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समाज-सरोकार

अयोध्‍या 2 : किसके हिस्‍से कितनी आस्‍था

सुबहे बनारस और शामे अवध की संस्कृति ने पूरे भारतवासियों को जो साहस दिया, अभूतपूर्व था. गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच का फैसला आने के पूर्व नि:संदेह पूरे देश में एक खामोश दहशत का माहौल था और टीवी चैनलों पर शांति व संयम की लगातार अपील की जाती रही. देश जब-जब संकट के दौर से गुजरता है, देखा गया कि गांधी आज भी उसे सबल प्रदान करते हैं. गुरुवार को भी यहीं हुआ. महात्मा गांधी की तस्वीरों और – ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान’ का दृश्य टीवी पर प्रसारित हो रहा था. लंबे अर्से बाद पहली बार देश की मीडिया को संयमित व परिपक्व स्थिति में देखा गया और फैसला आया… लोगों ने सुना… सहमति-असहमति जतायी गई. जो स्वाभाविक भी था. लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह विश्व मीडिया के रवैये पर जा कर टिक जाती है.

<p style="text-align: justify;">सुबहे बनारस और शामे अवध की संस्कृति ने पूरे भारतवासियों को जो साहस दिया, अभूतपूर्व था. गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच का फैसला आने के पूर्व नि:संदेह पूरे देश में एक खामोश दहशत का माहौल था और टीवी चैनलों पर शांति व संयम की लगातार अपील की जाती रही. देश जब-जब संकट के दौर से गुजरता है, देखा गया कि गांधी आज भी उसे सबल प्रदान करते हैं. गुरुवार को भी यहीं हुआ. महात्मा गांधी की तस्वीरों और – 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान' का दृश्य टीवी पर प्रसारित हो रहा था. लंबे अर्से बाद पहली बार देश की मीडिया को संयमित व परिपक्व स्थिति में देखा गया और फैसला आया... लोगों ने सुना... सहमति-असहमति जतायी गई. जो स्वाभाविक भी था. लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह विश्व मीडिया के रवैये पर जा कर टिक जाती है.</p> <p style="text-align: justify;" />

सुबहे बनारस और शामे अवध की संस्कृति ने पूरे भारतवासियों को जो साहस दिया, अभूतपूर्व था. गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच का फैसला आने के पूर्व नि:संदेह पूरे देश में एक खामोश दहशत का माहौल था और टीवी चैनलों पर शांति व संयम की लगातार अपील की जाती रही. देश जब-जब संकट के दौर से गुजरता है, देखा गया कि गांधी आज भी उसे सबल प्रदान करते हैं. गुरुवार को भी यहीं हुआ. महात्मा गांधी की तस्वीरों और – ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान’ का दृश्य टीवी पर प्रसारित हो रहा था. लंबे अर्से बाद पहली बार देश की मीडिया को संयमित व परिपक्व स्थिति में देखा गया और फैसला आया… लोगों ने सुना… सहमति-असहमति जतायी गई. जो स्वाभाविक भी था. लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह विश्व मीडिया के रवैये पर जा कर टिक जाती है.

हर भारतीय (हिंदू हो या मुसलमान) को पाकिस्तानी अखबारों में छपी खबरों को पढ़ जरुर ठेस पहुंची होगी. हालांकि ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान से कोई इससे इतर उम्मीद रखता हो. भारत के प्रति पूर्वाग्रह वहां के कण-कण में है. इस फैसले के खिलाफ भारतीय मुसलमान असहमत हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने चरमपंथियों को निराश करते हुए शांति और सौहार्द बनाए रखने में जो संयम बरता व काबिले तारिफ है. जब कि वहीं पाकिस्तान में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए गए, और पाकिस्तानी चरमपंथी नेताओं ने इसे मुस्लिम जमात के खिलाफ बताया. वहां के अखबारों ने भी लगभग वैसा ही रवैया अपनाया, अयोध्या मामले के फ़ैसले को पाकिस्तान अखबारों ने भी पहले पन्ने पर जगह दी है.

अंग्रेज़ी अख़बार ‘डेली डॉन’ ने शीर्षक दिया कि अदालत ने अयोध्या स्थल को हिंदुओं और मुसलमानों में बांटा. अख़बार ने लिखा है कि फ़ैसले से जहां हिंदू ख़ुश हुए हैं तो मुसलमानों को निराशा हुई है, क्योंकि जहां बाबरी मस्जिद थी उस स्थल को बांटा गया है और अब वहां हिंदू मंदिर बनाएंगे. अंग्रेज़ी के दूसरे अख़बार ‘डेली टाईम्स’ ने भी इस ख़बर को पहले पन्ने पर जगह दी है और साथ ही एक तस्वीर भी प्रकाशित की है, जिसमें कुछ लोग बैनर उठाए लाहौर की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. अख़बार का शीर्षक है कि भारतीय अदालत ने बाबरी मस्जिद स्थल को तीन हिस्सों में बांट दिया. आगे है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ कई पक्षों ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे ,जिस का अर्थ यह है कि 60 सालों से चला आ रहा मामला आगे भी जारी रहेगा.

उर्दू अख़बार ‘रोजऩामा जंग’ ने अपनी ख़बर में लिखा है कि अदालत ने बाबरी मस्जिद मुक़दमे में मुसलमानों के पक्ष को रद्द कर दिया और कहा कि विवादित स्थल राम जन्मभूमि है. गुरुवार को जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या मामले में अपना फ़ैसला सुनाया तो पाकिस्तान के सभी टीवी चैनलों ने इसका सीधा प्रसारण किया और पूरे दिन यह ख़बर छाई रही.

वहीं ब्रिटेन के अख़बार ‘गार्डियन’ ने शीर्षक दिया है- अयोध्या पर फैसले के बाद सुरक्षा कड़ी.’ अख़बार लिखता है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद भारत में स्थिति तनावपूर्ण लेकिन शांत बनी हुई है. अमरीकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने टेलीविजन देखकर कोर्ट के फ़ैसले का इंतजार करते हुए साधुओं की तस्वीर प्रकाशित करते हुए लिखा है कि भारत में जो मामला वहां के धार्मिक इतिहास में सदियों तक छाया रहा और 60 साल तक अदालत में लटका रहा, आखऱिकार भारतीय अदालत ने उस पर अपना ऐतिहासिक फ़ैसला सुना दिया है. अख़बार ने इस फ़ैसले के मद्देनजर भारत भर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की ख़बर को अहमियत दी है.

इसी तरह वाशिंगटन पोस्ट ने भी ढांचे को तोड़ते कारसेवकों की फाइल फोटो लगाई, बाद में वहां लखनऊ में बने मीडिया सेंटर की तस्वीर प्रकाशित की है और शीर्षक दिया है- भारत में एक मंदिर, एक मस्जिद और एक कोर्ट का फैसला. कुल मिला कर देखा जाए तो इस फैसले पर पूरी दुनिया की नजर टिकी थी. मुस्लिम देशों की मीडिया खास कर पाकिस्तानी मीडिया ने अपना पूर्वाग्रह प्रदर्शित किया है. वहीं पश्चिमी मीडिया इसे एक आम खबर तरह प्रकाशित किया है. हालांकि इस एतिहासिक फैसले से भारत की लगातार हो रही परिपक्व लोकतांत्रिक ढांचे को विश्व में मजबूती मिली है, जो कि हिंदू या मुसलमान किसी भी संप्रदाय के भारतीय को गर्वान्वित होने का अवसर प्रदान करती है.

लेखक श्री राजेश पत्रकार हैं तथा सं‍डे इंडियन से जुड़े हुए हैं.

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