड सफलता मिली है.वैसे 1951-52 के प्रथम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 388 सीटें मिली थीं,किन्तु उस समय यूपी और उत्तराखंड दो अलग राज्य नहीं बने थे एवं सीटों की कुल संख्या 430 थीं.यही नहीं तब एक साथ चार ऐसे दल भी एक साथ चुनाव में नहीं उतरे थे जिन्होंने अलग समय से यहां की सत्ता संभाली.इसी तरह 1977 और 1980 में जनता पार्टी और कांग्रेस ने क्रमशः 352 और 309 सीटें जीता,पर उस समय भी सीटें 430 थीं प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था.ऐसे में कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सफलता विशुद्ध विस्मयकारी है. बहरहाल इस चुनावी विस्मय उबारने के बाद अब पूरी दुनिया की निगाहें उसके द्वारा चुने जाने वाले सीएम चेहरे की ओर टिक गयी है.
अब जहां तक मुख्यमंत्री के संभावित चेहरों का सवाल है मीडिया में राजनाथ सिंह,मनोज सिन्हा ,महेश शर्मा ,दिनेश शर्मा,श्रीकांत शर्मा,स्मृति जुबिन इरानी ,ह्रदय नारायण दीक्षित का नाम काफी उछला है.लेकिन संभावित सीएम का चेहरा ढूंढते समय यह भी ख्याल रखना होगा कि भाजपा नेतृत्व अपनी पार्टी का बदनाम सवर्णवादी स्वरूप बदलने के लिए लोकसभा चुनाव-2014 से ही सवर्णों के बजाय पिछड़ों और दलित पर फोकस करने की रणनीति अपनाया है,जिसे मोदी स्पेशल सोशल इंजीनियरिंग कहा जा रहा है.इस रणनीति के तहत ही पार्टी के केन्द्रीय संगठन से लेकर प्रदेश और जिला स्तर पर पार्टी की बागडोर पिछड़ों के हाथ में देने का अधिकाधिक प्रयास हुआ.ऐसा करने से ही हिंदी पट्टी में भाजपा को इच्छित सफलता मिली.ऐसे में ढेरों लोग का कयास है कि भाजपा के मुख्य शिल्पी मोदी-शाह इस सोशल इंजीनियरिंग को बनाये रखने का हर मुमकिन प्रयास करेंगे.यही कारण है सीएम फेस के तौर पर केशव प्रसाद मौर्य और संतोष गंगवार का नाम कुछ ज्यादे ही प्रमुखता से लिया जा रहा है.लेकिन इससे इतर कईयों का यह भी मानना है कि जिस तरह मोदी-अमित शाह ने हरियाणा और झारखण्ड में एकदम अप्रत्याशित चेहरों पर दांव लगाया वैसा ही कुछ यूपी में भी हो सकता है.अतः लोग दीर्घ समय से संघ से जुड़े किसी अप्रत्याशित व चौकाने वाले चेहरे का कयास लगा रहे हैं.और इसकी सम्भावना ही ज्यादे है,इसका संकेत खुद प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मार्च को अपनी पार्टी के मुख्यालय में आयोजित स्वागत समारोह में कर दिया.उन्होंने उस दिन अपने संबोधन में यूपी के भावी सीएम का संकेत देते हुए कहा था -‘कई चेहरे आये हैं जिसे कोई नहीं जानता,कभी अख़बारों की सुर्ख़ियों में नहीं आये ..लेकिन मैं भरोसा दिलाता हूँ वह आपकी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे..उनके इरादे में कोई खोंट नहीं होगा’
तो क्या पीएम जिस चेहरे की ओर इशारा कर रहे हैं,वह कोई दलित है?मुझे तो ऐसा ही लगता है,क्योंकि मोदी यूपी के भावी सीएम की जो खासियत बता रहे है,वैसा तो कोई दलित ही हो सकता है.यह सम्भावना इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि संघ परिवार ने विगत कुछ वर्षों में डॉ.आंबेडकर के प्रति श्रद्धा उड़ेलने में बाकी दलों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.याद करें बाबा साहेब की 125 वीं जयंती वर्ष में ‘सघ प्रमुख की ओर से उन्हें भारतीय पुनरुत्थान के पांचवें चरण के अगुआ के रूप में आदरांजलि दी गयी’.