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मीडिया मंथन

मीडिया को रहता है 26/11जैसे हमलों का इंतजार!

26 नवंबर का दिन था, घड़ी में राते के साढ़े नौ बजे थे, आमतौर पर मीडिया हाउस में शिफ्टों में काम होता है और व्यस्तता आमतौर पर 9 बजे के बाद कम हो जाती है, सो हमारे ऑफिस में भी लोग धीरे-धीरे अपने अपने कामों से निवृत हो रहे थे, कुछ खाना खाने के लिए कैंटिन की ओर बढ़ रहे थे तो कुछ टीवी चैनल बदल कर आपस में बहस कर रहे थे कि कौन सा चैनल हमसे बेहतर है और कौन सा हमसे खराब। इसी बहस के दौरान अचानक हमारे डेस्क का फोन बजा, शिफ्ट इंचार्ज ने फोन उठाया, मुंबई के रिपोर्टर का फोन था,  जिसने खबर दी कि हमारी मायानगरी में कुछ नापाक लोग घुस चुके हैं और वो आम लोगों को बंधक बना कर गोलयों की बरसात कर रहे हैं। इतना सुनना था कि डेस्क के अलसाये लोग फौरन अपनी-अपनी सीटों पर पहुंच गये और लगे अपने -अपने हिसाब से खबर को लिखने और दिखाने। करीब पांच मिनट के अंदर हमारा पूरा ऑफिस एक रणक्षेत्र में तब्दील हो गया, जिन चैनलों पर गाने बज रहे थे उन्हें हटाकर न्यूज चैनल लगा दिये गये और ज्यादा से ज्यादा ताजा खबरों का जायजा लेने के लिए बार-बार अपने मुंबई संवाददाता को फोन किया जाने लगा।

<p style="text-align: justify;">26 नवंबर का दिन था, घड़ी में राते के साढ़े नौ बजे थे, आमतौर पर मीडिया हाउस में शिफ्टों में काम होता है और व्यस्तता आमतौर पर 9 बजे के बाद कम हो जाती है, सो हमारे ऑफिस में भी लोग धीरे-धीरे अपने अपने कामों से निवृत हो रहे थे, कुछ खाना खाने के लिए कैंटिन की ओर बढ़ रहे थे तो कुछ टीवी चैनल बदल कर आपस में बहस कर रहे थे कि कौन सा चैनल हमसे बेहतर है और कौन सा हमसे खराब। इसी बहस के दौरान अचानक हमारे डेस्क का फोन बजा, शिफ्ट इंचार्ज ने फोन उठाया, मुंबई के रिपोर्टर का फोन था,  जिसने खबर दी कि हमारी मायानगरी में कुछ नापाक लोग घुस चुके हैं और वो आम लोगों को बंधक बना कर गोलयों की बरसात कर रहे हैं। इतना सुनना था कि डेस्क के अलसाये लोग फौरन अपनी-अपनी सीटों पर पहुंच गये और लगे अपने -अपने हिसाब से खबर को लिखने और दिखाने। करीब पांच मिनट के अंदर हमारा पूरा ऑफिस एक रणक्षेत्र में तब्दील हो गया, जिन चैनलों पर गाने बज रहे थे उन्हें हटाकर न्यूज चैनल लगा दिये गये और ज्यादा से ज्यादा ताजा खबरों का जायजा लेने के लिए बार-बार अपने मुंबई संवाददाता को फोन किया जाने लगा।</p> <p style="text-align: justify;" />

