रजत शर्मा की सफलता की कीमत एक अनाम औरत चुका रही है : उनके कारण नहीं, उनके बावजूद पत्रकार हूं : पहले प्रभाष जोशी पर तोहमत लगाने वालों को ललकारने और फिर अब प्रभु चावला और रजत शर्मा के बारे में लिखने के बाद मेरे पास कई संदेश, एसएमएस, ईमेल और फोन के जरिए आए हैं और कुल मिला कर ज्यादातर का सार यह है कि आपने हिम्मत तो गजब की दिखाई लेकिन पत्रकारिता में ये लोग आपका कैरियर चौपट कर देंगे। अब इन लोगों को क्या जवाब दिया जाए। रजत शर्मा उम्र में बड़े हैं मगर अपन ने पत्रकारिता उनसे पहले शुरू कर दी थी। सत्रह साल की उम्र से सिर्फ कलम की कमाई खा रहा हूं। शुरूआत ग्वालियर के उस स्वदेश अखबार से की थी जिसका फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र ले कर रजत शर्मा ने पीआईबी की मान्यता के लिए आवेदन किया था। एक साहब ने तो यहां तक लिखा कि आप खुद इंडिया टीवी में काम कर चुके हैं और रजत शर्मा ने आपको झाड़ा था, उसका बदला निकाल रहे हैं।
जिस तथाकथित झाड़ का वर्णन ये अज्ञात साहब कर रहे हैं वह भरे न्यूज रूम में शनिवार के दिन सबके सामने हुई थी। मैं तय समय पर अंदर आया था और रजत शर्मा ने घड़ी दिखा कर इशारा किया था कि देर से आए हो। घड़ियां अपने पास एक दर्जन से ज्यादा है लेकिन पहनने की आदत नहीं हैं इसलिए उनसे कहा था कि मैं अपने तय समय पर आया हूं। संघ के स्वयं सेवक रहे रजत शर्मा ने कहा था कि यह मैं तय करूंगा कि कौन कब आएगा। मैंने जवाब दिया था कि गनीमत हैं कि आपने मेरे जन्म की तारीख तय नहीं की।
यह इंडिया टीवी में मेरा आखिरी दिन था और मेरी सात दिन की पगार रजत शर्मा पर अब भी उधार है। वैसे इंडिया टीवी में रिवाज है कि आपका वेतन आपके अकाउंट में चला भी जाए और आप किसी भी कारण से नौकरी छोड़ दें तो यह महान चैनल स्टॉप पेमेंट करवा देता है। जम्मू कश्मीर बैंक के खाते से वेतन मिलता है, उसका एटीएम भी लगा हैं लेकिन बैंक के रिकॉर्ड ही बताएंगे कि कितनी बार स्टॉप पेमेंट किए गए हैं।
रजत शर्मा की सफलता का मैं आदर करता हूं और यह मैंने लिखा भी है। लेकिन इस सफलता की कीमत एक अनाम औरत चुका रही है क्योंकि अपने कारोबार की सफलता के लिए रजत शर्मा ने अपनी निजी कंपनी की साझेदार से शादी कर ली थी। बात पुरानी है लेकिन अब बता ही दी जाए। 1993 में जब मुझे जनसत्ता से निकाल दिया गया था तब रजत शर्मा दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन में जी न्यूज के संपादक हुआ करते थे। उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि हमारे लिए कश्मीर से रिपोर्टिंग करोगे? कश्मीर के तीर्थ चरार ए शरीफ में अफगान मूल के आतंकवादी मस्तगुल ने कब्जा कर लिया था और रजत शर्मा ने कृपा पूर्वक मुझे यह मौका दिया था कि मैं इस पूरे मामले को कवर करूं।
जहाज के टिकट के अलावा पांच हजार रुपए खर्चे के लिए दिए गए थे। उस समय वैसा जमाना नहीं था कि आपने खबर शूट की और अपने लैपटॉप से ही एफटीपी के जरिए अपलिंक कर दी। खबर टेप पर रिकॉर्ड होती थी और दोपहर बाद के जहाज से उसे दिल्ली भेजा जाता था। जी न्यूज का तब एक ही बुलेटिन हुआ करता था। और वह भी रिकॉर्ड हो कर सावित्री सिनेमा के पास बीएसएनएल ऑफिस जाता था और वहां से उसे प्रसारित किया जाता था।
