अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तेजी से फैसले ले रही है। उम्मीद है कि जल्द इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। बात आज तक की कि जाये तो फिलहाल कानून व्व्यवस्था को छोड़कर अन्य फैसलों का अभी जमीन स्तर पर कोई खास असर नहीं दिखाई पड़ रहा है और यह उम्मीद भी नहीं की जा सकती है,इतनी जल्दी किसी सरकार के फैसले जमीन पर उतर सकते है, लेकिन जनता में योगी सरकार को लेकर विश्वास है। यह बड़ी वजह है। गलत काम करने वालों के हौसले पस्त पड़ रहे हैं। सरकारी धन की लूट पर शिकंजा कसा जा रहा है तो समाज में व्याप्त भेदभाव और भय के माहौल को कम करने के लिये भी योगी सरकार प्रयत्नशील है।
योगी सरकार सीधे जनता से जुड़े मसलों स्वास्थ्य सेवाओं, बिजली-पानी, शिक्षा सुधार,सड़क आदि पर विशेष ध्यान दे रही है। महिलाओं की सुरक्षा पर भी योगी सरकार सजग है। प्रदेश में ऐसे लोंगो की संख्या लगातार बढ़ रही है जिनका मानना है कि योगी सरकार बिना भेदभाव के काम कर रही है। अपराधियों को सरकारी संरक्षण मिलना बंद हो गया है। धर्म की आड़ में अधर्म के खेल पर भी योगी सरकार सख्त रूख अपनाये हुए है। सरकारी योजनाओं का बंदरबांट करके भ्रष्टाचार का खेल खत्म भले नहीं हुआ हो अंकुश तो लगा ही है। परंतु सबसे बड़ी समस्या है नौकरशाही को हैंडिल करना। अभी तक यूपी की नौकरशाही नई सरकार के साथ तालमेंल नहीं बैठा पाई है। वह पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के तौर-तरीकों पर ही चल रही है।
सीएम योगी के बार-बार कहने के बावजूद तमाम नौकरशाहों ने अपनी सम्पति का ब्योरा शासन को उपलब्ध नहीं कराया है। वैसे,सम्पति की घोषणा के मामले में योगी के नौकरशाह ही नहीं मंत्री भी टाल-मटोल का रास्ता अपना रहे हैं। बात नौकरशाहों की हठधर्मी की कि जाये तो ऐसा स्वभाविक भी है क्योंकि तमाम महत्वपूर्ण पदों पर अभी भी सपा के वफादार ही विराजमान हैं। हालांकि कुछ आईएएस/पीसीएस अधिकारियों को इधर से उधर किया जरूर गया है,मगर इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है। हॉ, जो बदलाव किया जा रहा है उससे यह संकेत जरूर मिलते हैं कि योगी राज में ईमानदार अफसरों की पूछ बढ़ रही है। डीजीपी के पद पर सुलखान सिंह की नियुक्ति इसकी बानगी है।
सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर दौड़ाई जाये तो नौकरशाही की लगाम अभी तक भले ही सीएम पूरी तरह से कस नहीं पाये हों, लेकिन उनके मंत्रिमंडल के सदस्य प्रदेश की तस्वीर बदलने के लिये लगातार प्रयासरत है। हो सकता है कहीं-कहीं पर अनुभव की कमी आड़े आ रही हो,परंतु किसी मंत्री की नियत में खोट नजर नहीं आती है। मंत्री तो ठीकठाक महत्व कर रहे हैं,लेकिन बदलाव दिखे इसके लिये सीएम योगी को थानों से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों का चाल-चरित्र और चेहरा बदलना होगा। पूरा सिस्टम सुधारना होगा। अधिकारियों/कर्मचारियों का मात्र तबादल करके हालात बदलने वाले नहीं है। इन लोंगो का जमीर जगाना होगा और इन पर इतना सख्त पहरा बैठाना होगा जिससे कोई गलत काम हो ही नहीं सके। शायद यह बात सीएम योगी समझते भी हैं,इसी लिये वह तबादलों पर ज्यादा जोर नहीं दे रहे हैं, जो अधिकारी एक जगह ठीक से काम नहीं कर रहा है,वह दूसरी जगह कैसे ठीक से काम कर सकता है।
बहरहाल, योगी सरकार ने पहले पंचम तल पर थोडा-बहुत बदलाव किया और उसके बाद पुलिस महानिदेशक की कुर्सी पर सुलखान सिंह ताजपोशी करके यह संकेत जरूर दे दिये हैं कि योगी सरकार की सुधार की प्रकिृया ऊपर से ही शुरू करनी पड़ेगी। अगर ऊपर बैठा अधिकारी सही होगा तो नीचे के स्टाफ को सुधारने में ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ेगी। सीएम योगी सरकार की छवि को लेकर काफी सजग हैं तो पिछली सरकार की खामियां भी उजागर करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। अभी तक अखिलेश सरकार की करीब डेढ़ दर्जन योजनाओं पर वह जांच बैठा चुके हैं। अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट लखनऊ का गोमती रिवर फ्रंट घोटाला, आगरा एक्सप्रेस वे के लिये भूमि अधिग्रहण के नाम पर किया गया सपाइयों का कारनामा।
समाजवादी चिंतक स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र के नाम पर बने पार्क में घोटाला, पुराने लखनऊ में इमामबाड़े के आसपास सौर्न्द्रीयकरण पर घोटाला, सपा एमएलसी बुक्कल नबाब को नजूल की जमीन का मालिक बताकर उन्हें करोड़ों का मुआवजा देना, पिछले पांच वर्षो में तमाम जमीनों का भू-उपयोग परिवर्तन किये जाने की जांच, नियमों की धज्जियां उड़ाकर यश भारती अवार्ड बांटना। वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति पर अवैध कब्जे और अनाप-शनाप तरीके से बेचे जाने की जांच, लखनऊ में साईकिल ट्रैक बनाने के नाम पर और कई जिलों में खनन घोटाला जिसकी चर्चा चुनाव के समय भी हुई थी। इसके अलावा 29 विकास प्रधिकरण की सीएनजी से जांच दायरे में ग्रेटर नोएडा, लखनऊ बनारस, आदि के प्राधिकरण भी निशाने पर हैं। बंुदेलखंड की 721 करोड़ की एरच बांध परियोजना की जांच के लिये भी कमेटी गाठित कर दी गई है। भू-माफियाओं से सरकारी जमीन कब्जा मुक्त कराने के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। देखना यह है कि इन जांचो का निचोड़ क्या निकलता है। क्योंकि पूर्व भी ऐसी तमाम जांचे ठंड बस्ते में चले जाने की परम्परा रही है।
एक तरफ योगी अखिलेश सरकार के कारनामों की जांच करा रहे हैं तो दूसरी तरफ वह अपने एजेंडे पर भी आगे बढ़ रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अखिलेश सरकार पर हमलावार होते हुए अवैध बूचड़खानों, महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़, अवैध खनन, प्रदेश में व्याप्त गुंडागर्दी को अहम मुद्दा बनाया था,इस तरह के तमाम मोर्चे पर योगी सरकार काफी मशक्कत के साथ काम कर रही है। फिलहाल, जो माहौल बना हुए है,उससे तो यह ही लगता है कि योगी अपने कड़क मिजाज के अनुसार ही कड़क फैसले ले रहे हैं और उनके सामने सब नतमस्तक नजर आ रहे हैं।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.