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तेरा-मेरा कोना

ऐ बानर राजा, महंगाई का हवाई सर्वेक्षण करो!

[caption id="attachment_2334" align="alignleft" width="85"]अनिल सिंहअनिल सिंह[/caption]((::उल्‍टी दुनिया-पुल्टी जनता::)) काम हो न हो, बस दिखना चाहिए कि खूब हो रहा है काम, बानर राजा की तरह : पिछले काफी समय से संसद में भाईचारा का माहौल देखना रास नहीं आ रहा था। किसी बात पर शोर शराबा, नोकझोंक और आरोप प्रत्‍यारोप ना हो तो, संसद भी संसद न लगे। ऐसा लग्गे, संसद को किसी की नज़र लग्गई। संसद में पहले तभी भाईचारा दिखता था जब सांसद साहब लोगों के वेतन-भत्ते बढ़ते थे. अब तो हर मुद्दे पर सांसदों का एक दूसरे से खूब अपनापा है। यह आम लोगों को ही नहीं बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी रास नहीं आ रहा है। पर कोई क्या कर लेगा इनका। संसद का माहौल एकदम से बदल गया है। धांय धूंय ठांय ठूंय हो हल्ला की जगह सरेगामापा सा नरम मुलायम म्यूजिकल।

अनिल सिंह

अनिल सिंह

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((::उल्‍टी दुनिया-पुल्टी जनता::)) काम हो न हो, बस दिखना चाहिए कि खूब हो रहा है काम, बानर राजा की तरह : पिछले काफी समय से संसद में भाईचारा का माहौल देखना रास नहीं आ रहा था। किसी बात पर शोर शराबा, नोकझोंक और आरोप प्रत्‍यारोप ना हो तो, संसद भी संसद न लगे। ऐसा लग्गे, संसद को किसी की नज़र लग्गई। संसद में पहले तभी भाईचारा दिखता था जब सांसद साहब लोगों के वेतन-भत्ते बढ़ते थे. अब तो हर मुद्दे पर सांसदों का एक दूसरे से खूब अपनापा है। यह आम लोगों को ही नहीं बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी रास नहीं आ रहा है। पर कोई क्या कर लेगा इनका। संसद का माहौल एकदम से बदल गया है। धांय धूंय ठांय ठूंय हो हल्ला की जगह सरेगामापा सा नरम मुलायम म्यूजिकल।

पहले हम भारतवासी खुश होते थे। जिसे चुनकर भेजा है, वह खूब काम कर रहा है। दौड़ भाग रहा है। संसद में अपना काम मन लगाकर कर रहा है। गाली दे रहा है। हाथापाई कर रहा है। सब जनता के नाम पर। जनता को तसल्ली रहती थी। लेकिन अब तो ऐसा लग रहा है जैसे संसद में हर मौका एकता और भाईचारे का हो गया है। अभी चालू सत्र में संसद के दोनों सदन में सांसदों ने कुछ हंगामा किया। अहा, लगा, देश में लोकतंत्र है। ग्रेट इंडियन डेमोक्रेसी में विश्‍वास बढ़ा। लेकिन अरे यह क्या…। स्थिति फिर बदल गई। ऐसा लगता है कि लोकतंत्र को किसी की नजर लग गई है। संसद में शांति और एकता के दर्शन हो रहे हैं।

आपको तो याद ही होगा। महंगाई बढ़ी तो सभी पार्टी के सांसदों ने एकता दिखाई। महंगाई पर सरकार कहे कि उसकी तो कोई भूमिका नहीं है। विपक्ष को इससे कोई मतलब नहीं है। आखिर महंगाई जैसे मुद्दे पर क्‍या लड़ना झगड़ना। जनता ने जब से विपक्षी दल के साथ धोखा किया है, तब से बेचारे आपस में ही लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं, बाहर कहां उलझने का टाइम है। ये जनता जो ना करा दे। जनता को संसद में ऐसा नजारा देखने को नहीं मिल पा रहा है, जिसके वो आदी हो गये हैं। दूसरी तरफ जनता बेकार में हल्ला कर रही है कि दाल, चावल, सब्जी, तेल, पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ गये हैं। पक्ष-विपक्ष के सेहत पर जब महंगाई से कोई असर नहीं पड़ा, संसद में भी दूरदर्शन की तरह सुगम संगीत बज रहा हो, तो निश्चित ही महंगाई नहीं बढ़ी होगी।

अरे देशवासियों, मंत्रियों अफसरों की बात सुनो। दाल, चावल, सब्जी, तेल की कीमत कैसे बढ़ सकती है भला। मुद्रास्फीति तो बहुत कम है। सेंसेक्स तो बढ़ रहा है। विकास दर तो हाईफाई है। अर्थशास्त्र भी यही कहता है। मुद्रास्फीति कम है तो महंगाई कम है। विकास दर में ग्रोथ है तो सब जय जय है। अब महंगाई अर्थशास्त्र के सूत्र और सिद्धांत से तो बड़ी नहीं है ना। जिसे अपने पीएम और वित्‍त मंत्री महोदय समझ ना सकें। आखिर अपने पीएम भी तो अर्थशास्त्री हैं, मुद्रास्फीति देखकर ही महंगाई को मानेंगे। वैसे भी, भला महंगाई और बेरोजगारी कोई मुद्दा है! अपने देश में तो हवा हवाई परेशानियां ज्यादा हैं। आम लोग बिना मतलब के शोर शराबा करते हैं कि ये परेशानी है या वो परेशानी है।

सांसद लोगों को जब लगता है कि परेशानी बढ़ गई है तो वे सर्वेक्षण करने लगते हैं, जहाज से, हवा हवाई। आखिर हमारी परेशानियों को दूर करने के लिये ही तो लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली का गठन किया गया है। तो सांसदों का हक बनता है कि वे हमारी समस्‍याओं को दूर करने के लिये तमाम तरह के अध्‍ययन, चर्चा और यात्राएं सरकारी खर्चे पर करें !

