मोदी-योगी युग में किसानों की बल्ले-बल्ले

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अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश में सत्ता परिर्वतन किसानों के लिये खुशियों की सौगात ले कर आई है। चुनावी प्रचार के दौरान पीएम मोदी के किसानों से किये गये वायदे के अनुसार लघु और सीमांत किसानों का कर्जा माफ होने के साथ यूपी के नये सीएम योगी आदित्य राज ने किसानो का सौ फीसदी गेहूं खरीदने की घोषणा कर दी है। गेहूं खरीद का पैसा सीधे किसानों के खाते में जायेगा। योगी सरकार के द्वारा गन्ना किसानों को उनका भुगतान जल्द से जल्द दिलाये जाने की कोशिश हो रही है। योगी सरकार केन्द्र की उन योजनाओं को भी जल्द से जल्द जमीनी हकीकत में बदलेगी जिससे किसानों का भला हो सकता है। सीएम योगी का तो ध्यान किसानों की समस्याओं पर है ही इसके अलावा किसानों के लिए केन्द्र सरकार ने भी इस बजट में कई अहम घोषणाएं की हैं। जैसे मनरेगा के लिए 48,000 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है। योजना के तहत गांवों में 10 लाख तालाब बनेंगे. ई-नैम के तहत एपीएसी के लिए 75 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान और को-ऑपरेटिव बैंकों में सेवाओं को डिजिटल बनाने के लिए 3 साल में 1900 करोड़ रुपये का प्रस्ताव. इसके अलावा नाबार्ड के अंतर्गत डेयरी प्रोसेसिंग इंफ्रा फंड के तहत 8000 करोड़ रुपये का प्रावधान और फसल बीमा योजना की रकम 5500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 13 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है।

अखिलेश राज में केन्द्र की तमाम किसान कल्याणकारी योजनाओं का फायदा अन्य राज्यों की तरह यूपी के किसानों को नहीं मिल पा रहा था। यह चुनावी मुद्दा भी बना था, किसानों को लेकर मोदी और अखिलेश के बीच खूब वाद-विवाद देखने को मिला था,तब यह समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, लेकिन फाइलें झूठ नहीं बोला करती है। अखिलेश राज समाप्त होने के बाद जो हकीकत उभर कर आ रही है उससे तो इसी बात के प्रमाण मिलते हैं कि किसानों की मदद करने की मोदी की मंशा पर अखिलेश सरकार और उनकी नौकरशाही ने जानबूझ कर ग्रहण लगा दिया था। वित्तीय वर्ष 2016-2017 में किसानों की मदद के लिये 1700 करोड़ की जो धनराशि जारी की गई थी,उसमें से 1200 करोड़ रूपया किसानों को बंट ही नहीं पाया। सरकार की नाक के नीचे लखनऊ में तो एक पैसा भी राहत के नाम पर किसानों को नहीं मिला। अब प्रमुख सचिव राजस्व कह रहे हैं कि पता किया जायेगा कि ऐसी गलती कैसे हुई। सीएम योगी ने भी इस गडबड़ी का संज्ञान ले लिया है।

बीजेपी के पर्दे के पीछे के नायक

यह सच है कि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह-मोदी का जादू  मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला,लेकिन ऐसा सोचते समय हमें ‘नींव’ के उन ‘ईटों’ को नहीं भूल जाना चाहिए जिसकी वजह से बीजेपी ने जीत की शानदार ‘इमारत’ तैयार की। चाहें यूपी के प्रभारी ओम प्रकाश माथुर और सुनील बंसल  हों या फिर उत्तराखंड के प्रभारी पेट्रोलियन मंत्री धमेन्द्र प्रधान और केन्द्रीय मंत्री जे0पी0 नड्डा। इन लोंगो की बिछाई बिसात पर ही मोदी और शाह ने अपनी सियासी गोटिंया सलीके के साथ आगे बढ़ाई थीं। ओम प्रकाश माथुर की बात तो हमेशा ही होती रहती है,लेकिन यूपी में बीजेपी की जीत के पर्दे के पीछे के नायक बीजेपी के प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल को कम ही लोग जानते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से पिछले ढाई सालों में बंसल संगठन के भीतर मजबूती के साथ उभरे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सह.संगठन मंत्री रह चुके बंसल को लोकसभा चुनाव से पहले संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी जिसमे वह खरे उतरे।