26 नवंबर का दिन था, घड़ी में राते के साढ़े नौ बजे थे, आमतौर पर मीडिया हाउस में शिफ्टों में काम होता है और व्यस्तता आमतौर पर 9 बजे के बाद कम हो जाती है, सो हमारे ऑफिस में भी लोग धीरे-धीरे अपने अपने कामों से निवृत हो रहे थे, कुछ खाना खाने के लिए कैंटिन की ओर बढ़ रहे थे तो कुछ टीवी चैनल बदल कर आपस में बहस कर रहे थे कि कौन सा चैनल हमसे बेहतर है और कौन सा हमसे खराब। इसी बहस के दौरान अचानक हमारे डेस्क का फोन बजा, शिफ्ट इंचार्ज ने फोन उठाया, मुंबई के रिपोर्टर का फोन था,  जिसने खबर दी कि हमारी मायानगरी में कुछ नापाक लोग घुस चुके हैं और वो आम लोगों को बंधक बना कर गोलयों की बरसात कर रहे हैं। इतना सुनना था कि डेस्क के अलसाये लोग फौरन अपनी-अपनी सीटों पर पहुंच गये और लगे अपने -अपने हिसाब से खबर को लिखने और दिखाने। करीब पांच मिनट के अंदर हमारा पूरा ऑफिस एक रणक्षेत्र में तब्दील हो गया, जिन चैनलों पर गाने बज रहे थे उन्हें हटाकर न्यूज चैनल लगा दिये गये और ज्यादा से ज्यादा ताजा खबरों का जायजा लेने के लिए बार-बार अपने मुंबई संवाददाता को फोन किया जाने लगा।

पूरी मीडिया जगत में ये खबर आग की तरह फैल गई की मुंबई आतंकवादियों से घिर गई है, ताज होटल में आतंकवादी हथियारों के साथ घुस गये हैं। उन्होंने वहां के लोगो को बंधक बना लिया है। हमारे डेस्क इंचार्ज ने फौरन हमारी अपातकालीन बैठक बुलाई और कहा कि इस खबर को बढ़िया से बढ़िया कवरेज देना है, क्योंकि ये वो चिंगारी है जो हमारी TRP बढ़ा सकती है। जो लोग थोड़ी देर पहले घर जाने का सपना देख रहे थे उन्हें रात के कवरेज के लिए रोक दिया गया। और वो लोग अपना अपना नंबर बढ़ाने के लिए रूकने को तैयार हो गये, अब ना तो उन्हें अपने घर की चिंता थी और ना ही परिवार की। उन्हें लगा कि शायद लंबे समय से रूका उनका प्रमोशन इस कवरेज के बाद जरूर पूरा हो जायेगा।

किसी भी चैनल ने आम लोगों के बारे में ना तो जाना और ना ही कुछ बयां किया। सब राजनेताओं को धोने में लगे थे। खैर जब हमारी आर्मी ने सारे आतंकियों को मौत की नींद सुलाने के बाद मुंबई फतह की तो सारी मीडिया ने तारीफों का पुलिंदा बांध दिया। पूरी खबर के प्रसारण के बाद हमारे डेस्क इंचार्ज ने तालियों के साथ अपनी टीम को थैंक्स कहा और कहा कि हम कवरेज में सबसे आगे रहे। हमारी TRP सबसे हाई रही। और उसके बाद सब कुछ वैसे ही चलने लगा जैसा कि चलता आ रहा था। और लोग अगली बड़ी खबर का इंतजार करने लगे।

ये झांकी हर मीडिया हाउस की है, संवेदनाओं की दुहाई देने वाला मीडिया आज खुद संवेदनहीन और भ्रमित हो गया है। आज उसे आम आदमी की समस्या नहीं बल्कि अपनी TRP रेट दिखायी देती है। पल-पल नेताओं को कोसने वाले मीडियाकर्मियों की हालत देखकर तो ऐसा लगता है जैसे कि वो हर पल 26/11 जैसे आतंकवादी हमले का इंतजार कर रहे हों, ताकि वो ये बता और दिखला सकें कि लोगों के मौत के आंकड़े को सही बताने में वो कितना औरों से आगे रहे हैं?

लेखक अंकुर शर्मा वनइंडिया हिन्‍दी में सब एडिटर हैं. उनका यह लेख वनइंडिया हिन्‍दी पर प्रकाशित हो चुका है.

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