भारत धन्य हो गया इन चैनल वालों से. सच कहें, मनोरंजन चैनलों में सिर्फ रंज रह गया है, इंटरटेनमेंट गायब हो चला है. देश अब ‘मनोरंजित’ होता है अब खबरिया चैनलों से. सारा देश सुरेश कालमाडी के हास्यास्पद कारनामों से हंस-हंस कर जब उकताने लगा तो इंटरटेनमेंट के ये स्टैंड अप कामेडियन खबरियों ने रचनात्मकता दिखाते हुए स्वाद बदलने का बेहतरीन काम किया. और फिर खबर-हीनता के वनवास को ख़त्म कर अयोध्या को समय से पहले ही झाड़-पोंछ कर ठंडे- बस्ते से बाहर निकाला. किसी एक चैनेली ने शुरुआत की. फिर क्या था, चैनेलियों का चैन दूर हो गया! पिछले 15 दिनों से उनका चैन कुछ इस तरह तार-तार था, मानों यही मौका हो उन्हें अपने-आप को चैनेल-आइडल बनाने का!
कुछ लोग जैसे बन गए थे गुजरात के दंगो में और आज तक उस लोकप्रियता को न सिर्फ जनता में भुना रहे हैं, बल्कि इन्वेस्टरों में भी भुना कर अब अपना-अपना कामेडी-सर्कस चैनल चला रहें है. बाकी कुछ लोग रातों-रात चैनल प्रमुख बन कर ढहते हुए चौथे-स्थम्भ को अपने कन्धों पर संभालने का उपक्रम कर रहे हैं. उन्ही चैनल युग-पुरुषों/महिलाओं से प्रेरणा ले कर नयी नस्ल के चैनलियों में भी बेचैनी थी. कुछ इस तरह जैसे वे खुद इतिहास गढ़ने/बनने जा रहे हों. सन्नाटा पसरा था. अभी दिन भी बहुत बाकी थे. पर वे गिद्ध की तरह अपने-अपने ओ.बी. वैन के डैनों को पसार कर अयोध्या पर मंडराने लगे. कुछ लोगों ने वहां छाई अमन पर अपनी हैरानी जताई– सारी कायनात और सरकार को ही जब उन्होंने बेचैन कर रखा है तो यहां के लोग फिर चैन की बंसी क्यों फूंके जा रहे हैं? क्या अयोध्या-वासी हमारे चैनलों को नहीं देखते?
एक ने वहां पर कार्यरत पुलिस को मंदिर के सामने झुक कर प्रणाम करते देख अपनी भौंवे और भृकुटी के साथ-साथ कैमरें भी तान ली! उम्दा-बाईट भी चाहिए था, इतिहास में जगह बनाने के लिए. सो किसी ने जलेबी बनाने वालों से बात की तो किसी ने रामलला के कपड़े सीने वालों से बाईट की भीख मांगी. फिर अपने-अपने चीख पुकार के अंदाज़ में अयोध्या की कहानी को समेटने के लिए एक नेपथ्य भी चाहिए था. पर किसी को भी राम-लला के मंदिर के आस-पास फटकने नहीं दिया गया. सो कोई सरयू किनारे जाकर अपने को हल्का किया, तो कोई और किसी ने गुम्बद की ऊंचाई से अपनी एंकरिंग की छलांग लगायी. जैसे-जैसे दिन नजदीक आने लगे, इनकी जबानी-मशीनगन और जोश-ए-जूनून दोनों ही घायल कर रही थी. जनता को नहीं, सरकार को.
सरकार भी इनकी बेचैनी देख कर ही अपने गवर्नेंस का एजेंडा तय करती हैं. सो फैसले से पूर्व अपने निक्कम्मेपन को इजहार करने का उसे भी भरपूर अवसर मिला. राष्ट्रमंडल के खिलाडियों को भी उन्हें दिखाना जो था कि चाक-चौबंद सुरक्षा कैसे की जाती है. क्या मजाल है कि लोग कानून-व्यवस्था को भंग करे. नक्सल के आतंकी हमलों पर आंख मूंद लेने वाली इस सरकार ने बैरकों में सुस्ता रही सशस्त्र-सुरक्षाकर्मियों को निकाल कर पूरे देश की किला-बंदी सी करा डाली. सोनिया, मनमोहन, चिदंबरम और भी सारे शांति-प्रिय नेतागण एकदम अशांत हो गए. उन्होंने अपील पर अपील जारी कर दी, मानो पूरा देश कफ़न पहने तैयार बैठा हो! फैसले की दोपहर को बाज़ार ही वीरान हो गया. अघोषित कर्फ्यू लग गया! सब चंचल-चपल-चैनलियों की मेहरबानी से हुआ! प्रजातंत्र धन्य है इन खबरचियों से.
फैसले के दिन तो हद हो गयी. प्राइम टाईम दोपहर दो बजे से शुरू हो गया. एंकरों ने वार-रिपोर्टिंग सी सीरियसनेस को अपने चेहरे पर मढ़ कर बुलेटनों को शुरू किया. शुरआती काउंट-डाउन रिमार्क और दृश्य उन्होंने कुछ इस तरह झलकाए जैसे अब प्रलय आने ही वाला हो! कुछ हास्यास्पद भी लगे. कुछ लोगों की गंभीरता मनमोहन सिंह से भी ज्यादा गहरी थी. ’24×7′ माप वाली मशहूर- महिला ने तो कल बेहतरीन hair-do और फेसियल कर रखा था. अपनी श्यामल काया को भी कमाल का रंगा था. उन्हें आने वाली क़यामत की लाइव रिपोर्टिंग करनी थी. फिर उन्हें क़यामत भी ढाना जो था! जो इन चैनलियों के हरकतों से वाकिफ थे, वे पेट पकड़ कर हंसे, लोट-पोट हुए. कुछ ने उनके द्वारा बोले जाने वाले ब्रेकिंग न्यूज की मिमिक्री भी की. खूब मजे लिए. बाकी सांस थाम कर फैसले का इंतज़ार किया. फैसले को सुन-समझकर लम्बी सांसे छोड़ी. जिनके पास इंटरनेट था, अपनी अपनी प्रिंट आऊट छपी. फिर उसे पढ़ा और फिर चैनल वालों की दुर्व्यख्या भी सुनी और हंसे. चैनलियों ने कुछ देर तक फैसले की खाल आड़ी-तिरछी खींची. पर कुछ भी जब नहीं निकला तो खिसियाये और समय से पूर्व वार-रिपोर्टिंग का सीज-फायर किया. भरपूर मनोरंजित होने के बाद दर्शक अपने-अपने काम पर वापस लौट गए.
लेखक ए एस रघुनाथ पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.