उदाहरण के लिये, सूखा पर अध्ययन के लिये सांसदों की एक समिति स्‍िवटजरलैंड, बाढ़ पर चर्चा के लिये एक समिति अमेरिका, आतंकवाद पर चर्चा और अध्‍ययन के लिये एक समिति इंग्लैंड, महंगाई के संदर्भ में अध्ययन के लिये एक समिति जर्मनी, गरीबी उन्मूलन के अध्ययन के लिये एक समिति साउथ अफ्रीका भेजी जा सकती है।

इसी प्रकार लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये एक समिति सिंगापुर, शिक्षा पर अध्ययन के लिये एक समिति न्यूजीलैंड, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुधार लाने के लिये एक समिति ब्राजील, रेलवे को मजबूत करने के लिये एक समिति आस्ट्रेलिया, कच्‍चे तेल पर अध्‍ययन के लिये एक समिति थाइलैंड, अपराध और अपराधी पर रोक के लिये एक समिति पाकिस्तान, नदियों में पानी के आने जाने पर अध्ययन के ‌लिये एक समिति सउदी अरब भेजना चाहिए।

हां एक बात और, इन सारी समितियों के अध्ययन के लिये एक समिति कनाडा भेजी जा सकती है। सारी समितियों का खर्चा पानी, चिलम-हुक्का सब सरकार द्वारा वहन किया जाना चाहिए। करती भी है। और, ढेर सारी समितियां इन दिनों इधर उधर दौरे पर भी हैं। इन समितियों में जाने वाले सांसदों के साथ उनके परिवार वालों को भी भेजा जा सकता है ताकि सांसद जी लोगों का मन लगा रहे और जनता के लिए मन से काम कर सकें। जो परिवार ले जाना ना चाहता हो उसे खर्चा के बराबर नकदी दिया जाना चाहिए ताकि लौटानी में चाकलेट सूट और सेट आदि ले जाएं, परिवार को खुश करने के लिए। उनका परिवार, उनका घर खुश रहेगा तो समझो समाज खुश, समाज खुश तो देश खुश, देश खुश तो जनता खुश। जो जनता कहे कि वो नहीं खुश, फिर समझो जनता ही देशद्रोही है।

अगर इन समितियों के बाद कुछ सांसद सरकारी खर्चे पर अध्‍ययन के लिये विदेश जाने से बच जाते हैं, तो उन्हें देश की ही वि‌भिन्न समस्याओं का हवाई सर्वेक्षण करवाया जाना चाहिए। हवाई सर्वेक्षण करने वाले सांसदों को परिवार के कम से कम पांच सदस्यों को फ्री हवाई सर्वेक्षण करने का ऑफर दिया जाना चाहिए, ताकि बाहर गये सांसदों के खर्च के बराबर ही खर्च हो सके। इन लोगों को सूखे का हवाई सर्वेक्षण, बाढ़ का हवाई सर्वेक्षण, महंगाई का हवाई सर्वेक्षण, गरीबी का हवाई सर्वेक्षण, बेरोजगारी का हवाई सर्वेक्षण, मुद्रास्फीति का हवाई सर्वेक्षण, अपराध का हवाई सर्वेक्षण, लोकतंत्र का हवाई सर्वेक्षण, मराठी मानुष और आम भारतीय का हवाई सर्वेक्षण करवाया जा सकता है। अगर इसके बाद भी कुछ सांसद बच जाते हैं तो उनके लिये जल सर्वेक्षण का ऑफर दिया जा सकता है। ऐसे सांसदों के लिये गोवा, पांडिचेरी के जल सर्वेक्षण का ऑफर एक बेहतर विकल्प है। बिहार भी जल सर्वेक्षण के नजरिये से बढि़या स्‍थल है। जल सर्वेक्षण करने वाले सांसदों के परिवार के आठ सदस्यों को मुफ्त सर्वेक्षण का ऑफर दिया जा सकता है।

जल सर्वेक्षण पर नये सांसदों को भेजा जाना चाहिए, सर्वेक्षण के बाद इन सांसदों को वापसी में भारी मात्रा में नकदी भी दी जानी चाहिए ताकि ये हवाई सर्वेक्षण और विदेश गई समितियों के बराबर सरकारी धन खर्च कर सकें। ये कुछ ऐसे कारगर उपाय हैं, जिससे देश की सारी समस्याएं शीघ्र हल की जा सकती हैं। हल की क्‍या जा सकती हैं, पिछले साठ सालों से तो ऐसे ही तमाम समितियां जनता की समस्‍याओं को हल करती आ रही हैं। जनता भी खुश होगी कि उनके द्वारा चुने गये सांसद कोई काम करें ना करें उनके हित के लिये यहां वहां दौड़ धूप तो कर रहे हैं। बानर राजा की तरह! जय हो बानर राजा!! जय हो जनता जनार्दन और द ग्रेट इंडियन डेमोक्रेसी!!!

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लेखक अनिल सिंह भड़ास4मीडिया.काम के कंटेंट एडिटर हैं. उनसे संपर्क 09717536974 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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