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चिटफंड का चक्रव्यूह : हिंदुस्तान में 10 लाख कंपनियां और हजारों करोड़ की ठगी

इंदौर से विनोद शर्मा की रिपोर्ट

पांच साल में पैसा दोगुना करके देने या जमा पैसे की एवज में सोने का सब्जबाग दिखाकर लोगों को टोपी पहनाने वाली चिटफंड कंपनियों के खिलाफ आरबीआई से लेकर सेबी तक शिकंजा कस चुकी है। छत्तीसगढ़, बंगाल से लेकर झारखंड, उत्तराखंड तक कानून और नीतियां बनाई जा रही है। वहीं मप्र चिटफंड कंपनियों का महफूज गढ़ बन चुका है। यहां दो-पांच-दस नहीं बल्कि सैकड़ों की तादाद में कंपनियां नितनए कारनामे दिखा रही है। जबकि मप्र में एक भी चिटफंड कंपनी रजिस्टर्ड नहीं है। चटकदार आॅफिस और कैबिन दिखाकर जमा रकम दो से तीन गुना करके देने के दावे के साथ छोटे शहरों-कस्बों के लोगों का अपना शिकार बनाने वाली इन तमाम कंपनियों का कोई वैधानिक वजूद है ही नहीं।

<p><strong>इंदौर से विनोद शर्मा की रिपोर्ट </strong></p> <p>पांच साल में पैसा दोगुना करके देने या जमा पैसे की एवज में सोने का सब्जबाग दिखाकर लोगों को टोपी पहनाने वाली चिटफंड कंपनियों के खिलाफ आरबीआई से लेकर सेबी तक शिकंजा कस चुकी है। छत्तीसगढ़, बंगाल से लेकर झारखंड, उत्तराखंड तक कानून और नीतियां बनाई जा रही है। वहीं मप्र चिटफंड कंपनियों का महफूज गढ़ बन चुका है। यहां दो-पांच-दस नहीं बल्कि सैकड़ों की तादाद में कंपनियां नितनए कारनामे दिखा रही है। जबकि मप्र में एक भी चिटफंड कंपनी रजिस्टर्ड नहीं है। चटकदार आॅफिस और कैबिन दिखाकर जमा रकम दो से तीन गुना करके देने के दावे के साथ छोटे शहरों-कस्बों के लोगों का अपना शिकार बनाने वाली इन तमाम कंपनियों का कोई वैधानिक वजूद है ही नहीं।

इंदौर से विनोद शर्मा की रिपोर्ट

पांच साल में पैसा दोगुना करके देने या जमा पैसे की एवज में सोने का सब्जबाग दिखाकर लोगों को टोपी पहनाने वाली चिटफंड कंपनियों के खिलाफ आरबीआई से लेकर सेबी तक शिकंजा कस चुकी है। छत्तीसगढ़, बंगाल से लेकर झारखंड, उत्तराखंड तक कानून और नीतियां बनाई जा रही है। वहीं मप्र चिटफंड कंपनियों का महफूज गढ़ बन चुका है। यहां दो-पांच-दस नहीं बल्कि सैकड़ों की तादाद में कंपनियां नितनए कारनामे दिखा रही है। जबकि मप्र में एक भी चिटफंड कंपनी रजिस्टर्ड नहीं है। चटकदार आॅफिस और कैबिन दिखाकर जमा रकम दो से तीन गुना करके देने के दावे के साथ छोटे शहरों-कस्बों के लोगों का अपना शिकार बनाने वाली इन तमाम कंपनियों का कोई वैधानिक वजूद है ही नहीं। उनके रंग-बिरंगे ब्रोशर, पेम्पलेट और वैधानिकता के नाम पर दिखाए जाने वाले तमाम दस्तावेज सिर्फ और सिर्फ छलावा है और कुछ नहीं। यह बात अलग है कि इन चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई को प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने अपनी कमाई का जरिया बना रखा है। इसीलिए सैकड़ों शिकायतों से पहले इन कंपनियों पर कार्रवाई होती नहीं। होती भी है तो इन्हें कुछ ही दिनों में नए रंग-रूप में फिर आगे कर दिया जाता है लूट खसौट के लिए।