कश्मीर में होटल और टेक्सी का बिल दस हजार से ज्यादा हुआ। होटल का बिल बहुत मिन्नत कर के क्रेडिट कार्ड से चुकाया और टेक्सी वाले ने कृपा कर के डेढ़ हजार रुपए उधार छोड़ दिए जिसे आज तक कई बार कश्मीर जाने के बाद भी नहीं चुका पाया। वह टेक्सी वाला मिला ही नहीं। इस खर्चे में लंबी एसटीडी कॉल्स का खर्चा भी था और उस समय कश्मीर में आतंकवादियों ने सारे टेलीफोन बूथ बंद कर रखे थे और इसीलिए सरकारी टेलीग्राफ ऑफिस में लाइन लगा कर लंबी बात कर के फोनों देने पड़ते थे।
उस समय जी की भाषा में आतंकवादी नहीं, मिलिटेंट बोला जाता था और मृतकों को कैजुअलिटी कहा जाता था। इस तरह की हिंदी बोलने की आदत नहीं थी इसलिए कई रीटेक होते थे। उमेश उपाध्याय उस समय समाचार संपादक थे, वे गवाह हैं। आखिरकार टेलीफोन बिलों में ही लगभग पांच हजार रुपए और ठुक गए जो एक स्थानीय पत्रकार से उधार लेने पड़ें। लौट कर जब बिल दिया तो संघ परिवार के चाल, चरित्र और चिंतन वाले रजत शर्मा ने फाड़ कर फेक दिया और कहा कि तुम हमारे कर्मचारी नहीं हो इसलिए अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जा सकता। फिर भी टीवी की पहली रिपोर्टिंग करवाने के लिए मैं रजत शर्मा का कृतज्ञ हूं।
रजत शर्मा का कृतज्ञ मैं इसलिए भी हूं कि जब पैंगंबर कार्टून छापने के मामले में दिल्ली के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के के पॉल ने अपना एक निजी बदला निकालने के लिए तिहाड़ जेल भिजवा दिया तो लौट कर रजत शर्मा ने खुद फोन किया और कहा कि इंडिया टीवी में काम करो। लेकिन साथ में यह भी कहा कि के के पॉल से तुम्हारा झगड़ा है इसलिए पुलिस और अपराध की खबरें तुम्हें नहीं दी जाएगी। यह चैनल के मालिक का चैनल के वरिष्ठ संपादक के प्रति विश्वास का आलम था। इंडिया टीवी मैंने इसलिए छोड़ा क्योंकि दोपहर बारह बजे से रात को बारह बजे तक काम करने से मेरा सामाजिक जीवन और सारे संपर्क ध्वस्त होते जा रहे थे। इसके अलावा जिस तरह की खबरे टीवी पर दिखाई जाती थी वे अपने वश से बाहर थी।
राखी सावंत और मीका दोनों से यही मुलाकात हुई और एक बार हमारे दोस्त महेश भट्ट चैनल में आए और आते ही उन्होंने मेरे बारे में पूछा तो यह भी रजत शर्मा को काफी अखर गया। रजत शर्मा का जो निजी संविधान हैं उसमें अपने किसी कर्मचारी के निजी संबंध विकसित होने पर अच्छी खासी पाबंदी लगी हुई है। अब जब बात चली है तो यह भी बता दूं कि एक बार झाबुआ में एक पूरे परिवार ने गरीबी के कारण आत्म हत्या कर ली थी और उसका फूटेज एक स्थानीय पत्रकार के जरिए अपने पास आ गया था मगर रजत शर्मा ने उसे दिखाने से इंकार कर दिया और कहा कि झाबुआ में टीआरपी नहीं मिलती।
उस दिन प्राइम टाइम में राखी सावंत का एक अत्यंत बेहूदा इंटरव्यू दिखाया गया था। रजत शर्मा ने इंडिया टीवी ज्वाइन करने वाले दिन ही मुझे कहा था कि अपने अंदर जो प्रिंट मीडिया का आलोक तोमर है, उसे मार डालो। टीवी एक अलग माध्यम हैं और यहां प्रिंट मीडिया की मानसिकता नहीं चलेगी। इसे आप मेरी बदकिस्मती कह सकते हैं कि मुझे अपने लिखे से बहुत प्यार है और इस लेख के माध्यम से मैं बाकायदा सार्वजनिक आवेदन कर रहा हूं कि किसी के पास किसी अखबार में लिखने की नौकरी हो तो वह मुझे दे दे। रही रजत शर्मा और प्रभु चावला की बात तो मैं उनके कारण नहीं, उनके बावजूद पत्रकार हूं और लोग मुझे काफी हद तक जानते हैं।
मैं अच्छा बुरा जैसा भी लिखता हूं, लिखता रहूंगा और जिसे जो उखाड़ना है उखाड़ ले।
लेखक आलोक तोमर वरिष्ठ पत्रकार हैं.