दुनिया के बहुत सारे मुल्कों में भ्रष्ट सता के खिलाफ़ आंदोलन चल रहा है। चीन के थ्येन आन चौक पर पहली बार हजारों-लाखों नौजवानों की भीड़ प्रजातंत्र की स्थापना के लिये उमड़ी थी, शक्तिशाली चीन ने सैनिक ताकत की बदौलत उसे दबा दिया। सैकड़ों निर्दोष जेल में डाल दिये गये। चीन की बढ़ती सैनिक एवं आर्थिक ताकत के भय से प्रजातंत्र की रहनुमाई करने वाले दुनिया के सभी देशों ने खामोश रहकर या प्रतीकात्मक विरोध दर्ज करा कर चीन के दमन को ताकत प्रदान करने का काम किया। किसी ने भी चीन में स्थित अपने राजदूतावास को बंद करने की हिम्मत नही जुटाई। तर्क था कि यह चीन का घरेलू मामला है, आपके पडोसी के घर में हत्या हो रही हो और आप खामोश रहें क्योंकि पड़ोसी का मामला है। समरथ को नहीं दोष गुसाई- लेकिन चीन में आवाज खामोश नहीं हुई। आज भी हर साल सैकड़ों विद्रोह स्थानीय स्तर पर चीन में हो रहे हैं। थोड़ी देर होगी लेकिन प्रजातंत्र वहां बहाल होगा।
अभी मिस्र में हजारों युवक सड़कों पर उतर आये हैं। होस्नी मुबारक के 30 साल के शासन का अंत आ चुका है। होस्नी मुबारक ने मंत्रिमंडल को बदलने की घोषणा की है, ठीक उसी तरह जैसे घोटालों के कारण मनमोहन सिंह ने मंत्रियों का फ़ेरबदल किया, लेकिन मिस्र के युवा मुबारक के इस्तीफ़े से कम कुछ भी नहीं चाहते। हो सकता है, आप जब यह पढ़ रहे हों, मिस्त्र में सेना के सहयोग से एक नये शासन की नींव पड़ रही हो। मिस्त्र की सेना ने अपने ही लोगों के खिलाफ़ टैंक के गोले दागने से इनकार कर दिया है। मिस्त्र की सेना का तर्क भी सही है। सेना का मानना है कि नौजवानों का विरोध मिस्र के खिलाफ़ नहीं है बल्कि राजसत्ता के खिलाफ़ है। यानी यह आंदोलन देशद्रोह नहीं है। भारत में भी सेना नक्सलवादियों के खिलाफ़ लड़ने से मना कर चुकी है। नक्सल आंदोलन भारत के खिलाफ़ जंग नहीं है। उनकी लड़ाई जनता की सत्ता स्थापित करने के लिये है। हो सकता है नक्सलवादियों का हिंसा का तरीका गलत हो, लेकिन खेत जोतने वाले मंगरू को बंदूक उठाना पड़ गया, इसकी नौबत कैसे आ गई?
मिस्त्र की सेना और भारत की सेना की सोच में एक समानता है, दोनों मानते हैं कि सेना का काम राजसत्ता की हिफ़ाजत करना नहीं है, देश की हिफ़ाजत करना है। मिस्र की सेना ने पूरी दुनिया के भ्रष्ट शासकों को एक संदेश दिया है। अपनी सता की रक्षा के लिये अपने ही मुल्क के लोगों की हत्या के लिये सेना का प्रयोग बंद करो। उपर से सब कुछ शांत दिख रहा है, लेकिन दुनिया के वैसे सभी मुल्क जहां राजसत्ता के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग चल रही है, सकते में आ गये हैं। सेना अब जन-सेना के रुप में काम करना चाहती है। गुलाम मुल्कों में सेना का उपयोग राज-सत्ता की रक्षा और जनता के आंदोलन को दबाने के लिये होता था। हिंदुस्तान में भी आजादी के पहले सेना का उपयोग जालियांवाला बाग में लाशों का ढेर लगाने के लिये होता था। आजादी के बाद सेना का वैसे कार्यों के लिये प्रयोग बंद कर देना पड़ा।
मिस्र की सेना का कदम एक शुभ संकेत है। गांधीवादियों ने घोटाले और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आमरण अनशन की घोषणा की है। हिंदुस्तान के हर देशवासी का कर्तव्य है उनका साथ दें। 80-90 वर्ष के लोग अपनी जान भ्रष्टाचार की जंग में न्यौछावर करने के लिये तैयार हैं, अगर हम उनका साथ नहीं देंगे तो कायर कहलायेंगे। जिन लोगों ने आमरण अनशन की घोषणा की है, वे सभी बिनोबा भावे, लोहिया और जय प्रकाश से महान हैं। उन्होंने कभी भी राजनितिक हित के लिये काम नहीं किया। केन्द्र की सरकार का खात्मा ही एकमात्र तत्कालीन विकल्प बचा है।
लेखक मदन कुमार तिवारी बिहार के गया जिले के निवासी हैं. पेशे से अधिवक्ता हैं. 1997 से वे वकालत कर रहे हैं. अखबारों में लिखते रहते हैं. ब्लागिंग का शौक है. अपने आसपास के परिवेश पर संवेदनशील और सतर्क निगाह रखने वाले मदन अक्सर मीडिया और समाज से जुड़े घटनाओं-विषयों पर बेबाक टिप्पणी करते रहते हैं.