सेबी और आरबीआई के अनुसार मप्र में एक भी चिटफंड कंपनी पंजीबद्ध नहीं है। बावजूद इसके सैकड़ों कंपनियां बेधड़क-बेखौफ लोगों को सब्जबाग दिखकार चांदी काट रही है। वह भी उस स्थिति में जब हाईकोर्ट मप्र में चिटफंड प्रतिबंधित कर चुकी है और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान स्वयं चिटफंड की मुखालफत करते नजर आते हैं। सूत्रों की मानें तो इंदौर, भोपाल, ग्वालियर में दफ्तर खोलकर कंपनियां देवास, शाजापुर, सिहोर, धार, राजगढ़, गुना, बड़वानी, खरगोन, रायसेन, बेतूल जैसे छोटे शहरों और उनके कस्बों को निशाना बना रही है। कम वक्त में ज्यादा कमाई के लालच ने सैकड़ों को दो जून की रोटी तक का मोहताज कर दिया है। चिटफंड कंपनियों का आर्थिक-राजनीतिक नेटवर्क इतना तगड़ा है कि उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। अब जब बड़े-बड़े मामले सामने आने लगे हैं तब जाकर सरकार भी सख्त नजर आती है। वरना इससे पहले तो पुलिस भी एफआईआर नहीं लिखती थी।

ये हैं चिटफंड कंपनियां….
सांई सर्वोत्तम एजुसाफ्ट कापोर्रेट सर्विसेस प्रालि, सांई सर्वोत्तम संपत्ति डेवलपर्स एंड इंफ्रा. प्रालि, एसएसएस कॉपोर्रेट ग्रुप, सनराइज, साईं प्रसाद, साईंराम, आदर्श क्रेडिट को आॅपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, गरिमा रियल स्टेट, दिव्यानी, एचबीएन, मिलियंस माइंस इंफ्राट्रक्चर, एडीवीडी, जी-लाइफ इंडिया, रोजवेली, बीएनजी ग्लोबल, जीएन गोल्ड, एवएम रियल एस्टेट एंड अलाइड लिमिटेड, सनसाइन इन्फ्राबुल कॉर्प, पीएसीएल लिमिटेड, वी रिलेशन इंडिया लिमिटेड, जेएसवी डेवलपर्स प्रा.लि., केएमजी इंडिया लिमिटेड, जीएनडी इंडिया, जीएन डेयरी लिमिटेड, एचबीएन के्रडिट। यह कंपनियां कार्रवाई या कुछ दिनों की फरारी के बाद नए नाम से दोबारा अपना काम शुरू कर देती हैं।

देश भर में 10 लाख फर्जी चिटफंड कंपनियां
देश में करीब 10 लाख चिटफंड कंपनियां संचालित हो रही है। इनमें केवल 12 हजार 120 कंपनियां ही रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया (आरबीआई) द्वारा अधिकृत है। मप्र और छत्तीसगढ़ में तो किसी भी कंपनी को आरबीआई से मान्यता प्राप्त नहीं है। इसमें नॉन बैकिंग को लेकर कई केटेगरी है। इनमें एडवांस व डिपाजिट योजना को लेकर अलग-अलग नियम निर्धारित हैं। यदि किसी संस्था के नाम के साथ डेवलपर जैसा शब्द जुड़ा है और उसके द्वारा उपभोक्ता से किश्त में राशि ली जा रही है तो उसे प्राप्त किए गए रकम के एवज में जमीन दी देना होगा। उपभोक्ता को नगद भुगतान नहीं कर सकेगा। यदि वह ऐसा करता है तो आरबीआई के शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा। आरबीआई उसकी मान्यता समाप्त कर सकती है।

फर्जी कंपनियों ने 2013 में लगाया 40 हजार करोड़ का चूना
अवैध तरीके से पैसा जुटाने वाली पोंजी स्कीमों ने 2013 में  निवेशकों को खूब रुलाया। कॉरपोरेट गवर्नेस की कमियों और नियामकीय चूकों का फायदा उठाकर कंपनियों ने फजीर्वाड़े के जरिये आम निवेशकों को निशाना बनाया। लोगों को करीब 40 हजार करोड़ रुपये का चूना लगा। जमीनी निवेश, सोना निवेश, आलू बांड, बकरी पालन, घी में निवेश जैसी फर्जी योजनाओं के जरिये घोटालेबाजों ने खूब चांदी काटी।

