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मीडिया मंथन

मैंने हर फैसला अशोक सर से पूछकर लिया

मैं क्या लिखूं… मेरे हाथ आज जवाब दे रहे हैं… दिल बैठा जा रहा है… समझ नहीं आता.. आखिर ऐसा क्यों होता है… जो आपको सबसे प्यारा होता है, ऊपर वाला भी उसी को सबसे ज्यादा प्यार क्यों करता है… आज सुबह जब अमिताभ का फोन आया… तो मेरा जिस्म बेजान हो गया… देर रात सोने के बाद सुबह मैं बेफिक्री की नींद में था.. अचानक फोन बज उठा.. सुबह के पौने आठ बजे थे.. देखा तो अमिताभ का फोन था.. उसकी आवाज़ में भर्राहट थी.. अरे आपने कुछ सुना… क्यों क्या हुआ… अरे सुना है अशोक सर को हार्ट अटैक पड़ा है.. ही इज़ नो मोर.. क्या बात कर रहे हो दिमाग ख़राब है तुम्हारा… नहीं मैं सही कह रहा हूं… अभी शोभना का फोन आया है.. उसने बताया कल्याण सर उन्हें मेट्रो अस्पताल ले गये हैं… आनन-फानन में मैंने बाइक उठाई और दौड़कर नोएडा में मेट्रो अस्पताल पहुंच गया.. गाड़ी बेताहाशा भाग रही थी… लेकिन अमिताभ की बात पर यकीन नहीं हो रहा था…

<p align="justify">मैं क्या लिखूं... मेरे हाथ आज जवाब दे रहे हैं... दिल बैठा जा रहा है... समझ नहीं आता.. आखिर ऐसा क्यों होता है... जो आपको सबसे प्यारा होता है, ऊपर वाला भी उसी को सबसे ज्यादा प्यार क्यों करता है... आज सुबह जब अमिताभ का फोन आया... तो मेरा जिस्म बेजान हो गया... देर रात सोने के बाद सुबह मैं बेफिक्री की नींद में था.. अचानक फोन बज उठा.. सुबह के पौने आठ बजे थे.. देखा तो अमिताभ का फोन था.. उसकी आवाज़ में भर्राहट थी.. अरे आपने कुछ सुना... क्यों क्या हुआ... अरे सुना है अशोक सर को हार्ट अटैक पड़ा है.. ही इज़ नो मोर.. क्या बात कर रहे हो दिमाग ख़राब है तुम्हारा... नहीं मैं सही कह रहा हूं... अभी शोभना का फोन आया है.. उसने बताया कल्याण सर उन्हें मेट्रो अस्पताल ले गये हैं... आनन-फानन में मैंने बाइक उठाई और दौड़कर नोएडा में मेट्रो अस्पताल पहुंच गया.. गाड़ी बेताहाशा भाग रही थी... लेकिन अमिताभ की बात पर यकीन नहीं हो रहा था...</p>

मैं क्या लिखूं… मेरे हाथ आज जवाब दे रहे हैं… दिल बैठा जा रहा है… समझ नहीं आता.. आखिर ऐसा क्यों होता है… जो आपको सबसे प्यारा होता है, ऊपर वाला भी उसी को सबसे ज्यादा प्यार क्यों करता है… आज सुबह जब अमिताभ का फोन आया… तो मेरा जिस्म बेजान हो गया… देर रात सोने के बाद सुबह मैं बेफिक्री की नींद में था.. अचानक फोन बज उठा.. सुबह के पौने आठ बजे थे.. देखा तो अमिताभ का फोन था.. उसकी आवाज़ में भर्राहट थी.. अरे आपने कुछ सुना… क्यों क्या हुआ… अरे सुना है अशोक सर को हार्ट अटैक पड़ा है.. ही इज़ नो मोर.. क्या बात कर रहे हो दिमाग ख़राब है तुम्हारा… नहीं मैं सही कह रहा हूं… अभी शोभना का फोन आया है.. उसने बताया कल्याण सर उन्हें मेट्रो अस्पताल ले गये हैं… आनन-फानन में मैंने बाइक उठाई और दौड़कर नोएडा में मेट्रो अस्पताल पहुंच गया.. गाड़ी बेताहाशा भाग रही थी… लेकिन अमिताभ की बात पर यकीन नहीं हो रहा था…

अस्पताल पहुंचकर अपनी आंखो से उन्हें देख लिया… लेकिन यकीन नहीं हुआ… अरे खुदा ये कैसे हो सकता है… अस्पताल के बेड पर पड़े अशोक जी लग रहा था.. जैसे अबयज़ को देखकर मुस्कुरा पड़ेंगे.. और सीधे बोलेंगे चल यार चाय पीने चलते हैं… लेकिन अशोक सर तो शायद कभी न उठने के लिए ही सोये थे..  मैं इंतज़ार कर रहा था… कि अशोक सर एकदम मुस्कुराते हुए उठेंगे और पूछेंगे तुमने नई नौकरी की पार्टी अभी तक नहीं दी… लेकिन अशोक सर ने तो शायद कसम खाई थी.. कुछ न पूछने के लिए… मैंने तो सोच लिया था.. कि अब उन्हें सिगरेट पीने के लिए भी नहीं रोकूंगा.. लेकिन उन्होंने तो आज सिगरेट पीने के लिए भी नहीं कहा… अचानक उनका बेटा कहता है… पापा उठ जाओ न प्लीज़… चाहे गिफ्ट मत दिलाना… सुनकर मेरी आंखे भर आईं… लेकिन अशोक सर तो अपने बेटे के लिए भी नहीं उठे… क्रिसमस का दिन बेटा घर पर पापा के आने का इंतज़ार कर रहा था.. और पापा अपने बेटे को बाज़ार लेकर जाने का वादा करके आए थे… लेकिन कौन जानता था… कि ये सुबह तो कभी लौटकर नहीं आएगी…

