इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम को चन्द्रमोहन कहें या चांद मौहम्मद। उनकी लगभग पूर्व पत्नि हो चुकीं अनुराधा को भी अनुराधा या फिजा कहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इन दोनों के साथ वही कहावत चरितार्थ हो गयी है कि ‘धोबी का कुत्ता घर का रहा न घाट का’। चन्द्रमोहन हरियाणा के डिप्टी सीएम थे। उन्हें हरियाणा के बाहर कम लोग ही जानते होंगे। प्रेम प्रकरण ने उन्हें अंतररष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया, इस कहवात की तरह- ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’। दो महीने बाद ही चन्द्रमोहन के प्रेम का खुमार भी उतर गया और यह कहने वाले कि उन्हें बचपन से इस्लाम आकृषित करता रहा है, इस्लाम से प्रेम की कलई भी खुल गयी।
जज्बात में आकर तख्त-ओ-ताज ठुकराने वाले चन्द्रमोहन को दो महीने में ही इस बात का एहसास हो गया कि जिंदगी सिर्फ जज्बातों के सहारे नहीं गुजारी जा सकती, पैसों की जरुरत पड़ती है। चन्द्रमोहन जैसा शख्स तंगदस्ती में कैसे दिन गुजार सकता है, जो ऐशोआराम में पला-बढ़ा हो। चन्द्रमोहन एक कमजोर इच्छाशक्ति वाले शख्स साबित हुए हैं।
अनुराधा ने चन्द्रमोहन को उस स्थिति में अपनाया था, जब भजनलाल का पूरा परिवार चन्द्रमोहन को बेदखल कर चुका था। यदि अनुराधा को पैसे की चाहत होती तो वो चन्द्रमोहन से उनके बेदखल होते ही किनारा कर सकती थी। लेकिन जो अनुराधा अपने चन्द्रमोहन की बेवफाई को लेकर आसमान सिर पर उठा रही है, उसे भी यह सोचना चाहिए था कि जो शख्स अपनी उस पत्नि का नहीं हुआ, जिसके साथ उसने जिंदगी का लम्बा सफर तय किया है, उसका कैसे हो सकता है। अनुराधा ने भी तो एक औरत का दिल दुखाकर चन्द्रमोहन को हासिल किया था। मुस्लिम उलेमाओं ने इस मुद्दे पर सही स्टैण्ड नहीं लिया है। जब दोनों ने अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल करके शादी करने की बात की थी तब ही उनकी नीयत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। इस्लाम में दूसरी शादी किन्हीं अहम वजहों से और सशर्त ही की जा सकती है। इनमें संतान न होने, पत्नि का अत्याधिक बीमार होना वजह हो सकती है। युद्व में हुईं विधवाओं को सहारा देने कि लिए भी एक से अधिक शादी का प्रावधान रखा गया था। इसमें भी शर्त यह है कि पत्नि दूसरी शादी की इजाजत दे और पति दोनों पत्नियों को बराबरी का दर्जा दे। क्या चन्द्रमोहन ने इस सब बातों का ख्याल रखा था ? क्या उन्होंने अपनी पहली पत्नि से इजाजत ली थी ? महज दूसरी शादी करने या वासना पूर्ति करने के लिए इस्लाम दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं देता।
चन्द्रमोहन के मामले में नीयत इस्लाम धर्म को अपनाना नहीं बल्कि हिन्दू कानून के तहत शादी में आ रही रुकावट को दूर करना था। उलेमा पहले भी एक फतवे में कह चुके हैं कि केवल शादी करने के लिए इस्लाम कबूल करना सही नहीं है। सवाल यह है कि ऐसे में क्या उलेमाओं को दोनों को इस्लाम में दाखिल होने की इजाजत देनी चाहिए थी ? उलेमाओं को तो तभी दोनों को इस्लाम में दाखिल होने की इजाजत नहीं देनी चाहिए थी, जब उन्होंने महज शादी के लिए इस्लाम अपनाने का नाटक किया था। अब जब दोनों की बीच दरार आ गयी है तो उलेमाओं ने फिर से शरीयत की बातें शुरु कर दी हैं। शरीयत की बात तब आती है, जब कोई सही मायनों में इस्लाम की शरण में आया हो। अभी तो यही नहीं पता कि असलियत क्या है ? दोनों ने सही मायनों में इस्लाम कबूल किया है या नहीं ? यदि इस्लाम कबूल किया है तो किस मुफ्ती के सामने किया है ? निकाह किस मौलाना ने पढ़वाया ? गवाह कौन लोग थे ? वकील किसे बनाया गया था ? यदि निकाह हुआ है तो निकाहानामा कहां है ? सच्चाई सबके सामने है। अनुराधा आज भी मांग में सिंदूर डाले नजर आती हैं तो चन्दमोहन कलाई पर कलावा बांधते हैं। इस संवेदनशील और इस्लाम को मजाक समझे जाने वाले मु्द्दे पर उलेमाओं को संयम से काम लेना चाहिए। खामोशी अख्तियार करना ही बेहतर हो सकता है। दो लोगों के बीच की प्रेम कहानी में बेवजह इस्लाम को घसीटना इस्लाम की तौहीन के अलावा कुछ नहीं है। उलेमाओं को कुछ ऐसा प्रावधान करना चाहिए कि केवल शादी, खासकर दूसरी शादी के लिए इस्लाम कबूल करने वाले लोग इस्लाम को केवल शादी करने का साधन न बना सकें।
लेखक सलीम अख्तर सिद्दीक़ी 170, मलियाना, मेरठ के रहने वाले हैं। उनसे संपर्क 09837279840 पर फोन करके या फिर उनकी मेल आईडी [email protected] पर मेल करके किया जा सकता है।