क्या है चिटफंड कंपनी और कैसे करती है काम
चिटफंड एक्ट 1982 के मुताबिक चिटफंड स्किम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का ग्रुप एक साथ समझौता करे। समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाए और तय वक्त पर उसकी नीलामी की जाए। जो फायदा हो बाकी लोगों में बांट दिया जाए। इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसे लौटाने भी होते हैं। नियम के मुताबिक ये स्कीम किसी संस्था या फिर व्यक्ति के जरिए आपसी संबंधियों या फिर दोस्तों के बीच चलाया जा सकता है।लेकिन आम तौर पर ऐसा होता नहीं है। ये चिटफंड स्कीम कब पॉन्जी स्कीम में बदल जाती है कोई नहीं जानता है। आम तौर पर चिटफंड कंपनियां इस काम को मल्टीलेवल मार्केटिंग में तब्दील कर देती हैं। मल्टीलेवल मार्केटिंग यानि अगर आप अपने पैसे जमा करते हैं साथ ही अपने साथ और लोगों को भी पैसे जमा करने के लिए लाते हैं तो मोटे मुनाफे का लालच। ऐसा ही बाजार से पैसा बटोरकर भागने वाली चिटफंड कंपनियां भी करती हैं। वो लोगों से उनकी जमा पूंजी जमा करवाती हैं। साथ ही और लोगों को भी लाने के लिए कहती हैं। बाजार में फैले उनके एजेंट साल, महीने या फिर दिनों में जमा पैसे पर दोगुने या तिगुने मुनाफे का लालच देते हैं।

मनी सकुर्लेशन कंपनी चलाना ही अपराध
प्राइज चिट्स एंड मनी स्कीम बैनिंग एक्ट 1978 के तहत ऐसी मनी सकुर्लेशन कंपनियां चलाना ही अपराध है, जो निवेशकों को मनी सकुर्लेशन योजना का लालच देती हैं। ऐसे में कंपनी निवेशको को पैसे लौटा भी देती है तो दोषी मानी जाएगी। एक्ट में ऐसे संचालकों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है, जिन्होंने नई कंपनी बनाई है। भले उसमें एक भी सदस्य नहीं है, यदि एक्ट के दायरे में आ रही है तो उसकी गिरफ्तारी संभव है।

निवेशक भी उतने ही दोषी
चिटफंड या मनी सकुर्लेशन स्कीम वाली कंपनियों में पैसा जमा कराना भी कानूनन गलत है। प्राइज चिट्स एंड मनी सकुर्लेशन स्कीम बैनिंग एक्ट 1978 के सेक्शन तीन में ये प्रावधान किया गया है। इसके अंतर्गत मनी सकुर्लेशन व चिटफंड कंपनियों का सदस्य बनना भी अपराध है। इसलिए लोगों को चाहिए कि वे ऐसी कंपनियों से दूर रहें। यहां तक कि जिसने कंपनी का फॉर्म भर दिया उसे भी पुलिस मुजरिम मान सकती है। पैसा लगाने वालों के लिए भी उतनी ही सजा का प्रावधान है जितना कंपनी चलाने वालों के लिए।

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63 प्रतिशत पुलिसवालों को नहीं मालूम चिटफंड एक्ट
निवेशकों को ठगी का शिकार बना रही चिटफंड और मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों के खिलाफ प्राइज चिट्स एंड मनी सकुर्लेशन स्कीम बैनिंग एक्ट 1978 के तहत कार्रवाई की जाए तो ऐसी कंपनियां बच नहीं सकती। दिक्कत यह है कि 63 प्रतिशत पुलिसवालों को इस एक्ट की जनकारी ही नहीं है। इसका खुलासा राजस्थान में हुए एक सर्वे में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर कार्रवाई धोखाधड़ी की धाराओं में की जाता है।