उसी वर्ष मुंबई के दादर स्थित इंदु मिल को आम्बेडकर स्मारक बनने की दलितों की वर्षों पुरानी मांग को भाजपा सरकार द्वारा स्वीकृति मिली.बात यहीं तक सिमित नहीं रही,इंदु मिल में स्मारक बनाने के लिए 425 करोड़ का फंड भी मोदी सरकार ने सुलभ करा दिए.उन्ही दिनों लन्दन के जिस तीन मंजिली ईमारत में दो साल रहकर बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर ने शिक्षा ग्रहण की थी,उसे चार मिलियन पाउंड में खरीदने का काम भी मोदी-राज में हो गया. इसके अतिरिक्त और भी ढेरों काम हुए जिसकी प्रत्याशा मोदी-पूर्व युग में कोई संघ से नहीं कर सकता था .इसी क्रम में 2015 में 26 नवम्बर को संविधान दिवस घोषित किया गया.उस अवसर पर प्रधानमंत्री का उदगार ऐतिहासिक रहा.उन्होंने कहा था-‘अगर बाबा साहेब ने इस आरक्षण व्यवस्था को बल नहीं दिया होता,तो कोई बताये कि मेरे दलित,पीड़ित,शोषित समाज की हालात क्या होती?परमात्मा ने उसे वह सब दिया है ,जो मुझे और आपको दिया है.लेकिन उसे अवसर नहीं मिला और उसके कारण ही उसकी दुर्दशा है.उन्हें अवसर देना हमारा दायित्व बनता है!.’
शायद डेढ़ साल पूर्व कही गयी उपरोक्त बातों का स्मरण करते हुए ही 12 मार्च को मोदी ने अपने संबोधन में ‘न्यू इंडिया’का विजन प्रस्तुत करते हुए पुनः कह डाला -‘राष्ट्र निर्माण में गरीबों को जितना अवसर मिलेगा,देश उतना ही आगे बढेगा.गरीब अपने बलबूते से आगे जाना चाहता है.आप उसे अवसर उपलब्ध करा दीजिये ,वह अपने आप आगे का रास्ता तय करेगा.यह न्यू इंडिया की नीव है.’ ऐसे में मोदी के ‘न्यू इंडिया’विजन के आईने में यूपी में किसी दलित सीएम की प्रत्याशा क्या ज्यादती कहलाएगी?ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ कि भाजपा ब्राह्मण,क्षत्रिय,विषयों से युक्त सवर्णों, पिछड़ों और आदिवासियों में से कईयों को सीएम,पीएम बना चुकी है.नहीं बनाई है तो किसी दलित को.ऐसे में ढेरों लोगों को लगने लगा है कि यूपी की 75 सुरक्षित सीटों में से 68 पर विजय हासिल करने वाली भाजपा इस बार किसी दलित को सीएम बनाकर ही चौकायेगी.शायद इस बात को ही ध्यान में रखते हुए ही पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में यूपी में दलित मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग उठ रही है.इस क्रम में सांसद कृष्णा राज,कौशल किशोर और खास तौर से डॉ.विजय सोनकर शास्त्री को यूपी की सीएम बनाये जाने की मांग सोशल मीडिया में तेज हो गयी है.इनमें डॉ.शास्त्री पर ही लोगों का ध्यान ज्यादे जा रहा है.प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में जैसे चेहरे का संकेत दिया,उसकी खासियत डॉ.सोनकर में ही ज्यादा नजर आ रही है.ऐसे में उम्मीद की जा सकती कि मुख्यमंत्री के रूप में जिस चौकाने वाले चेहरे को मोदी-अमित शाह सामने लायेंगे,वह संभवतः दलित ही होगा.क्योंकि बिना किसी दलित के हाथ में किसी प्रदेश की बागडोर दिए , भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग अधूरी रहेगी और यूपी की महा-विजय से उत्साहित मोदी-शाह शायद इसे पूर्णता प्रदान करने का अवसर व्यर्थ नहीं होने देंगे.अगर ऐसा नहीं होता है तो मानना पड़ेगा सवर्णवादी भाजपा में दलितों को लेकर अभी भी अस्पृश्यता बोध है.
लेखक एच.एल. दुसाध वरिष्ठ दलित चिंतक और सोशल एक्टिविस्ट हैं.