अशोक उपाध्याय के अचानक चले जाने की खबर को पचा पाना काफी मुश्किल था। हम लगभग साढ़े तीन वर्ष तक ईटीवी में साथ-साथ थे। मैंने जब ईटीवी राजस्थान के चैनल प्रभारी के रूप में कार्य संभाला तो बुलेटिन प्रोड्यूसर अशोक उपाध्याय के व्यक्तित्व और आवाज को देखते हुए उन्हें न्यूज रीडर बनने का सुझाव दिया। काफी सकुचाते हुए अशोक जी राजी हुए। तब ईटीवी में कई स्टार एंकर हुआ करते थे और खासकर हिन्दी के चारों चैनलों के लिए उनमें से कुछ खास एंकरों को विशेष महत्व दिया जाता था। चूंकि ईटीवी के चेयरमैन श्री रामोजी राव एंकरों के चुनाव में खुद काफी ध्यान देते थे, अत: अशोक जी को इन सभी बातों की खास चिन्ता थी, लेकिन मई-जून 2003 में एंकरिंग के क्षेत्र में पदार्पण करने वाले अशोक उपाध्याय ने केवल एक महीने में प्राइम बुलेटिन पढ़ना शुरू कर दिया और अगले एक महीने में ईटीवी के हिन्दी चैनलों में स्टार एंकर के रूप में पहचाने-जाने लगे।
कई बार आकस्मिक घटनाओं को लेकर सीधे लाइव टेलिकास्ट में जाने की चुनौती सामने आ जाती थी और ऐसे में हमारे सबसे भरोसेमंद साथी एंकर अशोक उपाध्याय ही हुआ करते थे। घंटों लाइव टेलिकास्ट में बिना किसी पूर्व तैयारी के भी विषय-वस्तु पर जिस गंभीरता के साथ वे एंकरिंग करते थे, दर्शकों को पूरी तरह से अपने साथ बांध कर रख लेते थे। कुछ ही महीनों बाद वे मेरे डेस्क प्रभारी (आउटपुट प्रभारी) बन गए थे। बिना आराम किए कई-कई शिफ्टों में काम करना उनकी दिनचर्या बन गई थी। खासकर नए साथियों को, काम को गंभीरता के साथ सीखने के लिए प्रेरित करना और उनका विशेष ध्यान रखना उनकी आदत थी, जो आज भी उनसे जुड़े नए साथियों को जरूर याद होगा।
अशोक जी के बारे में अन्य मित्रों की प्रतिक्रियाओं को देखने से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि अशोक जी दिल से सोचने वाले व्यक्ति थे। इस समय मैं जयपुर में कार्यरत हूं और गत शनिवार को जयपुर प्रेस क्लब में अशोक जी की याद में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ था, जिसमें अशोक जी से जुड़े रहे ईटीवी के प्राय: सभी साथी मौजूद थे। खासकर मीडिया जगत् से अलग के कुछ दर्शकों की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार थी- ‘वे जब खबर पढ़ते थे तो लगता था कि वे हमसे सीधे जुड़े हुए हैं।’ अशोक जी का निधन अपने पेशे से जुड़े उन मित्रों के लिए एक चेतावनी भी है, जो विपरीत परिस्थितियों से जूझने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं। ईश्वर अशोक जी की आत्मा को शांति प्रदान करें और साथ ही उनके परिजनों को इस असीम कष्ट को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। इसी कामना के साथ-
अप्रत्याशित नहीं है
तुम्हारा यूं गमन,
यह बिरादरी चलती है
लेकर सिर कफन।
हम जानते हैं अपने
फटे दिल को भी सी लेना,
जीते-जीते मरते हैं सब
तुम मरते-मरते जी लेना।
-तारकेश्वर मिश्रा
इंचार्ज, पब्लिकेशन डिवीजन
राजस्थान पत्रिका समूह
जयपुर