चिटफंड का चक्रव्यूह
– इंदौर की आई माता मार्केटिंग प्राइवेट लि. ने आधा दर्जन एजेंटों को साथ लेकर 3500 रुपए जमाकर 45-90 दिन में एक लाख रुपए का लोन दिलाने का वादा करके 100 से ज्यादा लोगों को टोपी पहनाई।
– साढे़ तीन हजार रुपये लगाकर लाखों रुपये हर माह कमाई का सपना दिखाने वाली ट्यूलिप चिटफंड कंपनी गायब हो गई। ट्यूलिप कंपनी के देशभर में 30 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं। 3200 रुपये लेकर एक लाख रुपये माह कमाने का सपना कंपनी द्वारा अपने निवेशकों को दिखाया गया था। अकेले इंदौर में ही एक लाख से ज्यादा निवेशकों के पैसा लगाए जाने की बात सामने आ रही है।
– कोलकाता की रोजवैली कंपनी के साथ जीलाइफ और बीएनजी गोर्ल्ड के खिलाफ प्रशासन ने कार्रवाई की। ऐसी कि जीलाइफ का कारोबार बढ़कर दो गुना हो गया। अब निवेशक भटक रहे हैं।
– 30 मई 2013 को जीएनटी मार्केट के एक आॅटोमोबाइल व्यापारी कीरकी शिकायत पर चिटफंड कंपनी सारधा ग्रुप का कर्ताधर्ता सुदीप्तो पर इंदौर में भी 58 लाख की ठगी का केस दर्ज हुआ। 30 हजार करोड़ की ठगी की है। मामले में मिथुन चक्रवति तक से पूछताछ हो चुकी है।
– सारणी पाथाखेड़ा से मोटी रकम लूटकर फरार हुई चिटफंड कंपनी संचालकों का सुराग नहीं लग पा रहा है। क्षेत्र की जनता ने बंगाली बंधुओं पर भरोसा कर डबल के लालच में करीब 120 करोड रुपए गवा दिए हैं।
– सीबीआई का दावा  पीएसीएल और पीजीएफ पोंजी स्कीम चलाकर करीब 5 करोड़ निवेशकों को 45,000 करोड़ रुपए का चूना लगाया।
– उत्तर बंगाल में 500 करोड़ का चिटफंड घोटाला, 27 कंपनियां हुईं फरार, निवेशकों के आए दिन प्रदर्शन।

अब जागे सब…
सरकार : लोकसभा, राज्यसभा से लेकर विभिन्न राज्यों की विधानसभा तक में चिटफंड के खिलाफ नीति और रणनीति बनाने की तैयारियां चल रही है। कुछ जगह मसौदा तैयार है तो कहीं मामला चर्चाओं में है।

सीबीआई :- फर्जी एमएलएम और इन्वेस्टमेंट कंपनियों के 272 मामलों की जांच।

ईडी : सारधा जैसी कई कंपनियों की धोखाधड़ी मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने भी प्रकरण दर्ज करके मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू कर दी है।

आरबीआई :- रिजर्व बैंक ने बतौर एनबीएफसी लोगों से गैर कानूनी तरीके से पूंजी जुटाने वाली संदिग्ध कंपनियों की स्क्रूटनी शुरू कर दी है। रिजर्व बैंक ने यह कार्रवाई कॉरपोरेट मंत्रालय की ओर से 34,700 से अधिक कंपनियों, जो बतौर एनबीएफसी लोगों से पैसे जुटा रही हैं, की सूची भेजे जाने के बाद शुरू की है। मंत्रालय ने सूची 2013 की शुरूआत में ही तैयार कर ली थी, जब 10,000 करोड़ रुपये का सारदा चिटफंड घोटाला सामने आया था।

सेबी :- चिटफंड कम्पनियों की फर्जी योजनाओं से राहत दिला पाने में नाकाम रहे सेबी ने देश भर में चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है। शुरूआत कोलकाता की उन दो बड़ी कंपनियों (प्रयाग ग्रुप और पैलियन ग्रुप) के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है जिनने  20 लाख से ज्यादा निवेशकों से 100 दिन में 100 फीसदी रिटर्न का दावा करके 900 करोड़ लूटे हैं। इनके अलावा गैरकानूनी तरीके से कलेक्टिव स्कीम्स चलाने वाली 350 कंपनियों के खिलाफ सेबी सर्च आॅपरेशन करेगा। इनमे से 140 कोलकाता, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, असम की हैं।

लेखक विनोद शर्मा इंदौर के पत्रकार हैं.

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