ईटीवी में बिताए आखिरी डेढ़ साल जब तुम कहा करते थे….. शैलेश लांचिंग टीम के सिर्फ चार लोग ही बचे हैं अनिल शर्मा, शैलेश बनाशा, अनिमेष और अशोक उपाध्याय…. क्या हमें भी कोई अच्छी पोज़िशन मिल पाएगी…. प्रबंधन को देर से ही सही लेकिन बात समझ में आई और तुम्हें नेशनल डेस्क का इंचार्ज बना दिया गया… तुमने अपने इस मित्र को हमेशा की तरह साथ रखा और शिफ्ट इंचार्ज के रूप में नेशनल डेस्क पर बुला लिया… हमने कई बार लगातार 8-9 घंटे स्टूडियो में लाइव करते हुए एक साथ बिताए हैं…. दोनों के बीच एंकरिंग को लेकर वो स्वच्छ प्रतिस्पर्द्धा आज भी मुझे याद है जब तुम कहा करते थे… शैलेश.. यार तुम्हारे न्यूज़ पढ़ने के अंदाज़ से मुझे जलन होती है और जवाब में मेरा ये कहना कि भाई तुम्हारी आवाज़ और पर्सनैलिटी मुझे मिल जाए तो मैं स्क्रीन फोड़ डालूं… हाँ मुझे सब याद है…. सिगरेट की तलब लगने पर हर एक घंटे में हम दोनों का बिल्डिंग के नीचे जाना शायद कई लोगों को नहीं भाता था लेकिन उस वक्त भी अन्य बातों के अलावा चैनल को बेहतर बनाने की बातें किया करना.. मुझे सब याद है…
अचानक मेरे ईटीवी छोड़ने के फैसले से तुम्हें निराशा ज़रूर हुई उसके बाद तुम्हें भी लगने लगा कि अब क़ाबिलियत दिखाने का मौका दिल्ली में ही मिलेगा…… और तुम्हे दिल्ली बुला लिया गया….. शायद मौत की एक मौन पुकार थी वो जिसे सुनकर मन में खुशी और कई आशाएं संजोए तुम चल पड़े दिल्ली की ओर….. तुम्हें ज़रूर याद होगा…. हाँ कुछ महीने सब कुछ ठीकठाक रहा… इस बीच जब मैं वॉच न्यूज़ (एमपी-सीजी) में आउटपुट हेड बना तब तुम्हारा फोन आया बधाई देने के साथ ही तुमने एक बार फिर इच्छा जताई कि हम फिर से साथ रहेंगे तुम दिल्ली क्यों नहीं आ जाते.. एक अच्छे पत्रकार मित्र से ये सब सुनना दिल को अंदर तक सुकून दे गया…. हाँ तब तक का हर वाक़या मुझे यकीनन याद है……. लेकिन उसके कुछ महीनों बाद का दौर हम दोनों के लिए कष्टों भरा बीता… शायद ईमानदारी और चुप रहने की सज़ा मिली थी हमें…. खैर मैंने वो ग़म भी झेला लेकिन तुम टूट गए…. खुद परेशान रहकर कभी अपनी परेशानी दूसरों को बयां नहीं करना… इसी आदत ने आज मेरे एक यार को मुझ से जुदा कर दिया है…….
लोग क्यों कह रहे हैं कि तुम हमारे बीच में नहीं हो…. मुझे लगता है कि तुम अनंत दूरी पर रहकर भी हम सब से अलग नहीं हो सकते…. इतने निष्ठुर ना बनो…. तुम जानते हो कि हम सब तम्हें ताज़िंदगी नहीं भुला सकेंगे…. दोस्त जीवन में तुमने सिर्फ यही एक धोखा दिया है लेकिन ये धोखा इतना असहनीय होगा मालूम नहीं था…..
लेकिन मेरा धोखेबाज़ मित्र जहाँ भी है गा रहा होगा……
हम छोड़ चले हैं महफिल को याद आए कभी तो मत रोना
इस दिल को तसल्ली दे देना घबराए कभी तो मत रोना……..
क्योंकि वो इतना निष्ठुर नहीं है…… मुझे सब याद है……
अश्रुपूर्ण विदाई मेरे भाई
शैलेश बनाशा