उस 11 साल के मासूम को क्या पता था.. कि उसके पापा इस बार उसका वादा तोड़ देंगे… लेकिन अशोक सर ने मेरा भी एक वादा तोड़ा है… मुझसे उन्होने कहा था.. कि अबयज़ तुम नई जगह जा रहे हो.. हमें भूल मत जाना… मैंने कहा था.. कि सर आपको भला मैं कैसे भूल सकता हूं… मैं अपनी बात पर आज भी कायम हूं… लेकिन अशोक सर तो मुझे अकेला छोड़कर चले गये…  मुझे याद है जब वीओआई के शुरुआती दिन थे.. अशोक सर ने ईटीवी हैदराबाद से यहां ज्वाइन किया था… सबसे पहली मुलाकात उनकी मुझसे ही हुई थी… और वो पहली बार में ही मुझे बड़े भाई का प्यार देने लगे थे… ईटीवी के स्टार एंकर रहे उस शख्स की डिक्शनरी में गुरुर नाम के अल्फाज़ की कोई जगह नहीं थी… चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट… किसी रोते हुए को भी हंसा देती थी… चंद दिनों में भी वो मेरे साथ इतना घुल गये थे.. कि उनके बगैर मुझे भी अकेलापन महसूस होने लगता था… हम लोग आपस में तमाम बातें शेयर करने लगे…

रुतबे और उम्र में वो मुझसे बड़े ज़रूर थे.. लेकिन उनका रवैया मेरे साथ एक दोस्त की तरह ही था… शुरुआत में वो हैदराबाद से अकेले ही दिल्ली आए थे… उनकी पर्सनालिटी क्या कमाल की थी… मैंने एक दिन ऐसे ही उनकी बीवी के बारे में पूछ लिया.. फिर तो उन्हेने अपनी पूरी किताब खोलकर रख दी… उनकी लव मैरिज हुई थी.. एक पंजाबी लड़की से शादी करने के लिए उन्होंने क्या-क्या पापड़ बेले… ये भी उन्होने मुझे बताया… लेकिन एक सालह भी दे डाली… बेटे कभी लव मैरिज मत करना… तुम अपने प्यार के लिए अपनी खुशी के लिए अपनी मर्ज़ी से शादी तो कर लेते हो.. लेकिन इससे तुम्हारे मां-बाप की क्या हालत होती है.. तुम अंदाज़ा नहीं कर सकते… दफ्तर में हम लोग जब भी चाय पीने जाते.. साथ में ही जाते थे.. अशोक सर को सिगरेट पीनी होती थी और मुझे चाय…

अशोक सर सिगरेट बहुत पीते थे… मैंने एक बार उन्हें टोका, कि सर आप इतनी सिगरेट मत पिया करो… तो उनका अपना ही मस्त जवाब था.. वो हर फिक्र को धुएं में उड़ाने में भरोसा करते थे… अरे रहने दे न यार.. कुछ नहीं होता… जिंदगी में ऐश से जीना चाहिए… वैसे भी ये सिगरेट अब मुझसे नहीं छूट सकती… सीमा ने भी कई बार कोशिश की… लेकिन वो भी मेरी सिगरेट छुड़ा नहीं पाई… मैंने जब उन्हें बार-बार टोकना शुरू किया.. तो फिर वो चुपके से अकेले ही सिगरेट पीने चले जाते थे… अशोक सर की मेरे साथ इतनी यादें जुड़ी हैं.. कि मैं उन्हें एक किताब में भी नहीं समेट सकता… जितने दिन वो मेरे साथ रहे… मैने अपना हर फैसला उनसे पूछकर लिया… वो मेरे हर राज़ के साझीदार थे.. लेकिन मजाल है, कि आज तक उनके मुंह से कोई बात किसी के सामने निकली हो…

वो मेरे सारे राज़ अपने साथ ही लेकर चले गये… लेकिन आज अस्पताल के बाहर सैकड़ों लोगों की भीड़ इस बात का एहसास करा रही थी… कि एक इंसान हमारे बीच नहीं है… आज हमने एक शख्सियत नहीं कोई है.. बल्कि एक इंसान खोया है… वो इंसान जिसने अभी इस दुनिया में चालीस बसंत भी पार नहीं किये थे.. लेकिन इतने कम वक्त में उस शख्स के चाहने वाले इतने थे.. कि अस्पताल के बाहर खड़े होने की जगह भी नहीं थी… लोगों की आंखो से आंसू बह रहे थे… लेकिन मुझे तो अब भी यकीन नहीं था… शाम को शमशान घाट पर आखिरी विदाई का वक्त था… उनका मासूम बेटा अपने पिता की चिता को आग दे रहा था… वो मासूम शायद अभी भी यही समझ रहा था… कि पापा क्रिसमस पर बाज़ार नहीं ले गये तो क्या.. नए साल पर तो ज़रूर ले जाएंगे… लेकिन सच्चाई तो यही थी.. कि उसके पापा नए साल पर क्या अब कभी नहीं आएंगे.. अब वो उससे कोई भी ऐसा वादा नहीं करेंगे… जिसे वो निभा न सकें… लेकिन अबयज़ से कौन कहेगा… कि चल यार चाय पीने चलते हैं…

लेखक अबयज खान इन दिनों ‘न्यूज24’ के साथ जुड़े हुए हैं.

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