बंसल को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का राइट हैंड भी कहा जाता है। बंसल ने शाह के साथ मिलकर 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में खास रणनीति के तहत काम किया और बीजेपी तथा उसकी सहयोगी पार्टियों को 80 में से 73 सीटें दिलाने में अहम किरदार निभाया था। इसी के बाद शाह ने बंसल के कंधों पर यूपी विधान सभा चुनाव जिताने की जिम्मेदारी डाली थी। बंसल ने कोई नया प्रयोग करने की बजाये सियासत का  पारम्परिक तरीका अपनाया,उन्होंने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही यूपी चुनाव लड़ने का फैसला किया। युवाओं से सीधा जुड़ने के लिए बीजेपी की सोशल मीडिया टीम पर खास नजर रखने वाले सुनील ने यूपी में जातीय समीकरणों को बेहद बारीकी से समझा। इसी लिये बंसल ने बूथ लेवल तक के कार्यकर्ताओं को दलित, पिछड़ा और महिला मतदाताओं से सीधे तौर पर जुड़ने को कहा। बंसल की इसी रणनीति का नतीजा यह निकला कि बीजेपी की यूपी में 2 करोड़ से ज्यादा सदस्यता हो गई जिसका फायदा चुनाव में मिला।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक बीजेपी के लिये सबसे बड़ी समस्या थी गांव-देहात में उसकी पैठ नहीं होना। बीजेपी की शहरी पार्टी समझा जाता था। शहरी पार्टी की इस छवि को खत्म करने के लिये मोदी और शाह लगे हुए थे। इसी के तहत सबसे पहले बीजेपी के रणनीतिकारों माथुर और बंसल ने पार्टी के टिकट पर पंचायत चुनाव लड़वाने की योजना बनाई,जिसका काफी विरोध हुआ,दरअसल, बंसल ने पार्टी प्रत्याशियों को गांवों से जुड़ने के लक्ष्य के साथ पंचायत चुनाव लड़वाया था। 327 प्रत्याशी मैदान में उतारे गयें। पंचायत चुनाव में पार्टी के खाते में बहुत अधिक सीटें तो नहीं आईं लेकिन गांवों तक बीजेपी की पहुंच हो गई,जिसका सीधा फायदा विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। यह बंसल की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है।

उधर, बीजेपी आलाकमान ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए केंद्रीय मंत्रियों-जेपी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान को पार्टी को काफी पहले प्रभारी नियुक्त कर दिया था। इन प्रभारियों की मशक्कत के चलते बीजेपी की उत्तराखंड में सियासी जमीन मजबूत होना शुरू हुई तो हरीश रावत के नेतृत्व में काफी सशक्त लग रही कांग्रेस में बगावत के सुर फूटने लगे। कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं और विधायकों ने चुनावी बेला में पाला बदलकर हरीश और कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा दी। फिर भी मुख्यमंत्री हरीश रावत को विश्वास था कि बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में वह सफल हो जायेंगे, दरअसल, जिस तरह से उत्तराखंड के राज्यपाल द्वारा हरीश रावत सरकार को बर्खास्त और हाईकोर्ट द्वारा उनकी सरकार को बहाल किया गया,उससे हरिश रावत को लगता था कि मतदाताओं की उनके प्रति सहानुभूति बढ़ी होगी,जो चुनाव के समय वोट में तब्दील हो जायेगीं। परंतु वह यहां गच्चा खा गये और बीजेपी की रणनीति कामयाब रही।

उज्जवला योजना का होगा विस्तार
                                                       
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में मिली शानदार कामयाबी के बाद मोदी सरकार के हौसले काफी बढ़े हुए है। यूपी में बीजेपी की जीत से उत्साहित पेट्रोलियम मंत्री धमेन्द्र प्रधान कहते हैं अब यूपी में विकास की गंगा बहेगी। इसी क्रम में यूपी के गोरखपुर से नेपाल के रूपनदेह तक प्राकृतिक गैस पाइप लाइन बनाने की योजना भी कार्यरूप ले रही है। इसी प्रकार अब दोनो राज्यों की गरीब गृहणियों को एक और तोहफा मिल सकता है।यह तोहफा है उज्जवला स्कीम के तहत गरीब महिलाओं को दिए जाने वाले रसोई गैस कनेक्शन के कोटे यानी हिस्सेदारी मंे बढ़ोतरी। उज्जवला स्कीम के तहत केंद्र सरकार गरीब महिलाओं को फ्री में एलपीजी (रसोई गैस ) कनेक्शन देती है। मोदी सरकार ने इस स्कीम के तहत तीन साल में 5 करोड़ गरीब महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा है। इसमेें सभी राज्यों की हिस्सेदारी उसकी जनसंख्या के आधार पर तय की गई हैं। चालू वित्त वर्ष में उज्जवला स्कीम के तहत यूपी में 50 लाख एलपीजी कनेक्शन और उत्तराखंड मेें एक लाख कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है। सूत्रों के अनुसार अगले वित्त वर्ष यानी 2017- 18 के लिए यूपी और उत्तराखंड के लिए इस स्कीम के तहत गैस कनेक्शन देने के लिए संख्या को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए किसी अन्य राज्य के हिस्से को कम नहीं किया जाएगा। बताते हैं कि यूपी और उत्तराखंड में उज्जवला स्कीम के तहत फ्री में दिए जाने वाले फ्री रसोई गैस कनेक्शन में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती हैं, ऐसा होने पर यूपी में 60 लाख से ज्यादा और उत्तराखंड में 1.30 लाख गरीब महिलाओं को गैस कनेक्शन दिए जाएगा।
 

लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार और संजय सक्सेना की रिपोर्ट.

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